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केदारनाथ ने देखा था हिमयुग, 13वीं सदी में बर्फ में दबा था मंदिर

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में 2013 में आयी त्रासदी के बाद पूरी केदारघाटी तहस-नहस हो गई थी. लेकिन बाबा केदारनाथ का मंदिर अपनी जगह ही बना रहा. हालांकि केदारनाथ मंदिर पर यह कोई पहली आपदा नहीं थी. इससे सैकड़ों साल पहले 1300 से 1700ई. के बीच केदारनाथ मंदिर पूरा बर्फ में दब गया था.

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Published : Jun 16, 2020, 2:09 PM IST

Updated : Jun 16, 2020, 3:11 PM IST

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13वीं सदी में आया था हिमयुग.

देहरादून: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में 2013 में आयी त्रासदी के बाद पूरी केदारघाटी तहस-नहस हो गई थी, लेकिन बाबा केदारनाथ का मंदिर अपनी जगह ही बना रहा. हालांकि, केदारनाथ मंदिर पर यह कोई पहली आपदा नहीं थी, बल्कि इससे सैकड़ों साल पहले साल 1300 से 1700ई. के बीच हिमयुग के दौरान केदारनाथ मंदिर पूरा बर्फ में दब गया था. सैकड़ों सालों तक केदारनाथ मंदिर बर्फ में दबा रहा, बावजूद इसके मंदिर को कोई हानि नहीं हुई. आइए जानते हैं मंदिर पर 1300ई. में आए हिमयुग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें...

13वीं सदी में बर्फ में दब गया था केदारनाथ मंदिर.


1- 1300 से 1700ई. तक था हिमयुग

1300 से 1700ई. तक हिमयुग का दौर आया था. उस दौरान हिमालय का कुछ क्षेत्र बर्फ में ढक गया था. वैज्ञानिकों की मानें तो पूरे 400 साल तक केदारनाथ मंदिर बर्फ में दबा रहा था. फिर भी इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ. इसलिए वैज्ञानिक इस बात से भी हैरान नहीं हैं कि साल 2013 में आई भीषण आपदा से मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा होगा. बर्फ में मंदिर के दबे रहने के निशान मंदिर की बाहरी दीवारों पर आज भी मौजूद हैं. ये निशान बर्फ के रगड़ने से बने थे.


2- क्या थी हिमयुग आने की वजह

वैज्ञानिकों ने बताया कि हिमयुग के दौरान बहुत ज्यादा बर्फबारी हुई थी. इस वजह से मंदिर बर्फ के नीचे दब गया था. वैज्ञानिकों के अनुसार हिमयुग आने की वजह यह है कि जब पृथ्वी अधिक गर्म हो जाती है, तो वह अपने आप को ठंडा करने लगती है. इस तरह हिमयुग का दौर आता है. पृथ्वी एक लिविंग प्लैनेट है. जैसा कि गर्मी के मौसम के बाद फिर मानसून आता है और इसमें पृथ्वी अपने आपको ठंडा करती है. इसी तरह ही 1300 से 1700ई. तक पृथ्वी ने अपने आप को ठंडा किया था. लेकिन तापमान इतना गिर गया कि सैकड़ों साल तक मंदिर के ऊपर बर्फ जमी रही.

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3- टेस्ट से पता लगाया हिमयुग का समय

वैज्ञानिकों ने बताया कि शैवाल और कवक को मिलाकर समय का भी अनुमान लगाया गया था. इसके अनुसार केदारनाथ में 13वीं शताब्दी के मध्य बर्फबारी शुरू हुई. केदारघाटी में बर्फ का बनना 1748 ईस्वी तक जारी रहा. वैज्ञानिकों ने बताया कि सैकड़ों साल पहले केदारनाथ घाटी बनी है. हालांकि जो मंदिर बनाया गया है वह बेहद सुरक्षित है. इसलिए मंदिर को कुछ नहीं हुआ, लेकिन उस दौरान ऐसे संवेदनशील जगह पर आबादी बसाना खतरे से खाली नहीं था.


4- केदारनाथ मंदिर की क्या हैं मान्यताएं

उत्तराखंड के चारों धामों में सबसे कठिन धाम बाबा केदारनाथ धाम को माना जाता है. इसकी अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं. मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने करवाया था. इसके विपरीत कुछ लोगों का मानना यह भी है कि 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर को बनवाया था. वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार केदारनाथ धाम का वर्णन महाभारत में भी है. महाभारत युद्ध के बाद पांचों पांडवों ने केदारनाथ में भगवान शंकर की पूजा की थी.

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5- केदारनाथ मंदिर है बेहद मजबूत...

केदारनाथ मंदिर को बेहद मजबूती से बनाया गया है. मोटी-मोटी चट्टानों से केदारनाथ मंदिर की दीवारें पटी हुई हैं. इसकी दीवारें 50 फीट ऊंची, 187 फीट लंबी, 80 फीट चौड़ी और 12 फीट मोटी हैं. यह मंदिर बेहद मजबूत चट्टानों से बनाया गया है. मंदिर को 6 फीट नीचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है और माना जाता है कि पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जो इतनी संवेदनशील जगह पर भी मजबूती से खड़े रहने में कामयाब है.


6- तीन पहाड़ों से घिरा हुआ है केदारनाथ...

उत्तराखंड स्थित केदारनाथ मंदिर तीनों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है. एक तरफ 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ तो दूसरी ओर 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22,750 फीट ऊंचा भरतकुंड पहाड़ है. केदारनाथ मंदिर न सिर्फ पहाड़ों से घिरा हुआ है बल्कि यहां पांच नदियों का संगम भी है. यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का संगम होता है. हालांकि यहां बस मंदाकिनी ही शुद्ध रूप में दिखाई देती है.

Last Updated : Jun 16, 2020, 3:11 PM IST

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