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यूं ही नहीं बना उत्तराखंड, दशकों के संघर्ष और शहादतों के बाद मिली अलग पहचान - Separate State Uttarakhand

उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा. पहली बार पहाड़ी क्षेत्र की तरफ से ही पहाड़ी राज्य बनाने की मांग हुई थी. 1897 में सबसे पहले अलग राज्य की मांग उठी थी.

दशकों के संघर्ष और शहादतों के बाद मिली अलग पहचान

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Published : Nov 5, 2019, 4:12 AM IST

Updated : Nov 5, 2019, 4:17 AM IST

देहरादून: पहाड़ी राज्य उत्तरांखड बनाने को लेकर प्रदेशवासियों को लंबे संघर्ष का एक दौर देखना पड़ा. कई आंदोलनों और शहादतों के बाद 9 नवंबर 2000 को आखिरकार उत्तरप्रदेश से पृथक होकर एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ. इस पहाड़ी राज्य को बनाने में कई बड़े नेताओं और राज्य आंदोलनकारियों का अहम योगदान रहा है. जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है. आखिर क्या है एक अलग राज्य बनने का इतिहास और कब क्या रहा खास, देखिए उत्तराखंड बनने के संघर्ष की कहानी...

दशकों के संघर्ष और शहादतों के बाद मिली अलग पहचान

1897 में पहली बार हुई थी अलग राज्य बनाने की मांग
उत्तराखंड को एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा. पहली बार पहाड़ी क्षेत्र की तरफ से ही पहाड़ी राज्य बनाने की मांग हुई थी. 1897 में सबसे पहले अलग राज्य की मांग उठी थी. उस दौरान पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने तत्कालीन महारानी को बधाई संदेश भेजा था. इस संदेश के साथ इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप एक अलग पहाड़ी राज्य बनाने की मांग भी की गई थी.

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संयुक्त राष्ट्र के राज्यपाल को भेजा था ज्ञापन

जिसके बाद साल 1923 में जब उत्तर प्रदेश संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा हुआ करता था उस दौरान संयुक्त राष्ट्र के राज्यपाल को भी अलग पहाड़ी प्रदेश बनाने की मांग को लेकर ज्ञापन भेजा गया. जिससे की पहाड़ की आवाज को सबके सामने रखा जाए.

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पं. जवाहरलाल नेहरू ने पहाड़ी राज्य गठन का किया था समर्थन
इसके बाद साल 1928 में कांग्रेस के मंच पर अलग पहाड़ी राज्य बनने की मांग रखी गयी थी. यही नहीं साल 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अलग पहाड़ी राज्य बनाने का समर्थन किया था. इसके बाद भी जब पृथक राज्य नहीं बना तो साल 1946 में कुमाऊं के बद्रीदत्त पांडेय ने एक अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में गठन की मांग की थी.

साल 1979 में अलग राज्य गठन का संघर्ष हुई थी तेज
इसके साथ ही करीब साल 1950 से ही पहाड़ी क्षेत्र एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर हिमाचल प्रदेश के साथ मिलकर 'पर्वतीय जन विकास समिति' के माध्यम से संघर्ष शुरू हुआ. साल 1979 में अलग पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ. जिसके बाद पहाड़ी राज्य बनाने की मांग ने तूल पकड़ा और संघर्ष तेज हो गया. इसके बाद 1994 में अलग राज्य बनाने की मांग को और गति मिली. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 'कौशिक समिति' का गठन किया. इसके बाद 9 नवंबर 2000 में एक अलग पहाड़ी राज्य बना.

करीब 42 से अधिक लोगों ने दी थी शहादत.

पहाड़ी राज्य बनाने को लेकर एक लंबा संघर्ष चला. जिसके लिए कई आंदोलन किये गये, कई मार्च निकाले गये. अलग पहाड़ी प्रदेश के लिए करीब 42 आंदोलनकारियों को शहादत देनी पड़ी. पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर उस समय इतना जुनून था कि महिलाएं, बुजुर्ग यहां तक की स्कूली बच्चों तक ने आंदोलन में भाग लिया.

पहाड़ की महिलाओं का पृथक राज्य गठन में रहा है अहम योगदान
उत्तराखंड राज्य गठन में तब हम बड़े नेताओं और आंदोलनकारियों के साथ ही पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं का भी अहम योगदान रहा. उत्तराखंड राज्य बनने से पहले गौरा देवी ने वृक्षों के कटान को रोकने के लिए चिपको आंदोलन शुरू किया था जो एक लंबे समय तक चला. इसके बाद जब अलग राज्य बनने को लेकर संघर्ष चल रहा था तो पहाड़ी क्षेत्र की महिलाओं ने भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. इस संघर्ष में कई महिलाओं ने अपनी शहादत दी थी. जिन्हें आज भी बड़े गर्व से याद किया जाता है.

Last Updated : Nov 5, 2019, 4:17 AM IST

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