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विलुप्ति की कगार पर हिमालयी चूहा, ये है बड़ी वजह

रायली चूहे को स्थानीय भाषा में पायका और रूंगटा नाम से भी जाना जाता है. देखने और व्यवहार में यह खरगोश की तरह होता है.  अपने भोजन के लिए यह 80% औषधीय पौधों पर निर्भर रहता है.

विलुप्ति की कगार पर हिमालयी चूहा,

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Published : Oct 20, 2019, 2:43 PM IST

Updated : Oct 20, 2019, 6:34 PM IST

देहरादून: मानवीय लापरवाही के कारण आज उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कई जीव-जंतु विलुप्ति की कगार पर हैं. नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज के तहत किए गए एक शोध में इसके जो कारण सामने आये हैं वो इस बात की तस्दीक करते हैं. इस शोध में प्लास्टिक कचरे को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना गया है. ये मानवीय लापरवाही का ही नतीजा है कि आज उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले 'औचोटोना रॉयली' की संख्या साल दर साल घटती जा रही है.

विलुप्ति की कगार पर हिमालयी चूहा,
नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज के शोध संयोजक गढ़वाल विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर एसएन बहुगुणा के मुताबिक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे की वजह से औचोटोना रॉयली नाम के हिमालयी चूहे की उम्र साल दर साल छह महीने से एक साल तक कम हो रही है. ऐसे में यदि आगे भी यही स्थिति बनी रही तो ये खास हिमालयी चूहा अगले कुछ सालों में पूरी तरह विलुप्त हो जाएगा.

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रॉयली चूहे को स्थानीय भाषा में पायका और रूंगटा नाम से भी जाना जाता है. देखने और व्यवहार में यह खरगोश की तरह होता है. अपने भोजन के लिए यह 80% औषधीय पौधों पर निर्भर रहता है. हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय अतिक्रमण और उनके द्वारा फैलाया जा रहा कचरा इन चूहों के जीवन पर भारी पड़ रहा है. नतीजा धीरे-धीरे हर साल इन चूहों की उम्र कम होती जा रही है.

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ऐसे में वो दिन दूर नहीं जब रॉयली चूहे हिमालयी क्षेत्रों से विलुप्त हो जाएंगे. इसलिए सभी को प्रयास करने चाहिए कि इस तरह की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करें. इन प्रजातियों का संरक्षण इसानों के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत जरुरी है.

Last Updated : Oct 20, 2019, 6:34 PM IST

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