देहरादून:पंजाब में हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बाद वहां के प्रभारी हरीश रावत के लिए चिंताएं बढ़ गई हैं. सवाल यह खड़ा होने लगा है कि जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रभारी रहते हुए पंजाब की राजनीतिक उथल-पुथल को नहीं संभाल पाए तो ऐसे में उत्तराखंड कांग्रेस को कैसे संभालेंगे. आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं को एकजुट करना, पहले से ही कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है. ऐसे में क्या कुछ बन रहे हैं उत्तराखंड में राजनीतिक समीकरण, क्या पंजाब में हुई राजनीतिक उथल-पुथल का उत्तराखंड की राजनीति पर पड़ेगा असर? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
लंबे समय से पंजाब में चल रही राजनीतिक उठापटक पर फिलहाल विराम लग गया है. पंजाब में सोमवार को मुख्यमंत्री समेत दो डिप्टी सीएम ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. लेकिन राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पंजाब के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत, पंजाब की स्थितियों को संभालने में नाकाम रहे. इसके चलते पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन की नौबत आन पड़ी. जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बात का पहले ही दावा कर चुके थे, कि पंजाब में स्थितियां सामान्य हो गई हैं.
दांव पर है हरीश रावत की 'साख' पंजाब के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत, पंजाब कांग्रेस में उपजे सियासी घमासान को कंट्रोल करने में नाकाम रहे. ऐसे में अब सवाल यही उठ रहा है कि प्रभारी रहते हुए जब हरीश रावत पंजाब के सियासी घमासान को नहीं संभाल पाए, तो उत्तराखंड कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और मतभेद को कैसे ठीक करेंगे. हालांकि, हरीश रावत पहले भी इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि उन्हें पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाए. ताकि, वह उत्तराखंड में पूरा ध्यान दे सकें. यानी हरीश रावत पहले ही यह चाहते थे कि पंजाब का लफड़ा उन्हें न सुलझाना पड़े. वो उत्तराखंड कांग्रेस के झगड़े को ही सुलझाने को उपलब्धि मानेंगे.
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पंजाब और उत्तराखंड की परिस्थितियां हैं भिन्न:राजनीतिक जानकारों की मानें तो, पंजाब और उत्तराखंड की परिस्थितियां भिन्न हैं. क्योंकि पंजाब में सियासी उठापटक का यही अंजाम होना था. उत्तराखंड कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी और मतभेद का असर हरीश रावत पर नहीं पड़ेगा. क्योंकि साल 2016 में ही हरीश रावत, कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा कर अपने सभी विद्रोहियों को साइडलाइन कर चुके हैं. जिसके चलते कांग्रेस में अभी कोई ऐसा बड़ा चेहरा मौजूद नहीं है जो हरीश रावत को नुकसान पहुंचा सके. यानी कुल मिलाकर देखें तो आगामी विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है, तो मुख्यमंत्री हरीश रावत ही होंगे. लेकिन अगर चुनाव हारती है तो उस हार का ठीकरा भी हरीश रावत के सर पर ही फोड़ा जाएगा.
अपने विरोधियों को पहले ही साइडलाइन कर चुके हैं हरीश रावत:वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि पंजाब में जो घटनाक्रम हुआ है उससे हरीश रावत का जो राजनीतिक कौशल और चाणक्य नीति थी, उस पर सवाल उठना लाजिमी है. पंजाब में हुए घटनाक्रम का उत्तराखंड पर कुछ खास असर पड़ने वाला नहीं है. क्योंकि पंजाब और उत्तराखंड दोनों की परिस्थितियां अलग-अलग हैं. पंजाब में हरीश रावत सफल नहीं हुए, लेकिन उत्तराखंड में जिससे हरीश रावत को जो खतरा था, उसको साल 2016 में ही हरीश रावत साइडलाइन कर चुके हैं. ऐसे में हरीश रावत का कांग्रेस में एकतरफा राज है. हालांकि, जो इक्का-दुक्का आवाज उठती हैं उनका कुछ खास राजनीतिक महत्व नहीं है.
पार्टी जीती या हारी तो हरीश रावत ही होंगे जिम्मेदार:जय सिंह रावत ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गुटबाजी से निपटने का काम पहले ही कर दिया था. क्योंकि हरीश रावत ने कांग्रेस को एक ध्रुवीय बना दिया है. इसका खामियाजा कांग्रेस को साल 2017 में भुगतना पड़ा. वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी के भीतर हरीश रावत के अलावा कोई ऐसा वरिष्ठ नेता मौजूद नहीं है, जो हरीश रावत को सीधे चुनौती दे सके. हालांकि कुछ नेता ऐसे हैं जो आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन उनकी आवाज से कुछ खास फर्क पड़ने वाला नहीं है. क्योंकि वर्तमान समय में कांग्रेस के कर्ता-धर्ता हरीश रावत ही हैं. लिहाजा पार्टी जीतती है या हारती है, उसके जिम्मेदार हरीश रावत ही होंगे.
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कांग्रेस का जहाज डूब रहा है- महाराज: वहीं, पंजाब में हुए घटनाक्रम को लेकर सत्ताधारी पार्टी भाजपा हरीश रावत पर तंज कसते नजर आ रही है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड में कांग्रेस की जो परिवर्तन यात्रा निकल रही है, उसका ही अंजाम पंजाब में देखने को मिला है. पंजाब में पूरा परिवर्तन हो गया. महाराज ने कहा कि कांग्रेस वह बड़ा जहाज है जो डूब रहा है और पार्टी में असंतुष्ट लोग बढ़ते ही जा रहे हैं. साथ ही हरीश रावत पर तंज कसते हुए महाराज ने कहा कि जिसमें जो लोग विशेषज्ञ हैं वह काम करते रहते हैं, जिसका नतीजा पंजाब में देखा गया है. ऐसे में सब को नाराज करके जहाज नहीं चलाया जा सकता, लिहाजा कांग्रेस का जहाज डूब रहा है.
कांग्रेस को इकाई पर समेटने के लिए भाजपा की राह हुई आसान: वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पंजाब नहीं संभाल पाए. पंजाब में पूरी कांग्रेस बिखर गई. यही नहीं, वहां के लोगों के हृदय भी परिवर्तित हो गए. बावजूद इसके उत्तराखंड में हरदा की परिवर्तन यात्रा जारी है. साथ ही हरीश रावत पर तंज कसते हुए शम्स ने कहा कि जब हरीश रावत पंजाब की जिम्मेदारी नहीं संभाल पाए, तो वह उत्तराखंड की जिम्मेदारी कैसे संभालेंगे. उन्हीं की पार्टी के तमाम विरोधी उन्हें निपटाने की राजनीति में लगे हुए हैं. ऐसे में कांग्रेस को इकाई में समेटना भाजपा के लिए और आसान हो गया है. यही नहीं, कांग्रेस अगर चेहरा घोषित करती है, तब भी कांग्रेस हारेगी और अगर चेहरा घोषित नहीं करती है तब भी कांग्रेस हारेगी.
अकेले हरीश रावत बीजेपी को ठिकाने लगाने में हैं सक्षम:वहीं, इस पूरे मामले पर कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि हरीश रावत पूरे प्रदेश कांग्रेस को संभाल रहे है. इसका ही नतीजा है कि कांग्रेस के सभी नेता एक मंच पर नजर आ रहे हैं. हालांकि, हरीश रावत भी यहीं होते, लेकिन पंजाब में हुए घटनाक्रम के चलते उन्हें चंडीगढ़ जाना पड़ा. ऐसे में भाजपा कांग्रेस पर सवाल उठाने से पहले खुद अपनी पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह पर ध्यान दे. साथ ही कहा कि भाजपा को ठिकाने लगाने के लिए कांग्रेस के चार नेता, हरीश रावत, गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह और किशोर उपाध्याय ही काफी हैं. और सख्त बात कहें तो अकेले हरीश रावत ही बीजेपी को ठिकाने लगाने में सक्षम हैं.
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बहरहाल, बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के अपने-अपने दावे हैं. लेकिन धरातल की सच्चाई ये है कि पंजाब में हरीश रावत बुरी तरह पस्त हुए. इतने पस्त कि वहां कांग्रेस को अपना वो मुख्यमंत्री बदलना पड़ा जो उन्हें सत्ता में लाया था. वो मुख्यमंत्री जिसने अपने दम पर चुनाव जीता था. ऐसे में हरीश रावत और कांग्रेस के लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की चुनौती आसान होने नहीं जा रही है. ये भी ध्यान रखना होगा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत मुख्यमंत्री होने के बावजूद दो-दो सीटों से चुनाव हार गए थे. इसके बाद वो नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से लोकसभा चुनाव भी हार गए थे. ऐसे में हारा हुआ योद्धा क्या कांग्रेस को युद्ध जिता पाएगा.