देहरादून: उत्तराखंड के वनों में आए-दिन आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं. मौजूदा सीजन में फरवरी से अभी तक वनों में 970 आग लगने के मामले सामने आए हैं, जिससे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल चुका है. वनाग्नि के चलते हिमालयी क्षेत्रों में भी तापमान बढ़ने लगा है. तेजी से बदल रहे मौसम चक्र और पहाड़ों में वनाग्नि का असर ग्लेशियरों के लिए बड़ा खतरा बनने लगा है. वैज्ञानिक भी इन घटनाओं को भविष्य के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं. आखिर जंगलों में लगी आग कैसे हिमालय के ग्लेशियरों पर असर डाल रहा हैं, देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
जानकारी देते डाक्टर, वैज्ञानिक और पर्यावरणविद. आपको बता दें कि जंगलों में लगातार हो रही वनाग्नि की घटनाओं के चलते वातावरण में तपिश बढ़ती जा रही है, जिसका खासा असर हिमालय के ग्लेशियरों पर पड़ता नजर आ रहा है.
ग्लेशियरों के बढ़ते तापमान पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक समीर तिवारी ने बताया कि ग्लेशियर हिमनद यानी जमी हुई नदी का एक रूप है. जिसे बनने में हजारों साल लगते हैं. ग्लेशियर शुद्ध जल के स्रोत हैं, दुनिया में जितनी भी मुख्य नदियां हैं, उनकी उत्पत्ति ग्लेशियर से ही होती है.
उन्होंने कहा कि हमारे देश में ग्लेशियर तीन-चार हज़ार मीटर की ऊंचाई से शुरू है जो कि बहुत कम ऊंचाई है, इस वजह से यहां के ग्लेशियर, आबादी के बेहद नजदीक हैं जब जंगलों में आग लगती है तो आग की तपिश सीधा ग्लेशियरों पर असर डालती है. आग की तपिश से ग्लेशियर के माइक्रोक्लाइमेट पर फर्क पड़ता है, साथ ही जंगलों में आग लगने से निकलने वाली डस्ट भी ग्लेशियरों के लिए हानिकारक है. इन सबसे ग्लेशियरों का तापमान बढ़ता है और ग्लेशियर अपनी जगह से आगे बढ़ने लगते हैं. उन्होंने कहा कि भविष्य में पीने के साफ और प्रयाप्त पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए 21वीं सदी में ग्लेशियरों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है. इसके लिए जंगलों को वनाग्नि से बचाना बेहद जरूरी है.
वहीं पर्यावरणविद अनिल जोशी ने बताया कि वातावरण में तापक्रम किसी भी कारण से बढ़ता है तो इसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ता है. हिमालय क्षेत्र सबसे संवेदनशील हैं, हम पहले ही जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम झेल रहे हैं. वहीं पहाड़ों के जंगलों में आग लगना एक गंभीर विषय है. उन्होंने बताया कि जंगल वातावरण के तापक्रम को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा माध्यम है, जंगल में ही आग लग जाने से जंगल विपरीत व्यवहार करता है. लगातार वनाग्नि से तापमान बढ़ता है जिसका सीधा असर ग्लेशियरों पर पड़ता है.
आपको पिछले कुछ वर्षों के दौरान जंगल में लगी आग के आंकड़ों से रूबरू कराते हैं.
- साल 2014 में जंगलों में आग लगने के 515 मामले सामने आये थे, जिसमें करीब 930.33 हेक्टेयर वन जले और 23.57 लाख का नुकसान हुआ था.
- साल 2015 में जंगलों में आग लगने के 412 मामले सामने आये थे, जिनमें लगभग 701.61 हेक्टेयर वन जले और 7. 94 लाख की संपदा का नुकसान हुआ.
- साल 2016 में जंगलों में तकरीबन 4433.75 हेक्टेयर वन जलकर राख हुए और 46.50 लाख का नुकसान हुआ था. साल 2017 में जंगलों में आग लगने के 805 मामले सामने आये, जिसमें करीब 1244.64 हेक्टेयर वन जल कर राख हुए और 18.34 लाख का नुकसान हुआ. साल 2018 में जंगलों में आग लगने के 2150 मामले सामने आये थे, जिनसे लगभग 4480.04 हेक्टेयर वन जले थे, और 86.05 लाख की संपदा का नुकसान हुआ था.
साल 2019 में 15 फरवरी से अभी तक तकरीबन 970 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं. जिनसे अभी तक 1274.36 हेक्टेयर क्षेत्र में वन जल चुके हैं और 21.86 लाख की संपदा का नुकसान हुआ है.
वहीं जंगलों में लगने वाली आग से स्थानीय निवासियों को भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जंगलों के आस- पास रहने वाले स्थानीय निवासियों के लिए कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. डॉक्टर विमलेश जोशी ने बताया कि जंगलों की आग से निकलने वाले धुएं से स्वास और अस्थमा के मरीजों को दिक्कत होती है, साथ ही इसका असर बच्चों पर भी पड़ता है और चर्म रोग का खतरा भी बना रहता है.