देहरादून:उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस ने इस बार जोर-शोर से तैयारी की थी. पिछले साल जुलाई के महीने में अपने चुनाव अभियान को धार देने के लिए कांग्रेस ने उत्तराखंड कांग्रेस के संगठन में अभिनव प्रयोग किया था. पार्टी ने एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ 5 कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए थे. इसके अलावा भी चुनाव प्रचार समिति, कोर कमेटी, समन्वय समिति, घोषणापत्र समिति, चुनाव प्रबंधन समिति समेत अनेक कमेटियां गठित की थी. लेकिन ये सब 'ढाक के तीन पात' साबित हुए.
अध्यक्ष समेत कांग्रेस के 7 बड़े पदाधिकारी हारे: आप ये पढ़कर चौंक जाएंगे कि कांग्रेस की इन समितियों के 7 अध्यक्ष बुरी तरह चुनाव हार गए. ऐसे में कांग्रेस उत्तराखंड में चुनाव कैसे जीतती ये सहज अनुमान लगाया जा सकता है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष, दो कार्यकारी अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, चुनाव प्रचार समिति के संयोजक और घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए. जब ये महत्वपूर्ण पद संभाल रहे पदाधिकारी नेता खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए तो फिर कांग्रेस को कहां से बचा पाते.
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हरीश रावत की हार ने दिया सदमा: हरीश रावत को कांग्रेस ने बड़े जोर-शोर से उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था. हरीश रावत खुद को लगातार मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते रहे. हालांकि इसको लेकर उनकी नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह से नोकझोंक भी होती रही. मामला हाईकमान तक भी गया. हाईकमान को कहना पड़ा कि सीएम चुनाव के रिजल्ट आने के बाद ही तय होगा. लेकिन हरीश रावत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वो आए दिन मुख्यमंत्री बनेंगे तो क्या करेंगे इसकी अपनी कार्ययोजना सोशल मीडिया के माध्यमों से लोगों के सामने लाते रहे.
10 मार्च को CM बनने का सपना टूट गया: 10 मार्च की सुबह मतगणना से पहले तक बढ़-चढ़कर बयान दे रहे हरीश रावत जब काउंटिंग शुरू होते ही पीछे चल रहे थे तो उनके समेत अन्य लोगों ने भी नहीं समझा होगा कि हरदा के साथ 'खेला' होने जा रहा है. आखिर दोपहर 12 बजे तक साफ हो गया कि हरीश रावत की मुख्यमंत्री बनने की तमन्ना का दम अगले 5 साल के लिए तो निकल ही गया है. हरीश रावत लालकुआं से प्रतिष्ठित चुनाव हार चुके थे. इसके साथ ही कांग्रेस को भी उनकी हार का बड़ा झटका लग चुका था.
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गणेश गोदियाल भी फुस्स पटाखा साबित हुए: मतगणना शुरू होने से पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के एक से बढ़कर एक बयान आ रहे थे. वो हर उस कड़े शब्द को बीजेपी के लिए प्रयोग कर रहे थे जो वो संसदीय ढंग से बोल सकते थे. जब मतगणना चल रही थी तो तब भी परिणाम कभी आगे कभी पीछे जा रहा था और गणेश गोदियाल समेत बाकी कांग्रेसियों को भी उनकी जीत की उम्मीद बनी हुई थी. लेकिन जैसे ही बीजेपी के धनसिंह रावत ने अपराजेय बढ़त बनाई, गणेश गोदियाल के 'हाथों के तोते उड़ गए'. कहां उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनाने का सपना था और कहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अपनी सीट ही नहीं बचा पाए.
रणजीत रावत के अरमान भी रहे अधूरे:कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत के साथ इस चुनाव में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ. हरीश रावत के साथ उनकी लड़ाई ने दोनों नेताओं समेत कांग्रेस को भी भारी नुकसान पहुंचाया. रणजीत रावत रामनगर में रहते हैं. उन्होंने पांच साल रामनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मेहनत की. जब टिकट बंटने की बारी आई तो हरीश रावत ने रामनगर से चुनाव लड़ने की मांग कर दी. रणजीत रावत ने इशारों-इशारों में कड़ा विरोध भी किया. लेकिन हरीश रावत को रामनगर से टिकट दे दिया गया.