देहरादून: 31 मई को उत्तराखंड की चंपावत विधानसभा सीट पर उपचुनाव (Assembly by election in Champawat on May 31) होने जा रहा है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. दरअसल धामी अपनी परंपरागत सीट खटीमा से विधानसभा का चुनाव हार गए थे. इसके बावजूद बीजेपी ने उन पर विश्वास जताते हुए फिर से मुख्यमंत्री बनाया. धामी के चुनाव लड़ने के लिए चंपावत से पार्टी के विधायक कैलाश गहतोड़ी ने अपनी सीट छोड़ दी थी. सीएम धामी को 6 महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता लेनी है. इसलिए चंपावत विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. आइए अब आपको बताते हैं उत्तराखंड में कब-कब मुख्यमंत्रियों ने उप चुनाव लड़े और उनका क्या परिणाम रहा.
2002 में नारायण दत्त तिवारी जीते उपचुनाव: उत्तराखंड बनने के बाद 9 नवंबर 2000 में बीजेपी की अंतरिम सरकार बनी थी. 2002 में जब उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने बाजी मारी. कांग्रेस हाईकमान ने नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया. ऐसे में नारायण दत्त तिवारी को उप चुनाव लड़कर विधानसभा की सदस्यता लेनी पड़ी. एनडी तिवारी ने रामनगर सीट से उपचुनाव लड़ा था.
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कांग्रेस विधायक योगंबर रावत ने खाली की थी सीट: कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी के लिए पार्टी के रामनगर से विधायक योगंबर रावत ने सीट खाली कर दी थी. इस तरह एनडी तिवारी ने रामनगर सीट से उपचुनाव लड़कर विधानसभा की सदस्यता हासिल की थी. एनडी तिवारी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री थे जो उपचुनाव लड़े और धमाकेदार अंदाज में जीते.
सिर्फ नामांकन के दिन आए थे तिवारी: दिलचस्प बात ये है कि नारायण दत्त तिवारी रामनगर से उपचुनाव लड़ रहे थे, लेकिन वो रामनगर सिर्फ नामांकन के दिन आए थे. इसी दिन उन्होंने एमपी हिंदू इंटर कॉलेज के मैदान में जनसभा को संबोधित किया था. एनडी तिवारी ने मंच से जनता से पूछा था कि क्या वह चुनाव प्रचार करने यहां आएं. इस पर जनता ने हाथ उठाकर उन्हें बिना शर्त जिताने का विश्वास दिलाया था. तिवारी ने 75 प्रतिशत से अधिक मत हासिल कर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. भाजपा प्रत्याशी महज ढाई हजार मत ही हासिल कर पाए थे.
2007 में बीसी खंडूड़ी जीते उपचुनाव: उत्तराखंड के इतिहास में भुवन चंद्र खंडूड़ी दूसरे मुख्यमंत्री थे जो विधानसभा का उपचुनाव लड़े और जीते. 2007 में कांग्रेस को हराकर बीजेपी ने उत्तराखंड की सत्ता हासिल की थी. बीजेपी हाईकमान ने भुवन चंद्र खंडूड़ी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया था. खंडूड़ी तब पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद थे. बीसी खंडूड़ी को 6 महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता लेनी जरूरी थी. खंडूड़ी पौड़ी गढ़वाल जिले की यमकेश्वर सीट से उपचुनाव लड़े थे.
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कांग्रेस के विधायक ने खंडूड़ी के लिए खाली की थी सीट: 2007 के विधानसभा सीट उपचुनाव में बड़ा दिलचस्प नजारा हुआ था. बीसी खंडूड़ी के लिए बीजेपी विधायक ने नहीं बल्कि कांग्रेस के विधायक ने सीट खाली की थी. धूमाकोट से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक टीपीएस रावत ने भुवन चंद्र खंडूड़ी के लिए अपनी सीट खाली कर दी थी. इससे उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक के कांग्रेसी नेता हैरान रह गए थे.
फौजी ने फौजी के लिए खाली की थी सीट: दरअसल भुवन चंद्र खंडूड़ी और टीपीएस रावत दोनों ही फौजी अफसर रहे थे. खंडूड़ी मेजर जनरल पद से रिटायर हुए थे. टीपीएस रावत लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए थे. इस तरह बीसी खंडूड़ी फौज में टीपीएस रावत के सीनियर अफसर थे. टीपीएस रावत ने इसी का सम्मान करते हुए अपने सीनियर अफसर रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी के लिए अपनी धूमाकोट विधानसभा सीट खाली कर दी थी.