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कुमाऊं के इस मेले में कभी रण बांकुरे दिखाते थे अपना युद्ध कौशल, सिमटी ये अनोखी परंपरा - Almouda News

पांच दिनों तक चलने वाला स्याल्दे बिखौती का मेला हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. जिसका बीते दिन समापन हो गया है. मेला स्थानीय लोगों की सामाजिक समरसता को दर्शाता है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

धूम-धाम से मनाया गया स्याल्दे बिखौती मेला.

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Published : Apr 19, 2019, 11:15 AM IST

Updated : Apr 19, 2019, 1:14 PM IST

द्वाराहाट/अल्मोड़ा: उत्तराखंड अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए देश-विदेश में विशेष पहचान रखता है. यहां वर्ष भर लगने वाले पारंपरिक मेले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं जो लोगों की आस्था का केन्द्र भी हैं. इसी में स्याल्दे बिखौती मेला भी एक है. जो द्वाराहाट में वैशाखी के दिन लगता है मेला स्थानीय लोगों की सामाजिक समरसता को दर्शाता है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

स्याल्दे बिखौती मेले को देखने दूर-दूर से पहुंचे लोग.

पांच दिनों तक चलने वाला स्याल्दे बिखौती का मेला हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. जिसका बीते दिन समापन हो गया है. मेले के ऐतिहासिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि जब द्वाराहाट में दसवीं से तेरवीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं का राज था. उसी समय द्वाराहाट के मंदिर में कत्यूरी राजाओं ने एक सुंदर सरोवर बनाया था, जिसमें कमल खिला करते थे.

सरोवर के किनारे शीतला देवी और कोर्ट कांगड़ा देवी का मंदिर भी है. वहीं इसी स्थान पर कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव और धाम देव की पूजा की जाती थी. जो आगे चलकर शीतला पुष्कर मैदान के नाम से विख्यात हुआ. अतीत से आज तक इसी मैदान पर स्याल्दे बिखौती का मेला लगता है. पाली-पछाऊं का ऐतिहासिक पौराणिक स्याल्दे बिखौती मेला हर साल बैसाखी से 1 दिन पहले द्वाराहाट से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित बिमांडेश्वर मंदिर में रात को शुरू होता है.

मंदिर में स्थानीय लोग ढोल-दमाऊ की थाप पर झोड़ा-चांचरी नृत्य करते हुए मंदिर पहुंचते हैं. रात भर बिमांडेशवर मंदिर में झोड़ा- चांचरी गाने के बाद सुबह सुरभि और नंदिनी नदी के संगम स्थल पर स्नान होता है. जिसके बाद मंदिर परिसर में पूजा पाठ करने के बाद लोग अपने अपने गांवों को लौट जाते हैं. इसी स्थान पर कत्यूरी राजा ब्रम्हदेव और धाम देव की पूजा की जाती है.

इस मेले में योद्धा अपने युद्ध कौशल का परिचय देते थे. इतिहास बताता है कि यह पाषाण युद्ध के रूप में होता था अब यह बंद हो गया है. वहीं अब यह मेला ओड़ा भेटने की रस्म का होता है. इसमें तीन मुख्य रूप से ओड़ा भेटते हैं. ऑल धड़ा और नौजयुला और गरख धड़ा बारी-बारी से ओड़ा निशानों के साथ भेटते हैं. अगले दिन वैशाखी को द्वाराहाट में भव्य सांस्कृतिक झांकी और कार्निवल के साथ मेले का आगाज होता है.

दोपहर 3 बजे मेले के तहत नौज्युला धड़े के लोग ओड़ा भेटने की रस्म अदा करते हैं. 4 बजे के आसपास ऑल धड़े और फिर गरख धड़े के लोग बारी-बारी से ओड़ा भेटने की रस्म अदा करते हैं. द्वाराहाट के स्याल्दे बिखौती मेले का ऐतिहासिक के साथ ही सामाजिक महत्व भी है. जो सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है.

Last Updated : Apr 19, 2019, 1:14 PM IST

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