द्वाराहाट/अल्मोड़ा: उत्तराखंड अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए देश-विदेश में विशेष पहचान रखता है. यहां वर्ष भर लगने वाले पारंपरिक मेले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं जो लोगों की आस्था का केन्द्र भी हैं. इसी में स्याल्दे बिखौती मेला भी एक है. जो द्वाराहाट में वैशाखी के दिन लगता है मेला स्थानीय लोगों की सामाजिक समरसता को दर्शाता है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.
पांच दिनों तक चलने वाला स्याल्दे बिखौती का मेला हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. जिसका बीते दिन समापन हो गया है. मेले के ऐतिहासिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि जब द्वाराहाट में दसवीं से तेरवीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं का राज था. उसी समय द्वाराहाट के मंदिर में कत्यूरी राजाओं ने एक सुंदर सरोवर बनाया था, जिसमें कमल खिला करते थे.
सरोवर के किनारे शीतला देवी और कोर्ट कांगड़ा देवी का मंदिर भी है. वहीं इसी स्थान पर कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव और धाम देव की पूजा की जाती थी. जो आगे चलकर शीतला पुष्कर मैदान के नाम से विख्यात हुआ. अतीत से आज तक इसी मैदान पर स्याल्दे बिखौती का मेला लगता है. पाली-पछाऊं का ऐतिहासिक पौराणिक स्याल्दे बिखौती मेला हर साल बैसाखी से 1 दिन पहले द्वाराहाट से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित बिमांडेश्वर मंदिर में रात को शुरू होता है.