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आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहे श्वेतांक, मोती की खेती कर दे रहे रोजगार

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Published : Oct 4, 2020, 2:29 PM IST

वाराणसी के रहने वाले श्वेतांक अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर मोती की खेती करने का काम कर रहे हैं. जिले के चिरईगांव ब्लॉक स्थित नारायनपुर गांव के रहने वाले श्वेतांक पाठक का कहना है, कि उन्होंने इंटरनेट में वीडियो देखकर खेती की तकनीक के बारे में जानकारी ली और अब गांव के कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

मोती की खेती करते श्वेतांक
मोती की खेती करते श्वेतांक

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया था. पीएम के इस सपने को साकार करने की कोशिश कर रहे हैं काशी के श्वेतांक. जिले के चिरईगांव ब्लॉक के नारायणपुर गांव के रहने वाले श्वेतांक पाठक और उनके कुछ साथियों ने अपने गांव में ही मोती की खेती शुरू की है. कृत्रिम तालाब में सीपीओ की मदद से वह ना सिर्फ डिजाइनर मोती तैयार कर रहे हैं, बल्कि कई युवाओं को रोजगार भी दे चुके हैं. जिसकी वजह से पीएम मोदी ने भी इन युवाओं की तारीफ अपने ट्विटर हैंडल पर की है.

मोती की खेती करते श्वेतांक

नौकरी की जगह चुना आत्मनिर्भर होना
जिले के नारायणपुर गांव के रहने वाले श्वेतांक पाठक बीएड पास हैं. नौकरी रास न आने के कारण उन्होंने कुछ ऐसा करने का सोचा जिससे न केवल वह आत्मनिर्भर बने बल्कि गांव के कई नौजवानों को रोजगार भी दे रहे हैं. श्वेतांक पाठक ने बताया कि वह कुछ अलग करना चाह रहे थे. इसके लिए उन्होंने इंटरनेट के जरिए वीडियो से खेती की तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल की. फल, सब्जी से कुछ अलग और यूनिक करने की चाह ने श्वेतांक को मोती की खेती की तरफ आकर्षित किया. जिसके बाद कुछ फुट गहरे गड्ढे में पानी भरने के बाद कुछ तकनीकी मदद से महज 30 से 32 हजार रुपये के खर्च में किस तरह मोती की खेती संभव है. इसकी ट्रेनिंग इंटरनेट के जरिए ली. इसके बाद श्वेतांक ने अपने साथ रोहित और मोहित को जोड़ा और फिर जुट गए अपने इस काम को नया आयाम देने.

मोती की खेती
मोती तैयार करने की प्रक्रियाश्वेतांक के साथ उनके दोस्त रोहित और मोहित भी इस काम से जुड़े हैं. मोहित ने बताया कि मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जो सीप में पैदा होता है. प्राकृतिक रूप से एक मोती का निर्माण तब होता है, जब एक बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के अंदर प्रवेश कर जाते हैं या अंदर डाले जाते हैं और सीप उन्हें बाहर नहीं निकाल पाता. जिसकी वजह से सीप को चुभन पैदा होती है. इस चुभन से बचने के लिए सीप अपनी लार निकालती है. जो इस कीट या रेत के कण पर जमा हो जाती है, इस प्रकार उस कण या रेत पर कई परत जमा होती रहती है और इस तरीके को प्राकृतिक मोती उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है. तालाब का है बड़ा रोलमोती की खेती शुरू करने के लिए पहले तालाब या हौज में सींपो को इकट्टा करना होता है. इसके बाद छोटी सी सीप में शल्य क्रिया के बाद इसके भीतर 4 से 6 मिमी व्यास वाले साधारण डिजाइनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, ओम, स्वास्तिक वाली आकृतियां डाली जाती हैं. फिर सीप को बंद किया जाता है. लगभग 8 से 10 माह के बाद सीप को चीर कर डिजाइनर मोती निकाल लिया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि श्वेतांक अब बहुत जल्द देश में युवाओं को इसके लिए ट्रेनिंग भी देने जा रहे हैं. केंद्र सरकार की एक सहयोगी संस्था की मदद से उन्हें बतौर ट्रेनर नियुक्त भी किया गया है.

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