वाराणसी:शुक्रवार को नवरात्र का चौथा दिन है. आज शक्ति के कुष्मांडा रूप के पूजन का विधान है. माता कुष्मांडा के दर्शन मात्र से ही भय से मुक्ति मिलती है. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजी भी कहा जाता है. इनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, पुष्प, शंख चक्र, गदा, हस्त और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. इनके अलावा मां के हाथों में एक कलश भी विराजमान होता है, जिसमें असुरों का रक्त भरा होता है.
काशी के ज्योतिषाचार्य शशि शेखर त्रिवेदी के अनुसार सिंह पर सवार माता कुष्मांडा की उपासना करने से भय से मुक्ति मिलती है. माता को कुष्मांड का भोग अतिप्रिय है और इन्हें कुष्मांड (कोहड़ा) की बलि दी जाती है. इसके कारण माता के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा. माता को स्वेत पुष्प और कुष्मांड का भोग लगाने से मां प्रसन्न होकर भक्त को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कुष्मांडा को सभी दुखों से हरने वाली मां भी कहा जाता है. मां का ये इकलौता स्वरूप है, जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.