उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

विश्व टीबी दिवस: इस बीमारी को नजरअंदाज करना बन सकता है जानलेवा

हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस मनाया जाता है. इसे टीबी कहा जाता है. इस दिन टीबी जैसी गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से यह दिवस मनाया जाता है. टीबी का पूरा नाम ट्यूबरकुल बेसिलाइ है. यह बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण पनपती है.

By

Published : Mar 24, 2020, 11:19 PM IST

etv  bharat
विश्व क्षय रोग दिवस

वाराणसी:24 मार्च का दिन तपेदिक को लेकर काफी खास है, क्योंकि इस दिन इस बीमारी के बैक्टीरिया की पहचान हुई थी. डॉ. रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च 1882 को यह ऐलान किया था कि उन्होंने माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस का पता लगाया है. यह इंसानों में तपेदिक की बीमारी के लिए जिम्मेदार है और यही वजह है कि दुनिया भर में 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है.

विश्व क्षय रोग दिवस
कई नामों से जाना जाता है तपेदिक रोग कोटीबी यानी कि बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है. इसका पूरा नाम ट्यूबरकुल बेसिलाइ है. यह एक छूत का रोग है और इससे प्रारंभिक अवस्था में ही यदि नहीं रोका जाता है तो यह जानलेवा साबित होता है. यह व्यक्ति को धीरे धीरे मारता है. टीबी रोग को अन्य नाम जैसे तपेदिक रोग, यक्ष्मा, क्षय रोग के नाम से जाना जाता है. यदि हम बात करें तो दुनिया में 6 से 7 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं. प्रतिवर्ष 25 से 30 हजार लोगों की मौत इससे हो जाती है. देश में हर 3 मिनट में 2 मरीज इसके के कारण दम तोड़ते हैं. हर दिन चालीस हजार लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है.बैक्टीरिया संक्रमण के कारण फैलता है टीबीटीबी रोग एक बैक्टेरिया संक्रमण के कारण होता है. शरीर के अन्य भागों में भी सकता है. फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूट्रस, लीवर, किडनी ,गले आदि में भी टीबी हो सकती है. बता दे कि फेफड़े के अलावा दूसरे कोई टीबी एक दूसरे में नहीं फैलती है. टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, सही इलाज न होने से उसको बेकार कर देती है .फेफड़ों की टीबी फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है तो यूट्रस की टीबी बांझपन की वजह बनती है, ब्रेन की टीबी में मरीज को दौरेपड़ने लगते हैं तो वही हड्डी की टीबी हड्डी को गला सकती है .भारत में टीबी के मरीजों की संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा

भारत में हर साल 20 लाख लोग टीबी के चपेट में आते हैं. लगभग 50 हजार लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं. भारत में टीबी के मरीजों की संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है. यदि एक औसत निकाले तो दुनिया के 30 प्रतिशत टीबी रोगी भारत में पाए जाते हैं.

ऐसे फैलता है ये रोग

यदि हम इस रोग के फैलाव की बात करें तो बैक्टीरिया सांस के द्वारा फेफड़ों में पहुंच जाते है. फेफड़ो में यह अपनी संख्या बढ़ाते रहते है. इनके संक्रमण से फेफड़े में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं. जिसको एक्स-रे के द्वारा जाना जाता है. घाव होने की अवस्था के लक्षण हल्के नजर आते हैं. यदि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो इसके लक्षण नजर आने लगते हैं और वह पूरी तरीके से रोगग्रस्त हो जाते है. टीबी के रोकथाम के लिए मरीजों के परिजनों को भी दवा दी जाती हैं, ताकि मरीज का इंफेक्शन बाकी सदस्यों में न फैले.

15 दिन पुरानी खांसी पर ही क्षय रोग का संक्रमण होने की आशंका व्यक्त की जाती है. डॉट्स पद्धति में मरीज इलाज कराता है तो उसे क्षय रोग से मुक्त होने में 10 महीने से भी कम समय लगता है. शर्त यही है कि दवा नियमित और रोज लेना चाहिए. जो लोग बीच में दवा खाना छोड़ देते हैं उनके क्षय रोग के कीटाणु नष्ट नहीं होते हैं बल्कि दवा के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं. क्षयरोग प्रमुखता 15 से 60 वर्ष की आयु में होता है.
डॉ. वकील अहमद अंसारी

ABOUT THE AUTHOR

...view details