वाराणसी:वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से 24 मार्च से लेकर अब तक लॉकडाउन को चार चरणों में लागू किया जा चुका है, जिसके कारण अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है. इस बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्त मंत्री ने राहत पैकेज देते हुए एमएसएमई सेक्टर को भी 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज में काफी कुछ दिया, लेकिन इन सबके बीच सवाल उठने लगा है कि आखिर वास्तव में क्या यह पैकेज लघु कुटीर उद्योग की छवि बदल पाएगा.
बनारस का लकड़ी खिलौना कारोबार लकड़ी के खिलौनों पर लॉकडाउन का असर
प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सदियों पुराने कुटीर उद्योग लकड़ी के खिलौनों की हालत इस लॉकडाउन पीरियड में बद से बदतर हो चुकी है. हालात यह है कि अब तक लगभग 8 करोड़ से ज्यादा का आर्डर कैंसिल हो चुका है और पंद्रह सौ से ज्यादा परिवार भुखमरी की कगार पर हैं. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है व्यापारी और कारीगर इस बात को लेकर अब तक कुछ भी नहीं जानते कि उन्हें राहत पैकेज में एमएसएमई सेक्टर को मिले फायदे मिलेंगे कैसे.
वाराणसी के खोजवा इलाके की कश्मीरी गंज गली जिसे लकड़ी के खिलौना उद्योग के लिए जाना जाता है. घर-घर में लगी मशीनों पर खूबसूरत सजावटी लकड़ी के खिलौनों के साथ परंपरागत और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का काम सदियों से होता आ रहा है, लेकिन इस वक्त हर घर के बाहर हाथों पर हाथ रखे कारीगर खाली बैठे हैं. इस मोहल्ले में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित रामेश्वर सिंह का भी मकान है.
करोड़ों का ऑर्डर हुआ कैंसिल
रामेश्वर सिंह लकड़ी के खिलौना उद्योग को फर्श से अर्श पर पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिए जाने वाले तोहफे के अलावा महत्वपूर्ण आयोजनों में लकड़ी के तैयार खिलौने ही दिए जाने लगे, लेकिन जब लॉकडाउन है तो इस उद्योग की अब कमर टूट चुकी है. रामेश्वर सिंह की माने तो लगभग दो करोड़ रुपए का सिंदूरदान तैयार पड़ा है और आर्डर कैंसिल है, जबकि एक करोड़ रुपए के सजावटी सामान तैयार करने के बाद उसे डंप करके रखना पड़ा है. इतना ही नहीं जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, जापान समेत कुल 15 विदेशी-देशों से आए 5 करोड़ के ऑर्डर भी कैंसिल हो चुके हैं.
लकड़ी खिलौनों को मिला जीआई का टैग
2014 में लकड़ी खिलौनों को जीआई का टैग भी मिला है, लेकिन इस वक्त लगातार कैंसिल हुए ऑर्डर के बाद पूरा उद्योग बर्बाद हो चुका है. कारीगरों का कहना है कि 200 से लेकर 500 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी पर काम करने वाले लेबर बेरोजगार हैं, मशीनें बंद पड़ी हैं. यह कब शुरू होंगी यह किसी को नहीं पता है.
कारीगरों का कहना है की एमएसएमई सेक्टर को भले वित्त मंत्री ने राहत दी हो, लेकिन यह हम तक पहुंचेगी कैसे, हमें खुद नहीं पता है. कारीगरों और व्यापारियों का कहना है कि कम से कम सरकार को 3 महीने तक बिजली मुक्त करने के साथ सभी कारीगरों व्यापारियों को आयुष्मान योजना से जोड़ने का काम करना चाहिए.
सभी का शिल्पी कार्ड तैयार है और इसी कार्ड पर इन्हें आर्थिक मदद पांच हजार तक प्रतिमाह दिए जाने की घोषणा के साथ 10 लाख रुपये का बीमा भी होना चाहिए, जिससे सदियों से चले आ रहे इस खिलौना उद्योग को संजीवनी मिल सके और भुखमरी की कगार पर पहुंच गए इस उद्योग से जुड़े व्यापारियों कारोबारी वैश्विक महामारी और महामंदी के इस दौर में इसे बचा सके.