वाराणसी: पूरी दुनिया में सदियों से गुलाबी मीनाकारी की काम सिर्फ वाराणसी में होता आया है. यह काम मुगलकाल यानी पिछले 400 वर्षों से सिर्फ पुरुष ही करते आ रहे थे. खास बात ये है कि पुरुष प्रधान कहे जाने वाले इस हुनर में महिलाओं ने मिथक तोड़ कर अपनी जगह बनाई है. वाराणसी के गाय घाट इलाके में कुछ छात्राओं और गृहिणियों ने इसकी शुरुआत की है.
गुलाबी मीनाकारी का हुनर सीख महिलाओं ने तोड़ी सैकड़ों साल पुरानी परंपरा. बता दें, 2015 में गुलाबी मीनाकारी को जीआई टैग के तहत इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी का दर्जा मिलने के बाद महिलाओं के लिए यह काम संभव हुआ. टाइटन ने अपनी सीएसआर एक्टिविटी के तहत ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन के साथ मिलकर महिलाओं का ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया. इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में महिलाएं हुनर सीखकर दूसरी महिलाओं को भी सिखाने के लिए तैयार हैं.
कैसे होता है गुलाबी मीनाकारी का काम
ज्यादातर गुलाबी मीनाकारी का काम चांदी पर होता है. चंदन के तेल में सोने की भस्म और प्राकृतिक रंग के मिश्रण से ज्वैलरी, मूर्तियां और अन्य आइटम सजाए जाते हैं. इसके बाद इन्हें फर्नेस में 1200 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पकाया जाता है. यह तब तक किया जाता है, जबतक की सभी जरूरी रंग उस कलाकृति पर पुख्ता न हो जाएं. जिस तरह से इन महिलाओं ने सारे विरोध को दरकिनार कर पुरुष प्रधान हुनर में अपनी पैठ बनाई है, वह अपने आप में काबिले-तारीफ है. उनकी यह कोशिश समाज के लिए सकारात्मक सन्देश है कि अबला कही जाने वाली महिलाएं ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं है.
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