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क्यों मनाई जाती है कजरी तीज, पूर्वांचल के खास त्योहार का है विशेष महत्व

पूर्वांचल में भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती हैं. इस दिन महिलाओं संग कुंवारी कन्याएं भी व्रत-पूजन कर अपने लिए अच्छे पति की कामना करती हैं. ईटीवी भारत ने वाराणसी जिले के एक घर में पहुंचकर वहां कजरी गीत गा रही और मेहंदी लगा रही महिलाओं से इस त्योहार के महत्व के बारे में जाना.

पूर्वांचल वाली कजरी तीज
पूर्वांचल वाली कजरी तीज

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Published : Aug 6, 2020, 8:52 PM IST

वाराणसी: भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती हैं. कजरी तीज को बूढ़ी तीज, सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से पति की लंबी आयु होने के साथ सुख-समृद्धि और मनोकामना की पूर्ति होती है. इस व्रत में शाम को चंद्रमा के निकलने के बाद उसे अर्घ्य देकर ही महिलाएं व्रत खोलती हैं. महिलाओं संग कुंवारी कन्याएं भी व्रत-पूजन कर अपने लिए अच्छे पति की कामना करती हैं. पूर्वांचल में गंगा घाट के किनारे बसने वाले सभी जिलों में रात में महिलाएं पूरी रात कजरी गीत गाती हैं, जिसे रतजगा भी कहा जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने कजरी गीत गा रही और मेहंदी लगा रही महिलाओं से इस त्योहार के विशेष महत्व के बारे में जाना.

पूर्वांचल वाली कजरी तीज.

ढोलक की थाप पर कजरी गाती हैं महिलाएं
कजरी गीत है- पिया मेंहदी मंगा द मोती झील से जाके साइकिल से ना. बता दें कि कजरी गीत मुख्य तौर पर अर्द्धशास्त्रीय गीत है, जिसे महिलाएं ढोलक की थाप पर गुनगुनाती हैं. कजरी तीज मनाने वाली वंदना ने बताया कि यह पति-पत्नी के बीच के चुहलबाजी को दर्शाने का एक मधुर साधन और माध्यम बन जाता है. उन्होंने इस गीत के पीछे का सार बताया कि सावन के महीने में लड़की का भाई उसे मायके ले जाने के लिए ससुराल आता है, लेकिन लड़की नहीं जाना चाहती. वह सोचती है कि वह सावन की कजरी अपने पति के साथ ही मनाए और इसी को लेकर यह गाना भी गाया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. कजरी गीत में ननद-भाभी, देवर-भाभी, पति-पत्नी के प्रेम को गानों के माध्यम से प्रकट किया जाता है.

पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है कजरी तीज
आकांक्षा ने बताया कि महिलाओं को साल में सोलह श्रृंगार कर अपने पति के साथ त्योहार मनाने के कुछ ही मौके मिलते हैं. उनमें से एक कजरी तीज भी है. आकांक्षा ने बताया कि वह उनके पति सभी लोग मिलकर कजरी गाते और मनाते हैं. यह रूठने मनाने का खास त्योहार है. यह सभी के दिल के बेहद करीब है और हर साल भगवान की पूजा-अर्चना के साथ इसे मनाया जाता है.

लॉकडाउन में सिंगापुर से वाराणसी आए त्रिपाठी बताते हैं कि उन्हें अरसे बाद फिर से वाराणसी में पुरानी परंपरा को देखने का मौका मिला है, जो कि उनके लिए बेहद खास है. उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है. उन्होंने कहा कि हमें अच्छा लगता है कि आज भी बनारस में ऐसी परंपराएं जीवंत हैं, जो कि हमारे शहर और हम सबकी जिंदादिली भी है.

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