वाराणसी: ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे को लेकर शुक्रवार को जिला अदालत ने आदेश दे दिए हैं. इससे पहले भी एएसआई सर्वे को लेकर कोर्ट की तरफ से आदेश दिया गया था. हालांकि, बाद में इस पर स्टे भी ले लिया गया था, जिसकी वजह से 1991 से चले आ रहे ज्ञानवापी मुकदमे में सर्वे की कार्रवाई पूरी नहीं हो सकी थी. लेकिन, अब जब न्यायालय ने एएसआई सर्वे का आदेश पुनः दिया है और इस मुकदमे में आधार श्रृंगार गौरी मामला बना है तो उसके बाद अब किस दिशा में यह पूरा मामला आगे बढ़ेगा और कैसे यह कार्रवाई पूरी होगी यह जानना बेहद जरूरी होगा.
ज्ञानवापी मस्जिद की दीवार वकील सुधीर कुमार त्रिपाठी ने बताया कि एएसआई सर्वे की हिंदू पक्ष की तरफ से काफी पहले से मांग की जा रही थी. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वे को लेकर 4 अगस्त तक एएसआई के डायरेक्टर को तलब करते हुए कोर्ट ने पूरे मामले में कैसे और क्या कार्रवाई होगी. यह स्पष्ट करने के लिए कहा है. उन्होंने कहा ऐसे विवादित मामलों में एएसआई की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि अयोध्या में विवादित भूमि को लेकर भी उच्चतम न्यायालय में एएसआई की रिपोर्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बाद में राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया था. इसलिए हम सभी यही मानकर चल रहे हैं कि एएसआई सर्वेक्षण के बाद दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और ज्ञानवापी को लेकर चल रहा लंबा विवाद खत्म होगा.
ज्ञानवापी मस्जिद की दीवार वकील सुधीर कुमार त्रिपाठी ने बताया कि जिला न्यायालय के आदेश पर यह सर्वे होना है. इसमें वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग और उसके परिसर को नहीं छुआ जाएगा, क्योंकि इस पर उच्चतम न्यायालय का स्टे है. जिस पर कोर्ट ने 19 मई को जांच से इनकार कर दिया है. अब एएसआई सर्वे शिवलिंग को छोड़कर बाकी हिस्से का किया जाएगा. उन्होंने बताया कि प्राचीन मंदिर का हिस्सा जिसे हम लगातार श्रृंगार गौरी और विश्वेश्वर मंदिर का हिस्सा बता रहे हैं, उसकी कार्बन डेटिंग भी की जा सकती है. क्योंकि, कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि पूरे परिसर में मिले खंबे किस आधार पर बनाए गए हैं और यह कितने पुराने हैं, इसकी रिपोर्ट भी एएसआई को देनी है.
इसके अलावा पश्चिमी दीवार जो पूरी तरह से मंदिर का भग्नावशेष स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है. उस दीवार को भी रडार तकनीक के जरिए सर्वे पूरा करके इसके निर्माण के लिए प्रयुक्त सामग्री और इसका जीवन कितना पुराना है यह भी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करनी है. हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद अब प्रतिवादी यानी मुस्लिम पक्ष इस फैसले से असंतुष्ट दिखाई दे रहा है. उनका कहना है कि जब पहले से ही एक मामले में इस प्रकरण में परिसर के सर्वे पर रोक लगी है, तो दूसरा आदेश इस पर कैसे एप्लीकेबल होगा, इसे लेकर वह हाईकोर्ट की शरण में जाएंगे.
ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिला कथित शिवलिंग इसके पहले हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने भी न्यायालय में अपनी दलील में यह कहा था कि ज्ञानवापी परिसर में ढाई फीट ऊंची गोलाकार शिवलिंग जैसी आकृति के ऊपर अलग सफेद पत्थर लगा मिला है. उसमें 63 सेंटीमीटर उसकी गहराई पाई गई है. पत्थर की गोलाकार आकृति के बेस का व्यास 4 सीट पाया गया है. विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में यह स्पष्ट किया था कि जिस आकृति को मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है. उसमें पाइप जाने भर की भी जगह नहीं थी. उन्होंने दलील में ज्ञानवापी परिसर में कमीशन कार्रवाई के दौरान मिले स्वास्तिक, त्रिशूल, डमरू, कमल चिन्ह और घंटे के निशानों की जांच भी एएसआई से कराए जाने और इस खंभे और मिले साक्ष्यों को किस समय का है और निर्माण के लिए क्या प्रयोग हुआ है. सारी चीजें स्पष्ट करने की अपील कोर्ट से की थी. जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए इन सभी स्तर पर एएसआई से कार्रवाई करने के लिए कहा है.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस सर्वे के बाद क्या हो सकता है? एक्सपर्ट की मानें तो एएसआई के सर्वे का काम पूरा होने के बाद अदालत को इसकी रिपोर्ट दी जाएगी. रिपोर्ट देखने के बाद आगे की कार्रवाई को लेकर कोर्ट बड़ा निर्णय ले सकता है, यदि रिपोर्ट में मस्जिद के आधार के निर्माण का समय औरंगजेब के कालखंड से मेल खा जाता है तो संभावना है कि मामला शांत हो जाएगा, लेकिन यदि मंदिर के निर्माण के समय और हिंदू शासकों के काल में हिंदू वास्तु के साक्ष्य मिलते हैं तो मामला फिर से और बड़ा हो सकता है और विवाद भी आगे बढ़ने के साथ ही एक पक्ष की ओर जाता दिखाई दे सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि एएसआई की भूमिका इस मामले में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद में उनकी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही यह स्पष्ट हुआ था कि विवादित भूमि पर मंदिर के अवशेष मौजूद थे. मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद का निर्माण कराया गया था. उस वक्त भी रडार तकनीक का प्रयोग करते हुए यह सारी चीजें की गई थी जिससे खुदाई के दौरान अंदर से मिले साक्ष्य मिट्टी और निर्माण के वक्त और निर्माण सामग्री का भी पता चला था. जिसके बाद चीजें बिल्कुल साफ हो गई थी. यदि इसी तकनीक के आधार पर रडार तकनीक या फिर कार्बन डेटिंग का प्रयोग किया जाता है तो निश्चित तौर पर बहुत सी चीजें स्पष्ट होने के बाद यह मामला और भी तेजी से आगे बढ़ सकता है. फिलहाल कोर्ट ने 11 अलग-अलग बिंदुओं पर वैज्ञानिक सर्वे के लिए एएसआई के डायरेक्टर को रिपोर्ट के साथ 4 अगस्त को तलब किया है.
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