वाराणसी: "नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की" जल्द ही आपके घर-घर यही सुनने को मिलेगा. क्योंकि भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाने की तैयारी हर किसी ने शुरू कर दी है. लेकिन इस बात को लेकर कंफ्यूजन है कि आखिर जन्माष्टमी का पर्व मनाया कब जाएगा? 6 या 7 सितंबर को. इस कन्फ्यूजन की स्थिति को दूर करने के लिए वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय से ईटीवी भारत ने बातचीत की.
भक्तों को मिलेगा मनवांछित फलःप्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने बातचीत में स्पष्ट किया कि वैष्णव संप्रदाय के उदय व्यापिनी रोहिणी मताबलंबी 7 सितंबर को व्रत रखेंगे और जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे. जबकि शैव समुदाय से जुड़े लोग 6 सितंबर को इस पर्व को मनाएंगे. वहीं, अबकी श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर एक ऐसा दुर्लभ योग भी बन रहा है. जो श्री कृष्ण के जन्म उत्सव को और भी खास बना देगा और भक्तों को मनवांछित फल भी देगा.
6 सितंबर की मध्य रात्रि में अष्टमी तिथिः विनय कुमार पांडेय ने बताया कि भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी 6 सितंबर को शाम 7:08 पर लग रही है, जो 7 सितंबर के शाम 7:52 तक रहेगी. रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत 6 सितंबर को दोपहर 2:39 से हो रही है, जो 7 सितंबर की दोपहर 3:07 तक रहेगी. इसलिए 6 सितंबर की मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि और रोई नक्षत्र का जो दुर्लभ संयोग है. वह जन्माष्टमी के लिए उत्तम है. इसीलिए जन्माष्टमी 6 सितंबर की रात्रि 12:00 बजे के बाद मनाई जाएगी, तो विशेष फलदाई होगी.
विनय कुमार पांडेय ने बताया कि जन्मोत्सव और जयंती के भेद से दो प्रकार के अंतर होते हैं. इसमें भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी के नाम से जानी जाती है. अष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र से युक्त होती है तो जयंती नामक योग का निर्माण करती है. यह जयंती व्रत अन्य व्रत की अपेक्षा विशिष्ट फल प्रदान करता है. उन्होंने बताया कि विष्णु रहस्य में यह स्पष्ट है कि भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी यदि रोहिणी नक्षत्र से युक्त होती है, तो जयंती का योग बनता है. यह जयंती योग सभी पापों को नष्ट करने वाला योग माना गया है.