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पीएचडी की छात्रा ने बदली बनारसी साड़ी की तकनीक, रेशम के कीड़े की जगह इस फल से बना रही धागा

पीएचडी कर रही है बनारस की स्मार्ट बुनकर ने अपने हुनर से बनारसी साड़ी कारोबार की किस्मत बदलने की ठान ली है. जानिए कैसे इस स्मार्ट बुनकर ने बनारसी साड़ी उद्योग के लिए शुरू किए हैं कुछ नए और अनूठे प्रयास...

बनारस की स्मार्ट बुनकर अंगिका कुशवाहा
बनारस की स्मार्ट बुनकर अंगिका कुशवाहा

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Published : Feb 16, 2023, 9:39 PM IST

वाराणसी:कहते हैं जब अपनी पुरातन संस्कृति सभ्यता और कला को बचाने के लिए प्रयास किए जाएं तो वह कभी विफल नहीं होते. किए गए प्रयासों से कई लोगों की जिंदगी में भी सुधार आता है. कुछ ऐसा ही प्रयास बनारस की 27 साल की बुनकर कर रही है. जिसने बनारसी साड़ी उद्योग को एक नया मुकाम देने के लिए कुछ ऐसे बदलाव करने की कोशिश की हैं. जिसकी सराहना हाल ही में यूपी ग्लोबल समिट लखनऊ में भी देखने को मिली.

बनारस की स्मार्ट बुनकर अंगिका कुशवाहा

27 साल की उम्र में ग्रेजुएशन फिर मास्टर और अब पीएचडी कर रही बुनकर पढ़ लिखकर बनारसी साड़ी उद्योग में एक क्रांति लाने की प्लानिंग कर रही है. क्या है यह क्रांति और कौन है यह पढ़ी-लिखी बुनकर और कैसे बनारसी साड़ी उद्योग में बदलाव लाने के लिए लोग इनका साथ दे रहे हैं. आप भी जानिए स्मार्ट बुनकर की कहानी.

सीएम योगी और गृहमंत्री से मुलाकात करती बुनकर अंगिका कुशवाहा
वाराणसी के रामनगर के गोलाघाट इलाके के रहने वाले अमरेश कुशवाहा बनारस की कला को बचाने के लिए लंबे वक्त से प्रयास कर रहे हैं. बनारसी साड़ी के डिजाइन पर बीते कई सालों से वह काम करते हुए बनारसी साड़ी उद्योग को एक नया आयाम दे रहे हैं. लेकिन, अब उनकी दूसरी पीढ़ी भी इस काम को आगे बढ़ाने के लिए आगे आ चुकी है. दूसरी पीढ़ी में उनकी बेटी अंगिका कुशवाहा स्मार्ट तरीके से बुनकारी में जुटी हुई है. अमरेश कुशवाहा ने अपने कारोबार को अपनी बेटी अंगिका कुशवाहा के नाम पर ही खड़ा किया था.
पाइनएप्पल से बने सिल्क से बनती साड़ी


27 साल की अंगिका ने जयपुर के एक नामी इंस्टिट्यूट से ग्रेजुएशन और टेक्सटाइल में मास्टर डिग्री हासिल की है. इस वक्त अंगिका इसी यूनिवर्सिटी से टेक्सटाइल में पीएचडी भी कर रही है. अंगिका का कहना है कि परिवार ने उसका नाम भी इसी आधार पर रखा था. अंगिका का अर्थ होता है अंग को ढकने वाला कपड़ा. यही वजह है कि बचपन से ही उसका कपड़ों को लेकर काफी रुझान रहा है. अंगिका कहती है कि उसके खून में ही बुनकारी दौड़ती रही है. बचपन से ही उसने हथकरघा पर बुनकारी का काम करते देखा है. यही वजह है उसने इसी प्रोफेशन में जाने की ठानी.

लखनऊ ग्लोबल समिट में अंगिका कुशवाहा
अंगिका के इस काम को हाल ही में लखनऊ में हुए ग्लोबल समिट में गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी समेत अलग-अलग देशों से आए प्रतिनिधियों ने भी काफी सराहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से भी अंगिका ने लखनऊ में मुलाकात कर अपने काम और साड़ी बनाने की तकनीक के बारे में बताया. जिस पर पीएम और राष्ट्रपति अंगिका की तारीफ किए बिना नहीं रुके.
सीएम योगी और गृहमंत्री से मुलाकात करती बुनकर अंगिका कुशवाहा

अंगिका का कहना है कि उसने 17 साल की उम्र से ही बुनकारी के काम में कदम रख दिया था. अपने पिता के कारोबार में हथकरघा पर बैठकर साड़ी तैयार करने का काम शुरू किया था. तब उसे यह एहसास हुआ कि चाइना से आने वाला सिल्क कहीं ना कहीं बनारसी साड़ी को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है. इसलिए उसने नेचुरल तरीके से सिल्क यान को तैयार करने की तैयारी की और नेचुरल तरीके से इस चाइनीज सिल्क की जगह पाइनएप्पल के रेशे से सिल्क और धागे को तैयार किया. इसके बाद सिल्क और धागे को डाई करने के बाद साड़िया बनाना शुरू किया.

गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी को बुनकारी के बारे में बताती अंगिका

अंगिका का कहना है सिल्क बनाने की यह तकनीक पूरी तरह से नेचुरल है और स्किन फ्रेंडली होने के साथ ही फंगस फ्री है. इसे रंगने के लिए भी पौधे और फूल की पत्तियों से कलर बनाया जाता है. अंगिका का कहना है ब्रोकेड पर वह कार्य कर रही हैं. इस पर अभी रिसर्च भी कर रही है. किस तरह से बनारसी साड़ी उद्योग को बनारसी साड़ी और बनारसी कपड़ों से हटकर फर्निशिंग और डेकोरेशन के काम में इस्तेमाल किया जा सकता है. कोविड-19 के दौर में एक और नया प्रयास करते हुए पहली बार बनारसी साड़ी पर रेशम के जरिए बारकोड बनाने का काम किया था. जिसमें बीएचयू आईआईटी ने भी अंगिका की मदद की थी.

हथकरघा
अंगिका का कहना है कि बारकोड के जरिए साड़ी हथकरघा पर बनी है यह प्रमाणित होता है. हथकरघा पर बनी हुई साड़ियों की डिमांड विदेश में बहुत जबरदस्त है. इतना ही नहीं जिस तरह से उसने सिल्क यान की जगह पाइनएप्पल के रेशे का इस्तेमाल किया उसे भी लखनऊ में हुए ग्लोबल समिट में विदेश से आए लोगों ने काफी सराहा है. इसका बड़ा ऑर्डर भी उसे मिला है. सबसे बड़ी बात यह है कि उसके इस प्रयासों के बल पर बनारसी साड़ी उद्योग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में उसके पिता भी पूरा सहयोग कर रहे हैं. अंगिका भले ही अभी पढ़ाई को आगे बढ़ा रही है, लेकिन एजुकेटेड बुनकर बनकर वह बुनकारी से जुड़े उन तमाम लोगों को भी आगे बढ़ने की सीख दे रही है. जो अपनी आने वाली पीढ़ी को इस प्रोफेशन में ना लाने की बात करते हैं. अंगिका का कहना है कि वह युवा पीढ़ी को नए तरीके से बुनकारी से जोड़ने का प्रयास कर रही है. ताकि आमदनी बढ़ने के साथ ही उन को नए तरीके पर काम करने का मौका मिले. फिलहाल अंगिका का यह प्रयास राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर काफी चर्चा में है. लोगों की सराहना के बाद अंगिका के इन प्रयासों को और भी पंख मिले हैं.

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