वाराणसी: 26 जनवरी नजदीक है और हर किसी के मन में इंटरनेट देशभक्ति कुलाचे भर रही है. इन सब के बीच आज हम आपको वाराणसी के ऐसे म्यूजियम में ले चलते हैं, जहां पहुंचने के बाद आपके अंदर देशभक्ति का जज्बा जाग जाएगा और आप भी इंडियन आर्मी को बिना सैल्यूट किए रह नहीं पाएंगे. वाराणसी के कैंटोनमेंट इलाके में स्थित 39 जीटीसी कैंपस में मौजूद यह वार म्यूजियम वैसे तो आम लोगों के लिए नहीं खोला जाता, लेकिन इन दिनों यहां कोई भी बाहरी पहुंचकर 1947 से लेकर 1999 तक प्रयोग किए गए हथियारों से सेना के जज्बे की जीती जागती मिसाल देख सकता है.
बच्चों में जगा देशभक्ति का जज्बा. म्यूजियम में रखे हैं आर्मी के हथियारवाराणसी का यह म्यूजियम बेहद खास है. यहां 1947, 1962, 1965, 1971 और 1999 के युद्ध में प्रयोग किए गए आर्मी के हथियार रखे गए हैं. इतना ही नहीं जापान, चाइना और अन्य कई देशों से युद्ध के दौरान जब्त किए गए हथियारों को भी यहां लगाया गया है. इस म्यूजियम में विश्वयुद्ध से लेकर विदेशों के भी हथियारों को प्रदर्शित किया गया है. इन सब के बीच यहां सबसे खास और देशभक्ति का जज्बा भर देने वाली जो एक खास चीज है वह तिरंगा है. इसको पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद उनकी डेड बॉडी पर लपेटा गया था. वह तिरंगा आज भी इस म्यूजियम में सुरक्षित रखा हुआ है.
बच्चों में जगा देशभक्ति का जज्बा. म्यूजियम देख बच्चों में जगा देश की सेवा करने का जूनून39 जीटीसी के अधिकारियों का कहना है कि इस वार म्यूजियम को हम मोटिवेशनल हॉल के नाम से जानते हैं. आमतौर पर यह सिविलियन के लिए नहीं खोला जाता है, लेकिन 26 जनवरी से पहले यहां लोगों को इनवाइट किया गया है ताकि बच्चे आकर अपने देश की सेना और उनके पराक्रम के बारे में जान सकें. यहां पर मौजूद एक से बढ़कर एक राइफल और दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले हथियारों के अलावा वर्ल्ड वार में गोरखा रेजीमेंट का पराक्रम किस तरह दिखाई दिया था, उसका स्लाइड शो और वीडियो भी एक खास तरीके से दर्शाया जा रहा है. इसके अलावा काशी नरेश की तरफ से अपने हथियार कवच और अन्य हथियार भी यहां पर दान दिए गए हैं, जो म्यूजियम में मौजूद है. वहीं बच्चों का भी इस म्यूजियम को देखने के बाद बस इतना ही कहना था कि सेना को सलाम. इस म्यूजियम में आने के बाद बच्चे भी खुद को आर्मी में आने की बात कह देश की सेवा करने की तैयारी में जुट गए हैं.
बच्चों में जगा देशभक्ति का जज्बा.