वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में जब वाराणसी से सांसद चुने गए, तो उसके बाद इंदौर की तर्ज पर वाराणसी को भी स्मार्ट सिटी बनाए जाने की तैयारी शुरू हुई. उस वक्त के तत्कालीन नगर आयुक्त और महापौर से लेकर कई अधिकारी विदेशों में जाकर स्मार्ट सिटी के लिए किए जा रहे प्रयासों की स्पेशल ट्रेनिंग भी लेकर आए. इसके बाद कूड़ा-कचरा प्रबंधन को सही तरीके से संचालित करने का दावा किया गया.
इंदौर की ही तर्ज पर कचरा प्रबंधन के लिए वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट और वेस्ट एनर्जी प्लांट लगाए जाने की योजना बनी. साथ ही 2016 तक यह प्लांट बनकर तैयार भी हो गए और संचालित भी होने लगे. हालांकि, इन सबके बीच बनारस में कचरा प्रबंधन की हकीकत क्या है? शहरी क्षेत्र में किस तरह से कचरे को इकट्ठा किया जाता है और लोगों के लिए यह कितना मुसीबत का सबब बना है? इन्हीं कागजी हकीकत की पड़ताल ईटीवी भारत ने किया.
फाइलों और जमीनी हकीकत में है काफी अंतर
दरअसल कूड़ा-कचरा प्रबंधन और बनारस को स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ-सुथरा रखने के लिए नगर निगम में फाइलें तो बिलकुल साफ-सुथरी है, सब कुछ बेहतर है. यहां तक कि हाल ही में केंद्र सरकार ने बनारस नगर निगम को अवॉर्ड भी दिया है. वहीं फाइलों से बाहर निकल कर जब जमीनी हकीकत तलाशते हैं, तो कुछ चौंकाने वाली हकीकत सामने आती हैं.
कचरा प्रबंधन के लिए चार प्लांट किए जा रहे हैं संचालित
बता दें, बनारस में कचरा प्रबंधन के लिए चार अलग-अलग प्लांट संचालित किए जा रहे हैं. जिसमें सबसे बड़ा प्लांट कृष्णा है. यह शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है. शहर से निकलने वाले 600 मीट्रिक टन से ज्यादा कचरे को गाड़ियों के जरिए यहां पहुंचाया जाता है. इसके बाद वेस्ट टू कंपोस्ट यानी कचरे से खाद बनाए जाने का काम किया जाता है. जिसे सस्ते दामों में किसानों और कई कंपनियों को भी दिया जाता है. इतना ही नहीं, तीन अलग छोटे प्लांट भी निगम संचालित कर रहा है, जिससे वेस्ट टू एनर्जी के रूप में चलाया जा रहा है. यहां गीले कूड़े से गैस तैयार कर उसका इस्तेमाल कैंपस में लगी स्ट्रीट लाइट व अन्य बिजली उपकरण चलाने में किया जाता है. इसके अलावा सूखे कूड़े से स्टेशनरी आदि बनाए जाने का काम भी निगम कर रहा है. ये सारी बातें कागजी हकीकत है.