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आखिर वाराणसी कैसे बनेगा स्मार्ट सिटी...जब खुले में यूं पड़ा रहेगा कूड़ों का ढेर

उत्तर प्रदेश का वाराणसी जिला को स्मार्ट सिटी बनाए जाने की रेस में सबसे आगे रखा गया है, लेकिन शहर में बने डंपिंग यार्ड पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र की पोल खोल रहे हैं. डंपिंग यार्ड में इकट्ठा किया गया कूड़ा खुला पड़ा है. वहीं डंपिंग यार्ड से निकल रही बदबू स्थानीय लोगों का जीवन नरक कर रही है.

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फाइलों और जमीनी हकीकत में है काफी अंतर .

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Published : Mar 6, 2020, 8:03 PM IST

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में जब वाराणसी से सांसद चुने गए, तो उसके बाद इंदौर की तर्ज पर वाराणसी को भी स्मार्ट सिटी बनाए जाने की तैयारी शुरू हुई. उस वक्त के तत्कालीन नगर आयुक्त और महापौर से लेकर कई अधिकारी विदेशों में जाकर स्मार्ट सिटी के लिए किए जा रहे प्रयासों की स्पेशल ट्रेनिंग भी लेकर आए. इसके बाद कूड़ा-कचरा प्रबंधन को सही तरीके से संचालित करने का दावा किया गया.

डंपिंग यार्ड बनाए जाने के बाद भी खुले में पड़ा है कई टन कूड़ा.

इंदौर की ही तर्ज पर कचरा प्रबंधन के लिए वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट और वेस्ट एनर्जी प्लांट लगाए जाने की योजना बनी. साथ ही 2016 तक यह प्लांट बनकर तैयार भी हो गए और संचालित भी होने लगे. हालांकि, इन सबके बीच बनारस में कचरा प्रबंधन की हकीकत क्या है? शहरी क्षेत्र में किस तरह से कचरे को इकट्ठा किया जाता है और लोगों के लिए यह कितना मुसीबत का सबब बना है? इन्हीं कागजी हकीकत की पड़ताल ईटीवी भारत ने किया.


फाइलों और जमीनी हकीकत में है काफी अंतर
दरअसल कूड़ा-कचरा प्रबंधन और बनारस को स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ-सुथरा रखने के लिए नगर निगम में फाइलें तो बिलकुल साफ-सुथरी है, सब कुछ बेहतर है. यहां तक कि हाल ही में केंद्र सरकार ने बनारस नगर निगम को अवॉर्ड भी दिया है. वहीं फाइलों से बाहर निकल कर जब जमीनी हकीकत तलाशते हैं, तो कुछ चौंकाने वाली हकीकत सामने आती हैं.

कचरा प्रबंधन के लिए चार प्लांट किए जा रहे हैं संचालित
बता दें, बनारस में कचरा प्रबंधन के लिए चार अलग-अलग प्लांट संचालित किए जा रहे हैं. जिसमें सबसे बड़ा प्लांट कृष्णा है. यह शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है. शहर से निकलने वाले 600 मीट्रिक टन से ज्यादा कचरे को गाड़ियों के जरिए यहां पहुंचाया जाता है. इसके बाद वेस्ट टू कंपोस्ट यानी कचरे से खाद बनाए जाने का काम किया जाता है. जिसे सस्ते दामों में किसानों और कई कंपनियों को भी दिया जाता है. इतना ही नहीं, तीन अलग छोटे प्लांट भी निगम संचालित कर रहा है, जिससे वेस्ट टू एनर्जी के रूप में चलाया जा रहा है. यहां गीले कूड़े से गैस तैयार कर उसका इस्तेमाल कैंपस में लगी स्ट्रीट लाइट व अन्य बिजली उपकरण चलाने में किया जाता है. इसके अलावा सूखे कूड़े से स्टेशनरी आदि बनाए जाने का काम भी निगम कर रहा है. ये सारी बातें कागजी हकीकत है.


शहर में 23 प्वॉइंट्स से कूड़ा किया जाता है इकट्ठा
इन सबके बीच जब ईटीवी भारत ने कचरा प्रबंधन की जमीनी हकीकत तलाशने के लिए शहर का रुख किया, तो स्थिति और साफ हो गई कि कागज और असलियत में काफी अंतर है. वाराणसी में वर्तमान समय में 23 ऐसे पॉइंट नगर निगम ने बनाए हैं, जहां कूड़ा फेंका जाता है. यानी गली मोहल्ले से कूड़े को इकट्ठा कर इन प्वॉइंट्सपर इन्हें कलेक्ट किया जाता है. जहां से गाड़ियां इन्हें उठाकर करसड़ा और अन्य प्लांट में ले जाती हैं, ताकि इनका निस्तारण हो सके. हालांकि सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वाराणसी के सबसे बड़े डंपिंग ग्राउंड के नाम से जाने वाले पुराना पुल स्थित स्पॉट पर आज भी कूड़ा लोगों के लिए मुसीबत का सबब बना है.

स्थानीय लोगों को हो रही खासी परेशानी
वहीं खुले में काफी बड़े इलाके में फैला कूड़ा निगम के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है. जहां न मेडिकल वेस्टेज का अलग कोई इंतजाम है और न ही इंडस्ट्रियल वेस्ट को अलग करने की व्यवस्था. ऐसे में आसपास रहने वाले लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जो वरुणा नदी बनारस की पहचान है और गंगा में जाकर मिलती है, यह नदी भी पूरी तरह से इस कचरे की वजह से प्रदूषित हो रही है. साथ ही नदी में कचरा और मृत जानवर साफ देखने को मिल जाएंगे. यही नहीं, आसपास चल रही छोटी-मोटी इंडस्ट्री और कारखाने भी सीधे तौर पर अपना केमिकल कचरा वरुणा में ही बहा रहे हैं.

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क्या कहते हैं अपर नगर आयुक्त

अपर नगर आयुक्त देवी दयाल वर्मा ने बताया कि वाराणसी नगर निगम के पास सॉलिड वेस्ट मेनेजमेंट को लेकर एक बेहतर योजना है, उसको क्रियान्वित किया जा रहा है. इसी के संबंध में आवास शहरी मंत्री ने नगर आयुक्त को पुरस्कृत किया है. वहीं कूड़े का निस्तारण बेहतर ढंग से किया जा रहा है.

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