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तेल की बढ़ रही कीमतों ने घर का बिगाड़ा बजट, सब्जी के दामों में उछाल - वाराणसी सब्जी मंड़ी

ईंधन की बढ़ रही कीमतों की वजह से सब्जी मंडी में बिकने वाली सब्जियों की कीमतें अचानक से बढ़ने लगी हैं.डीजल की बढ़ रही कीमतों का गहरा असर सब्जियों पर पड़ा है. इसकी वजह से एक तरफ जहां प्याज धीरे-धीरे आसमान छू रहा है वहीं टमाटर समेत अन्य सब्जियों की कीमतें भी डीजल की बढ़ रही कीमतों के कारण ट्रांसपोर्टेशन के बढ़ रहे रेट के चलते तेजी से बढ़ रही हैं.

सब्जी के दामों में उछाल
सब्जी के दामों में उछाल

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Published : Feb 18, 2021, 11:09 PM IST

वाराणसी: इन दिनों ईंधन की लगातार बढ़ रही कीमतों से हाहाकार मचा हुआ है. पहले पेट्रोल और डीजल और अब गैस सिलेंडर के बढ़े दाम पब्लिक को परेशान करने वाले साबित हो रहे हैं. अब कहीं न कहीं डीजल के दाम पेट्रोल के बराबर पहुंच चुके हैं. इसका सीधा असर ट्रांसपोर्टेशन पर पड़ रहा है. बाजार में आने वाली सब्जियां हों या फिर अनाज या फिर रोजमर्रा की जरूरत का सामान सभी को ट्रांसपोर्ट के जरिए ही एक राज्य से दूसरे राज्य तक लाने का काम होता है. डीजल की लगातार बढ़ रही कीमतों ने सबसे गहरा असर आम आदमी के रसोई पर डाला है. ट्रांसपोर्टेशन की बढ़ी कीमतों के कारण सब्जियों के दामों में भी उछाल आया है.

सब्जी के दामों में उछाल.

बीते लगभग 1 महीने की अगर बात की जाए तो इस सीजन में कीमतों में उतार-चढ़ाव का असर सब्जियों का साफ तौर पर देखने को मिला. दिसंबर तक जो आलू 40 रुपये किलो तक बिक रहा था उसकी कीमतें जनवरी के अंतिम सप्ताह तक 10 रुपये किलो तक आ गई. कुछ इसी तरह प्याज की कीमतें भी 20 से 25 रुपए के बीच रहीं, टमाटर की कीमतें भी घट गई थी, लेकिन अब जब मौसम के बदलाव की वजह से सब्जियों की कीमतें कम होनी चाहिए थी, उस समय डीजल की बढ़ रही कीमतों का गहरा असर सब्जियों पर पड़ा है. इसकी वजह से एक तरफ जहां प्याज धीरे-धीरे आसमान छू रहा है वहीं टमाटर समेत अन्य सब्जियों की कीमतें भी डीजल की बढ़ रही कीमतों के कारण ट्रांसपोर्टेशन के बढ़ रहे रेट के चलते तेजी से बढ़ रही हैं.

सब्जी के बढ़े दाम.
सब्जी मंडियों पर गहरा असर
सब्जी मंडी में आमतौर पर जनवरी से शुरू होने वाला महीना काफी उतार-चढ़ाव का होता है क्योंकि एक तरफ जहां बहुत सी नई सब्जियों की खेप मंडी में पहुंचती है वहीं सीजन खत्म होने की वजह से कई सब्जियां बाजार से बाहर जाने के कारण ज्यादा दामों पर बिकती हैं. हालांकि इस दौरान के 2 से 3 महीने तक जनता को हर बार बड़ी राहत मिलती है और कीमतें कम होने के कारण पब्लिक की जेब पर भी अच्छा असर देखने को मिलता है. वहीं इस बार सब्जी मंडियों के हालात बेहद खराब हैं,डीजल के लगातार बढ़ रहे रेट के कारण ट्रांसपोर्टेशन का चार्ज भी काफी बढ़ता जा रहा है, जिसका सीधा असर सब्जी मंडियों पर देखने को मिल रहा है.
पब्लिक भी है परेशान
दरअसल, बीते कुछ दिनों से लगातार ईंधन के रेट में बढ़ोतरी हो रही है खासतौर पर डीजल और पेट्रोल की कीमतें तेजी से ऊपर नीचे जा रहे हैं पेट्रोल जहां 100 के करीब पहुंचने वाला है, तो वही 45 से 50 रुपये लीटर बिकने वाला डीजल भी अब 80 रुपये लीटर के करीब पहुंच गया है. डीजल पेट्रोल के रेट में जहां पहले 15 से 20 रुपये का फर्क हुआ करता था. वह अंतर अब घटकर 5 से 10 रुपये लीटर के बीच का ही रह गया है. इसकी वजह से सबसे बड़ा प्रभाव आम लोगों की जिंदगी पर पड़ा रहा है. डीजल पेट्रोल की बढ़ रही कीमतें जहां आम लोगों की जिंदगी की मुश्किलें बढ़ाती जा रही है. वही दोहरी मार भी पड़ रही है. नौकरी पेशा से लेकर बिजनेसमैन तक डीजल और पेट्रोल की बढ़ रही कीमतों की वजह से जहां गाड़ियों में ईंधन भरवाने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं तो वही ईंधन के बड़े रहे रेट की वजह से सब्जी मंडियों में आने वाली सब्जी की तेजी से बढ़ रही कीमतें भी गहरी चोट दे रही है.
1 महीने में कुछ ऐसे बढ़े सब्जियों के रेट
सब्जियां पहले (प्रति किलो) अब (प्रति किलो)
प्याज 15- 20 45-50
आलू 8-10 12-15
टमाटर 10 20
गाजर 30 40
शिमला 35 40
लौकी 20 20
मटर 30 35-40
नींबू 2 रुपये पीस 5 रुपये पीस


ट्रांसपोर्टर्स पर भी पड़ रहा गहरा असर
ईंधन की बढ़ रही कीमतों की वजह से सब्जी मंडी में बिकने वाली सब्जियों की कीमतें अचानक से बढ़ने लगी हैं, इसकी बड़ी वजह ट्रांसपोर्टर्स का ना चाहते हुए भी भाड़ा बढ़ाया जाना माना जा रहा है. ट्रांसपोर्टर्स का साफ तौर पर कहना है कि डीजल की कीमतों की वजह से गाड़ी मालिक पुराने मुनाफे पर काम करने को तैयार नहीं हो रहे हैं. जिसकी वजह से ना चाहते हुए भाड़े में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है. इसका सीधा असर माल ढुलाई पर पड़ रहा है और मंडियों में पहुंच रहे अनाज से लेकर सब्जियों तक की कीमतें फुटकर बाजार तक पहुंचते-पहुंचते बढ़ जा रही हैं. यह स्थिति आगे कब तक जारी रहेगी यह तो नहीं पता, लेकिन सरकार को इन समस्याओं पर ध्यान जरूर देना चाहिए.

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