वाराणसी:काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैदिक विज्ञान केंद्र ने व्याख्यान का आयोजन किया. यह आयोजन श्यामाचरण डे आवास के सभागार में किया गया. इसमें 'वेद काल निर्धारण: पारम्परिक एवं आधुनिक दृष्टि' विषय पर विद्वानों ने अपने विचार रखे.
बीएचयू में 'वेद काल निर्धारण: पारम्परिक एवं आधुनिक दृष्टि' विषय पर विद्वानों ने की चर्चा - वाराणसी समाचार
यूपी की धार्मिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी में वेदों के काल निर्धारण पर चर्चा की गई. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैदिक विज्ञान केंद्र के तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान में 'वेद काल निर्धारण: पारम्परिक एवं आधुनिक दृष्टि' विषय पर विद्वानों ने विचार रखे.
विशिष्ट व्याख्यान का किया गया आयोजन
इस व्याख्यान में विद्वानों ने अपनी बात रखते हुए एक स्वर में कहा कि भारत में आर्य कहीं से आये नहीं थें बल्कि यहां से वह कई देशों में गए. उन्होंने ऋग्वेद की ऋचाओं को उद्धृत करते हुये विभिन्न साक्ष्यों के माध्यम से वेदों की अति प्राचीनता को स्थापित किया. ऋग्वेद में प्रयुक्त ‘पारथिव सदन’ अर्थात मिट्टी का घर तथा सरस्वती के जल संचयित होने के प्रमाण देकर यह स्पष्ट किया कि पाश्चात्य परम्परा के द्वारा व्याख्यायित दृष्टिकोण ऋग्वेद की अतिसंकुचित व्याख्या करता है.
इस मौके पर वैदिक विज्ञान केंद्र बीएचयू के समन्वयक उपेंद्र त्रिपाठी ने बताया बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र में ऋग्वेद के विषय में चर्चा हुई. हम सब यह जानते हैं कि विश्व का सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है. इसके साथ बहुत से आधुनिक और पार्षद विद्वानों के अलग-अलग मत रहे, लेकिन ज्ञान के रूप में हम आज भी ऋग्वेद को सर्वोच्च मानते हैं. इसी विषय पर आज चर्चा हुई जिसमें विभिन्न विद्वानों ने अपनी बात रखी.