वाराणसी: जन्म के पश्चात शिशु में कई सारे बदलाव होते हैं. इन बदलावों में से एक सहज बदलाव जन्म के कुछ दिनों बाद बच्चों का अचानक मां का दूध पीना छोड़ देना है. कई बार माताएं इस बदलाव को नजरअंदाज कर बाजार से दूध मंगाकर बच्चों को देना शुरू कर देती हैं. लेकिन, यह दूध बच्चों के लिए पोषण नहीं, बल्कि जहर का कार्य करता है. जी हां यह बच्चों को स्वस्थ नहीं, बल्कि रोगी बनाने लगता है. ऐसा हम नहीं, बल्कि बनारस में सामने आए कुपोषित बच्चों के केस कह रहे हैं.
यह मामला शुद्धीपुर का है. जहां जन्म के तीसरे माह में रेखा के बच्चे ने जब मां का दूध पीना अचानक छोड़ दिया तो उन्होंने उसे डिब्बे का दूध पिलाना शुरू कर दिया. पखवारा भर भी नहीं बीता था कि बच्चे को डायरिया हो गया. कई जगह उपचार के बाद भी हालत में सुधार नहीं हुआ. बच्चा धीरे-धीरे कमजोर होकर कुपोषण का शिकार हो गया. कुछ ऐसी ही हालत बड़ी बाजार निवासी ममता के पांच माह के बेटे शिवम की भी हुई थी. स्तनपान छोड़ने पर शिवम पहले डायरिया और फिर अति कुपोषण का शिकार हुआ. हालत बिगड़ने पर पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया. नतीजा यह हुआ कि चार-पांच दिनों के प्रयास में ही बच्चे ने मां का दूध पीना शुरू कर दिया.
इसको लेकर पं. दीनदयाल उपाध्याय चिकित्सालय में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल सिंह का कहना है कि ऐसी स्थिति अधिकतर उन धात्री माताओं के सामने पैदा होती हैं जो स्तन में दूध की कमी अथवा किसी अन्य चिकित्सीय समस्या के कारण बच्चे को सामान्य रूप से स्तनपान नहीं करवा पाती हैं. मजबूरी में वह डिब्बाबंद दूध बोतल से पिलाना शुरू कर देती हैं, जो बच्चे के लिए बेहद नुकासनदेह होता है. डॉ. सिंह का कहना है कि छह माह तक शिशुओं को सिर्फ और सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए. यदि शिशु स्तनपान नहीं कर रहा है तो उसे डिब्बे का दूध पिलाने की बजाय, फौरन चिकित्सक से सम्पर्क कर सप्लीमेंट्री सकलिंग टेक्निक अपनानी चाहिए ताकि शिशु पुनः स्तनपान करने लगे.
क्या है एसएसटी
पं. दीनदयाल उपाध्याय चिकित्सालय एमसीएच विंग परिसर में स्थित एनआरसी की आहार परामर्शदाता विदिशा शर्मा बताती हैं कि एसएसटी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें बच्चे को कृत्रिम तरीके से स्तनपान कराया जाता है. इसमें एक ऐसी पतली नली का प्रयोग किया जाता है, जिसके दोनों सिरे खुले होते हैं. पहले सिरे को मां के दूध से भरी कटोरी अथवा किसी अन्य बर्तन में लगाया जाता है, जबकि दूसरे सिरे को मां के स्तन पर. दूध की इस कटोरी को मां के कंधे के पास रखा जाता है. इसके बाद स्तनपान कराते समय जब दूध नली से टपकता हुआ बच्चे के मुंह में जाता है तब बच्चे को लगता है कि दूध मां के स्तन से ही आ रहा है और बच्चा दूध पीना शुरू कर देता है. इस प्रक्रिया को लगातार कुछ दिनों तक अपनाने का बड़ा लाभ यह होता है कि जो बच्चा स्तनपान छोड़ चुका होता है, वह दोबारा स्तनपान करना शुरू कर देता है. इतना ही नहीं किन्हीं कारणों से मां का दूध पूरी तरह नहीं आ रहा हो तो इस प्रक्रिया को अपनाने से मां को पुनः पर्याप्त दूध आने लगता है.