वाराणसी: संस्कृति और सभ्यता के साथ परंपराओं को सहेज कर रखने वाले अद्भुत शहर का नाम है वाराणसी. जहां सदियों पुरानी परंपराओं को आज भी लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं. इन परंपराओं का निर्वहन सैकड़ो सालों से अनवरत किया जा रहा है और ऐसी ही परंपराओं में से एक है वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला. आज अनंत चतुर्दशी के दिन इस रामलीला की शुरुआत रावण जन्म के साथ हो जाती है.
रामनगर की रामलीला को यूनेस्को ने माना विश्व धरोहरः240 साल पुरानी इस लीला को यूनेस्को ने भी विश्व सांस्कृतिक विरासत माना है. 1783 में शुरू हुई इस रामलीला को आज भी उसी अंदाज में मंचित किया जाता है, जैसे सालों पहले मनाया जाता था. यानी न लाइट, न माइक, न भोंपू, सब कुछ बस परंपरा और संस्कृति के अनुसार पुरातन समय के अनुसार रहता है. पुराने अंदाज में मंचित इस रामलीला को दूर-दूर से लोग देखने आते हैं.
काशी के राजा ने शुरू की थी रामलीलाःमाना जाता है कि 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इस लीला की शुरुआत की थी. 240 साल पहले शुरू हुई इस लीला को आज भी वर्तमान कुंवर अनंतनारायणन सिंह पूरे शाही अंदाज से पूर्ण करवाते हैं. राज परिवार के लोग हाथी पर सवार होकर इस लीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं. इसके साथ ही लीला के एक-एक किरदार को बड़े ही सोच समझकर चुना जाता है.
शाम 5 बजे से मंचन होता है शुरूःप्रत्येक दिवस शाम 5:00 बजे से इस लीला की शुरुआत होती है और रात 9:00 बजे तक इसका मंचन होता है. इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचित रामचरितमानस की चौपाइयों के अनुसार किया जाता है. आधुनिक दौर में भी इस लीला का मंचन वैसे ही होता है जैसे 200 साल पहले किया जाता था.