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यूपी एक खोजः शादी नहीं हो रही या प्रॉपर्टी नहीं बन रही, काशी के इस मंदिर में दर्शन से होगी मनोकामना पूरी! - काशी धर्म स्थान

काशी, हिन्दू आस्था के शीर्ष स्थलों में से एक है. काशी की पहचान ऐसे स्थान की है जहां आने मात्र से ही लोगों का जीवन धन्य हो जाता है.वैसे तो ये शिवनगरी के तौर पर विख्यात है लेकिन यहां दूसरे देवी देवताओं के मंदिर भी बड़ी संख्या में मिल जाएंगे (temples in Varanasi). कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जिनके बारे में कम ही लोगों को पता होगा लेकिन उनका महत्व बहुत बड़ा है. यूपी एक खोज में आपको काशी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो भगवान परशुराम की माताजी का है. इस मंदिर की ऐतिहासिकता और महत्व जानकर आप हैरान रह जाएंगे.

यूपी एक खोज.
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Published : May 4, 2022, 5:47 AM IST

Updated : May 4, 2022, 3:22 PM IST

वाराणसी:काशी को मंदिरों का शहर कहना गलत नहीं होगा. यहां ढेरों ऐसे मंदिर आपको मिल जाएंगे जिनके बारे में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है लेकिन हिन्दू मान्यताओं में उस देवी देवता का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने मां पार्वती के साथ काशी में वास किया तो सभी देवी देवताओं ने काशी के विभिन्न स्थानों पर अपना निवास स्थान बना लिया.आगे चलकर भक्तों ने इन तमाम देवी देवताओं के मंदिर काशी में बनाए . इनमें से एक मंदिर भगवान परशुराम की माता रेणुका का भी है जिसके बारे में ज़्यादातर लोगों को नहीं पता.ये मंदिर लगभग 300 साल पुराना है. इस मंदिर को प्रतापगढ़ राजघराने ने आज भी सजोकर कर रखा है.इसकी देखभाल और रखरखाव प्रतापगढ़ राजघराने की तरफ से ही किया जाता है. आइए आपको बताते हैं कि माता रेणुका कौन थीं और उनका महात्म्य क्या है?

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कौन है माता रेणुका?परशुराम त्रेता युग में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे, जो विष्णु के 19वें अवतार कहे जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उनके पिता महर्षि भृगु के पुत्र ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं.काशी में मां कुष्मांडा देवी के बगल में माता रेणुका का मंदिर है. बंगाली समाज के लोग इन्हें मां कुष्मांडा देवी की बड़ी बहन भी मानते हैं, हालांकि तमिलनाडू से आने वाले भक्त यहां पर ज्यादा दर्शन करने आते हैं. मंदिर का प्रांगण काफी ऊंचाइयों पर है. चारों तरफ हरियाली है. मां के प्रांगण में घुसते ही शांति मिलती है.

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300 साल पुराना रेणुका मंदिर
मां रेणुका का मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है. इस मंदिर का निर्माण प्रतापगढ़ राजघराने के महाराज अजीत प्रताप ने कराया. इस समय चौथी पीढ़ी इस मंदिर को चला रही है. यह उन लोगों की कुलदेवी हैं. मान्यता है कि मां कुष्मांडा देवी के दर्शन के बाद मां रेणुका के दर्शन करने पर ही कुष्मांडा देवी के दर्शन का फल मिलता है. पूरे विधि विधान से मां की तीन पहर की पूजा होती है.

इस मंदिर के पुजारी सुधीर तिवारी ने इस मंदिर और माता रेणुका के महात्म्य के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भगवान परशुराम की माता के इस मंदिर में दर्शन से असीम लाभ मिलता है. भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.
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41 दिन दर्शन करने से होता है विवाह
जिन लोगों को जानकारी है वो इस मंदिर में दर्शन करने दूर दूर से आते हैं. ऐसी ही एक श्रद्धालु मालती देवी ने बताया कि सच्चे मन से मां के दर्शन से सभी प्रकार की मनोकामना पूरी होती है. जिसका विवाह नहीं होता वह सच्चे दिल से 41 दिनों तक मां का दर्शन करता है तो उसका विवाह हो जाता है, जिसकी जमीन नहीं रहती वो जमीन का मालिक बन जाता है. मंगलवार को इस मंदिर में दर्शन करने का ज़्यादा महात्म्य है.तो अगली बार आप काशी आएं तो रेणुका माता के मंदिर में दर्शन करना न भूलें.

Last Updated : May 4, 2022, 3:22 PM IST

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