प्रो. आरपी पांडेय ने बताया. वाराणसी:यूं तो शहर का प्रथम नागरिक मेयर होता है. मगर वाराणसी में यह फार्मूला बिल्कुल उलट है. यहां का मेयर उत्तर प्रदेश के अन्य नगर निगम के मेयर से बिल्कुल अलग होता है. क्योंकि, यहां के मेयर काल भैरव व बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद ही कुर्सी पर बैठते हैं. मेयर खुद को यहां का प्रथम नागरिक नहीं मानता है. वह खुद को बाबा विश्वनाथ के प्रतिनिधि के तौर पर मानकर काम करता है.
वाराणसी बाबा विश्वनाथ की नगरी है. यहां बिना बाबा की मर्जी के कुछ भी संभव नहीं है. इसीलिए यहां के लोग खुद को बाबा को समर्पित करते हुए चलते हैं. वाराणसी सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु भी है. यहीं से सत्ता में बैठने वाले राजनीतिक दल अपने भविष्य का आकलन भी करते हैं. मगर इस राजनीति के केंद्र में यहां के राजनीतिक प्रत्याशी खुद को सबसे बड़ी सत्ता महादेव का सेवक ही मानते हैं.
तीन राजाओं वाला शहर है वाराणसी:वाराणसी के प्रथम नागरिक बाबा विश्वनाथ हैं. इसके साथ ही वाराणसी 3 राजाओं वाला शहर भी है. इन तीनों में संतुलन बना रहे, इसका मेयर को ध्यान रखना होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां का मेयर सिर्फ बनारस का नहीं बल्कि पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करता है. बनारस में लघु भारत बसता है. यहां पर सभी धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग रहते हैं. मेयर के ऊपर सभी के बीच में सामंजस्य रखने की भी बड़ी जिम्मेदारी होती है.
राजनीतिक के दावेदार खुद को मानते हैं बाबा का सेवकःकाशी कैसे 16 नगर निगमों से अलग है, इस पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. आरपी पांडेय कहते हैं कि, उत्तर प्रदेश में काशी धार्मिक नगरी है. ये बाबा की नगरी है, जो सभी देवों के देव महादेव हैं. महादेव की नगरी के जो अधिपति हैं. वो बाबा विश्वनाथ हैं. इसीलिए इस नगरी से राजनीति करने वाले लोग खुद को उनका सेवक समझते हैं. विभिन्न राजनीतिक दलों के दावेदार भी जीतने के बाद उस पद पर अपने आप को बाबा का सेवक ही मानकर चलते हैं.
प्रधानमंत्री भी सबसे पहले पहुंचते है बाबा के दरबारःवाराणसी की संस्कृति ही ऐसी है कि, हर कोई आस्था के सैलाब में डूबा हुआ है. यहां कोई भी बड़ा आयोजन हो या कोई बड़ा निर्माण, बिना बाबा की अनुमति के पूरा नहीं माना जाता है. इसीलिए चाहे वह वाराणसी का आम नागरिक हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, वाराणसी में किसी काम की शुरुआत से पहले काल भैरव और बाबा विश्वनाथ का दर्शन जरूर करते हैं. यहां तक कि हर कोई बड़ा नेता काशी आने के बाद बाबा के दर्शन करने जरूर जाता है.
देश की सांस्कृतिक और धार्मिक नगरीःकाशी के लोगों के इस तरह के व्यवहार पर प्रो. आरपी पांडेय कहते हैं कि, यहां के लोगों का मानना है कि बाबा कि कृपा से हम यहां हैं. ये जो भाव है, यह राजनीतिक भाव से अलग एक सांस्कृतिक और धार्मिक भाव है. यह भाव प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में काशी की स्थिति को भिन्न और विशिष्ट बनाती है. प्रोफेसर का कहना है कि विशेष रूप से मां गंगा की भी यहां पर उपस्थिति है. साथ ही साथ तथागत भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली सारनाथ भी यहीं है. ये जो विभिन्न वैदिक और श्रम परंपरा के धाराओं का समन्वय और इसकी वैश्विक प्रामाणिकता और इसकी उपस्थिति वह राजनीतिक पृष्ठभूमि को बहुत अधिक मजबूती प्रदान करती है.
परंपराओं का निर्वहन और संस्कृति के पालन की जिम्मेदारीःकाशी का मेयर सिर्फ मेयर की ही जिम्मेदारी नहीं संभालता, बल्कि यहां के तीनों राजाओं आध्यात्मिक राजा, लौकिक राजा और डोम राजा को साथ लेकर चलना पड़ता है. काशी के आध्यात्मिक राजा भगवान शिव हैं. ऐसे में मेयर उनका प्रतिनिध बनकर रहता है. इसके साथ ही काशी में पूरा भारत बसता है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक की जनता यहां पर रहती है. ऐसे में उनके प्रति भी मेयर की जिम्मेदारी बनती है. इन सभी को मिलाकर ही काशी का नगर निगम या कहें कि मेयर सभी नगर निगमों से अलग माना जाता है.
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