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चुनावी प्रचार में डिजिटल बैनर-झंडा और पोस्टर की भारी डिमांड, स्टूडियो के चक्कर काट रहे 'नेताजी - वाराणसी की खबरें

पहले चुनावों के पहले बड़े-बड़े होर्डिंग और झंडे बनवाए जाते थे जिसे चौक चौराहों पर लगाया जाता था. पर अब सिर्फ डिजिटल डिजाइन तैयार कराई जा रही है. इसके चलते ग्राफिक डिजाइनरों के यहां काम बढ़ गया है. वहीं, परंपरागत झंडा बैनर बनाने वालों के यहां जैसे ताला सा लग गया है.

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चुनावी प्रचार में डिजिटल बैनर-झंडा और पोस्टर की भारी डिमांड, स्टूडियोज के चक्कर काट रहे 'नेताजी'

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Published : Jan 20, 2022, 8:14 PM IST

वाराणसी:कोरोना ने चुनावी प्रचार का स्वरूप बदल दिया है. मैदानों में उमड़ने वाली रैलियों की भीड़ पर डिजिटल प्लेटफॉर्म अब भारी पड़ता दिखाई देने लगा है. सभी राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया के जरिये मतदाताओं को लुभाने का जंग छेड़ रखी है. ऐसे में प्रचार सामग्री बनाने वाले दुकानदार भी इस चुनाव में डिजिटल हो गए हैं. यहां झंडा, बैनर और पोस्टर डिजिटल बनाने के आर्डर आ रहे हैं. क्या है डिमांड और कैसे हो रहा डिजिटल चुनावी प्रचार. देखिए खास रिपोर्ट..

चुनावी प्रचार में डिजिटल बैनर-झंडा और पोस्टर की भारी डिमांड, स्टूडियोज के चक्कर काट रहे 'नेताजी'
ये चुनाव कुछ सुना सुना सा है क्योंकि अब तक न तो कानों में लाउड स्पीकर की आवाज गूंजती सुनाई दी है और न ही नेताओं की सभाओं की भीड़. रैलियों की भी कोई तैयारी नहीं है. कोरोना ने इस सारे चुनावी प्रचार के हथकंडों पर रोक लगा दी है. ऐसे में नेतागण जनता तक पहुंचने के लिए डिजिटल जुगाड़ तलाश रहे हैं. इस जुगाड़ में वर्चुअली बैठक तो हो जाती है लेकिन झंडा, बैनर और पोस्टर के जरिए अपनी पार्टी की नीतियों को जनता तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता है. इसके लिए अब पार्टियां डिजिटल झंडा और बैनर बनवा रहीं हैं और सोशल मीडिया के जरिए इसे लोगों तक पहुंचा रही हैं.


डिजिटल पोस्टर ग्राफ़िक्स के मिल रहे ऑर्डर

गौरतलब है कि पहले चुनावों के पहले बड़े-बड़े होर्डिंग और झंडे बनवाए जाते थे जिसे चौक चौराहों पर लगाया जाता था. पर अब सिर्फ डिजिटल डिजाइन तैयार कराई जा रही है. इसके चलते ग्राफिक डिजाइनरों के यहां काम बढ़ गया है. वहीं, परंपरागत झंडा बैनर बनाने वालों के यहां जैसे ताला सा लग गया है. ईटीवी भारत से बातचीत में ग्राफिक डिजाइन का काम करने वाले लोगों ने बताया कि सोशल मीडिया के लिए तैयार किया जा रहा ग्रैफिक काफी पसंद किया जा रहा है. ऐसे में हम नए-नए आइडिया के साथ ग्राहकों को बेहतर ग्रैफिक बनाने की सलाह देते हैं.


नेता जी लगा रहे स्टूडियो के चक्कर

अपने पार्टी के प्रचार के लिए डिजिटल पोस्टर बनाने पहुंचे सपा नेता रवि विश्वकर्मा ने बताया कि चुनाव आयोग के आदेश के बाद सभी सियासी पार्टियां अपने-अपने पार्टी की नीतियों को जनता तक पहुंचाने के लिए डिजिटल माध्यम का सहारा ले रहीं हैं. ये पार्टियां डिजिटल पोस्टर, होर्डिंग, घोषणा पत्र बनवा रही हैं. साथ ही सभी प्लेटफॉर्म व लोगों तक इसे पहुंचा रही हैं.

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क्या है डिजिटल प्रचार, डिजिटल मार्केटिंग फर्म कैसे करतीं हैं काम

एक समय था जब लोग वोट मांगने के लिए घरों पर आते थे. नेताजी बाबा दादी के हाथ पांव जोड़ते, मिन्नतें करते. मेल मिलाप बढ़ता तो पता चलता आदमी की हैसियत क्या है और शख्सियत क्या है. कोरोना के चलते अब चुनाव प्रचार के नए तरीके ने भविष्य में भी परंपरागत चुनाव माध्यमों को पीछे छोड़ने और चुनाव प्रचार के नए युग में प्रवेश करने के संकेत दे दिए हैं. कई नेता ऐसे हैं जो जमीनी स्तर पर काम करते रहे. ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर उनके खास फॉलोवर्स भी नहीं हैं. ऐसे में वह इंप्रेशन, लाइक, रीट्वीट आदि के लिए डिजिटल मार्केटिंग फर्म का सहारा ले रहे हैं.

20-40 लाख रुपये का पैकेज

डिजिटल मार्केटिंग कंपनियां इन दिनों 20-40 लाख रुपये का पैकेज दे रही हैं. हालांकि इसमें धोखाधड़ी भी हो जाती है. ऐसे में विभिन्न दलों के नेता अपने समर्थकों के जरिए ही सोशल मीडिया पर अपनी बात को फैलाने पर ध्यान दे रहे हैं. जो अब तक इन प्लेटफार्मों पर सक्रिय नहीं थे, वह भी अब सक्रिय हो रहे हैं. हालांकि डिजिटल मीडिया कंपनियां आपके संदेशों को एक साथ लाखों लोगों तक पहुंचा देती हैं. थोक में मोबाइल पर मैसेज भेजना हो या फालोवर बढ़वाने की बात है. इन कंपनियों का सहारा लिया जाता है.

पर इस दौरान अधिकतर मामलों में धोखाधड़ी भी सामने आती है. मसलन जितने फालोवर बढ़े, वे सही है या फेस इसका पता नहीं चल पाता. जितने मैसेज भेजे गए, उतने लोगों तक पहुंचे या नहीं, इसकी पुष्टि भी नहीं हो पाती. बाद में पता चलता है कि कंपनी ने जो डेटा उपलब्ध कराया, वह नकली है.

एक ब्रांडिंग कंपनी ने बताया कि हम विभिन्न सर्वेक्षणकर्ताओं से जुड़े हैं जो उम्मीदवारों के बारे में डेटा प्रदान करते हैं. यह चुनाव वर्चुअल होगा. इसलिए हमारा लक्ष्य एक उम्मीदवार की पहुंच बढ़ाना है. दर्शकों और शिक्षा, जाति और आकांक्षाओं के अनुसार ग्रुप बनाए जाते हैं. प्रत्येक कंपनी के पास तकनीक, मतदाताओं के डेटा, सामग्री, यूआई (यूजर इंटरफेस डिजाइन)/यूएक्स (यूजर एक्सपीरियंस) डिजाइन आदि को संभालने के लिए अलग-अलग टीमें होती हैं.

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