वाराणसी: पहड़िया की रहने वाली अर्चना कई वर्ष से हाई शुगर से पीड़ित है. इधर छह माह से एक हाथ की कोहनी के पूरा न खुलने को लेकर वह परेशान थी. उनका वह हाथ ऊपर उठाना भी मुश्किल था. पड़ोसी चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने कुछ दवाएं लिखने के साथ ही उन्हें शुगर कंट्रोल करने की सलाह दी. पर रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया. जोड़ों में दर्द के साथ ही भूख लगना भी बंद हो गया और वजन तेजी से गिरने लगा. पं. दीनदयाल चिकित्सालय में दिखाने और वहां के चिकित्सक की सलाह पर जब उन्होंने जांच करायी तो पता चला कि उन्हें ‘बोन टीबी’ है.
कुछ ऐसा ही हुआ चौकाघाट के रहने वाले 60 वर्षीय राधेश्याम विश्वकर्मा के साथ. उन्हें भी पहले से शुगर था, दोनों घुटनों में अचानक जकड़न भी आ गई. दर्द इतना की उनका उठना-बैठना भी मुश्किल हो गया. उन्हें भी पहले यही लगा कि यह सब शुगर की वजह से है पर जब उन्होंने पं.दीन दयाल चिकित्सालय में जांच कराया तो पता चला कि उन्हें भी ‘बोन टीबी’ है.
यह कहानी सिर्फ अर्चना और राधेश्याम की ही नहीं. ऐसे तमाम लोगों की है, जो कोहनियों के न खुलने, घुटनों के न मुड़ने और हड्डियों की अन्य समस्या को वह शुगर बढ़ने के कारण मान लेते हैं. जबकि ऐसे लोगों को यह समस्या 'बोन टीबी' के कारण भी हो सकती है. सही समय पर उपचार न होने से मरीज के अपाहिज होने का खतरा रहता है. जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. राहुल सिंह बताते हैं कि वैसे तो टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों, श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र को प्रभावित करता है. लेकिन कुछ मामलों में यह नाखून और बालों को छोड़कर शरीर के अन्य किसी भी अंग में भी हो सकता है. हड्डियों में होने वाले टीबी को मस्कुलोस्केलेटल टीबी भी कहा जाता है.
दो तरह की होती है टीबी
वह बताते है कि टीबी दो तरह की होती है. पहला पल्मोनरी टीबी और दूसरा एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी. जब टीबी फैलता है, तो इसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस (ईपीटीबी) कहा जाता है. ईपीटीबी के ही एक रूप को हड्डी और जोड़ की टीबी के नाम से भी जाना जाता है. बोन टीबी हाथों के जोड़ों, कोहनियों और कलाई, रीढ़ की हड्डी, पीठ को भी प्रभावित करता है.
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