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तुलसीदास जयंती विशेष: भोले भंडारी की नगरी में हुई थी रामचरितमानस की रचना - श्री रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास अध्ययन करने के लिए काशी आए थे और यहीं उन्होंने प्राण त्यागे थे. इस दौरान काशी के तुलसी घाट पर बैठकर ही उन्हें बजरंगबली के दर्शन हुए थे.

तुलसी घाट काशी.

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Published : Aug 4, 2019, 7:24 PM IST

वाराणसी: काशी में अध्यात्म का एक अलग ही नजारा है. यहां की परंपरा श्रद्धा और भक्ति दुनिया के शायद ही किसी शहर में देखने को मिले. यूं तो यह शहर नगरी है बाबा भोले की, पर यहां उन्हीं के आराध्य भगवान विष्णु के अवतारों को भी दिल में श्रद्धा भाव लेकर पूजा जाता है. काशी की महिमा कुछ यूं समझी जा सकती है कि जिस शहर में 12 ज्योतिर्लिंग हों, उसी शहर में भगवान विष्णु के श्री राम रूप की रामचरितमानस रचित हुई है.

रामचरितमानस के बारे में जानकारी देते प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र.
पढ़े- गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में बनेगा तुलसी द्वार2 साल 7 महीने में लिखी गई रामचरितमानस-16 वीं शताब्दी में लिखी गई रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. इस बात से पूरा संसार रूबरू है लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रामचरितमानस के 7 अध्याय में से चार अध्याय काशी में लिखे गए हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी को रामचरितमानस लिखने में 2 साल 7 महीने लगे थे.
तुलसीदास के खड़ाऊ घाट पर आज भी हैं मौजूद-
रामचरितमानस को लिखने में और इस दौरान कई साल तक वह काशी के तुलसी घाट पर रहकर अध्ययन कर रहे थे. तुलसीदास जी की खड़ाऊ आज भी तुलसी घाट के महंत परिवार के पास सुरक्षित है. इसके साथ ही जिस नाव पर बैठकर रामचरितमानस लिखी गई है. उसका टुकड़ा आज भी घाट के तुलसी मंदिर में सहेज कर रखा गया है.

रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसी घाट पर ही तुलसीदास जी ने बजरंगबली की चाय प्रतिमाओं को स्थापित किया था और कई-कई दिनों तक घाट के ऊपर ही बैठकर रामचरितमानस लिखा करते थे.

महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने जानकारी देते हुए बताया कि

गोस्वामी तुलसीदास अध्ययन करने के लिए काशी आए थे और यही वह जगह है, जहां उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे. इस दौरान काशी के तुलसी घाट पर बैठकर ही उन्हें बजरंगबली के दर्शन हुए थे. जिसके बाद उन्होंने रामचरितमानस का भी निर्माण किया और बजरंग बली की प्रतिमाओं को भी स्थापित किया.

वाल्मीकि रामायण के कठिन होने के कारण तुलसीदास जी की रामचरितमानस को लोगों ने बखूबी पढ़ा और समझा. यह रामचरितमानस रामायण के साथ ही प्रचलित होती चली गई. महंत विशंभर नाथ मिश्रा का कहना है कि तुलसीदास एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने रामचरितमानस में आम शब्दों का प्रयोग कर भगवान को आम इंसान के करीब पहुंचा दिया है.

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