वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में जहां एक तरफ कलकल बहती गंगा हैं तो वहीं दूसरी तरफ द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल महादेव श्री काशी विश्वनाथ विराजते हैं. इस नगरी ने धर्म और अध्यात्म के साथ कई ऐसे महापुरुष भी दिए, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा और धर्म का ध्वजवाहक बनकर देश को विश्व गुरु बनाने में बड़ा योगदान दिया है.
ऐसा ही एक नाम है गोस्वामी तुलसीदास का. गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवन का अंतिम समय काशी में ही बिताया था. काशी के अस्सी घाट से नजदीक तुलसी घाट पर रहते हुए गोस्वामी जी ने सर्व सुलभ और सबके पहुंच में आने वाली रामचरितमानस की रचना की.
सोलहवीं शताब्दी में लिखी गई रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रामचरितमानस के 7 अध्याय में से चार अध्याय काशी में लिखे गए हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी को रामचरितमानस लिखने में 2 साल 7 महीने लगे थे. यह वर्णित भी है कि संवत 1680, असी गंग के तीर, श्रावण शुक्ल सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर.
काशी में मौजूद है तुलसीघाट
अस्सी घाट से कुछ दूरी पर स्थित तुलसी घाट पर आज भी वह स्थान सुरक्षित है, जहां गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवन के अंतिम समय बिताया था. एक कोठरी में रहकर, उन्होंने न सिर्फ किष्किंधा कांड के बाद के अध्याय लिखे, बल्कि हनुमान बाहुक, हनुमान चालीसा समेत कई अन्य रचनाएं भी यहीं पर लिखीं.
तुलसीदास से जुड़ी चीजें संरक्षित