वाराणसी: कहने को तो वाराणसी एक शहर है. लेकिन, इसे जीवन का वह सार माना जाता है, जिसके समझने मात्र से ही जिंदगी की तमाम कठिनाइयां आसानी से आगे बढ़ने लगती हैं. शायद यही वजह है कि इस जिंदा शहर बनारस का जन्मदिन लोग बड़े ही अनोखे तरीके से मनाते हैं. बुधवार 24 मई को बनारस शहर का 67वां जन्मदिन मनाया गया. इस दिन ही शहर को वाराणसी नाम अधिकारिक तौर पर दिया गया था. लंबी कवायद के बाद सरकार की तरफ से वरुणा और अस्सी नदी के बीच में बसे इस शहर को वाराणसी नाम दिया गया था. दुनिया में काशी, बनारस के साथ वाराणसी को भी दस्तावेज में पाया है. जिसकी वजह से हर साल इस सबसे पुराने जीवंत शहर का जन्मदिन काशीवासी मनाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि काशी शिव की नगरी है और यहां कण-कण में शिव विराजते हैं. काशी को धरती पर नहीं बल्कि शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ शहर माना जाता है. यही वजह है कि देश की आजादी के बाद प्रशासनिक तौर पर इस शहर को काशी से वाराणसी नाम देने का काम सरकारी गजेटियर में किया गया था. यह कार्य डॉ. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्री के समय हुआ था. जिसकी वजह से वह भी बेहद खुश थे.
वाराणसी नगर निगम के अधिकारियों की मानें तो काशी का नाम सरकारी दस्तावेज में 24 मई 1956 को दर्ज किया गया था. वाराणसी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि काशी में गंगा के अलावा उसकी दो सहायक नदियां भी बहती हैं. वरुणा और अस्सी नदियों के बीच में बसे होने की वजह से ही 1956 में इस शहर को वाराणसी के नाम से जाना गया. 66 साल बाद 2023 में आज हर जगह वाराणसी नाम से जाना जाता है. कैंट रेलवे स्टेशन भी वाराणसी जंक्शन के नाम से है. इसके अलावा वाराणसी नाम हर दस्तावेज में सरकारी तौर पर दर्ज है.