वाराणसी के संस्कृत विश्वविद्यालय में सुविधाएं नहीं हैं. वाराणसी :संस्कृत विश्वविद्यालय देश में संस्कृत की मातृ संस्था कही जाती है. माना जाता है कि यह देश का सबसे प्राचीन संस्कृत विश्वविद्यालय है. खास बात यह है कि इस विश्वविद्यालय में 7 जुलाई को पीएम मोदी का दौरा भी है. वे यहां मौजूद दुर्लभ पांडुलिपियों का अवलोकन कर विश्वविद्यालय परिसर का भ्रमण करेंगे. ईटीवी भारत ने पीएम मोदी के विजिट से पहले संस्कृत विश्वविद्यालय में सुविधाओं की हकीकत जानी.
80 फीसदी पद हैं रिक्त :हैरान करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय में सुविधाओं के नाम पर काफी अव्यवस्थाएं हैं. अव्यवस्थाएं विद्यार्थियों के पठन-पाठन को खासा प्रभावित कर रहीं हैं. यही नहीं विश्वविद्यालय में 80 फीसदी तमाम पदों पर सीटें रिक्त हैं, जिस वजह से यहां मानव संसाधनों की भी बड़ी कमी है. बताते चलें कि 2014 में बनारस से बतौर सांसद चुनाव लड़ने के दौरान पीएम मोदी ने इस विश्वविद्यालय को संवारने का वादा किया था. हालांकि 9 साल बीत जाने के बाद भी यह विश्वविद्यालय दुर्दशाओं के जंजाल में फंसा हुआ है.
विश्वविद्यालय में कई समस्याएं हैं. पूरी तरह से दुर्व्यवस्था का शिकार है विश्वविद्यालय :छात्र रंजीत तिवारी का कहना है कि प्रधानमंत्री हमारे विश्वविद्याय में आ रहे हैं. हमें इसी बात की आशा है कि शिक्षा, पठन-पाठन, विश्वविद्यालय का भवन, बिजली और पानी. ये सारी व्यवस्थाएं हमारे यहां दुर्दशा का शिकार हैं. छात्रावास के शौचालय खराब हैं, यहां तार जर्जर अवस्था में हैं, कक्षाओं में पुरानी चीजें बदहाल स्थिति में हैं. इन सभी समस्याओं का समाधान हो, हम प्रधानमंत्री मोदी से इसकी आशा करते हैं. संस्कृत प्राचीन भाषा है, लेकिन जब हम इसे आधुनिकता के साथ लेकर चलेंगे तो समाज के साथ चल पाएंगे.
विश्वविद्यालय में कंप्यूटर शिक्षा नहीं :उन्होंने कहा कि हम आधुनिकता से दूर हैं. इसलिए हमारे लिए मौके कम होते जा रहे हैं. हम लोग कम्यूटर शिक्षा नहीं ले सके हैं. हमसे इस बारे में कोई सवाल करे तो हम नहीं बता सकते हैं. अभी हमारे शिक्षकों ने इसके लिए नई प्रणाली शुरू करने की बात की है. लोग पूछते हैं संस्कृत पढ़े हैं कम्प्यूटर आता है?, हम कहते हैं नहीं आता है. क्योंकि हम नहीं पढ़े हैं. इन सभी आधुनिक व्यवस्थाओं की हमें जरूरत है. विश्वविद्यालय में वाईफाई है लेकिन चलता नहीं है. चीजें हैं, लेकिन काम नहीं कर रहीं हैं. ऐसे में हमें प्रधानमंत्री मोदी से बहुत आशा है.
पीएम मोदी ने केंद्रीय विश्वविद्यालय का किया था वादा :प्रो. अमित कुमार शुक्ला ने कहा कि विश्वविद्यालय के पास धन की कमी होने के कारण बदहाली की स्थिति आ गई है. विकास कार्य के लिए धन का अभाव था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में मामला आने के बाद यहां पर सुधार के काम शुरू किए गए हैं. साफ-सफाई की व्यवस्था अच्छी हुई है. शासन और प्रशासन का ध्यान विश्वविद्यालय के विकास की तरफ गया है. हमें आशा है कि 2014 में पीएम मोदी ने काशी की जनता को जो आश्वासन दिया था कि वह इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाएंगे वह बहुत जल्द ही पूरा होगा.
25 साल पुराने पंखों के नीचे बैठते हैं छात्र :प्रो. अमित कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय में भवनों की स्थिति जर्जर हो चुकी है. उनकी मरम्मत की जानी चाहिए. भीषण गर्मी में 25 साल पुराने पंखों के नीचे बैठकर छात्रों को पढ़ना पड़ रहा है. अध्यापक भी इसी गर्मी में पढ़ा रहे हैं. बिजली, पंखा, छात्रों के लिए टेबल-कुर्सी की बहुत जरूरत है, जो यहां है नहीं. अब जाकर विश्वविद्यालय का धीरे-धीरे विकास हो रहा है. हमें लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद और इसके केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद छात्रों को वो सुविधाएं मिल सकेंगी.
लाइब्रेरी में 90 फीसदी पद खाली पड़े हैं :प्रो. शुक्ला ने बताया कि हमारे यहां हजारों साल पुरानी पांडुलिपियां पड़ी हुईं हैं. मगर छात्रों को वहां जाकर शोध करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है. रख-रखाव का अभाव है. इसके साथ ही यहां पर मैन पावर की कमी है. विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में 90 फीसदी पद खाली पड़े हैं. छात्रों को लाइब्रेरी में न कोई किताब देने वाला है, न वहां पर वह पढ़ सकते हैं. न ही उसके विषय में उनको कोई जानकारी मिल रही है. अध्यापकों के 80 फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं. ये छात्रों की पढ़ाई-लिखाई को प्रभावित कर रहा है. केंद्रीय विश्वविद्यालय बनता है तो शायद ये समस्याएं दूर हो जाएंगी.
विभागों में प्रोफेसर नहीं, चलाया जा रहा काम :संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को स्टाफ की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है. यहां पर अधिकतर विभागों में शिक्षकों की कमी है. आंकड़ों में बात करें तो लगभग 80 फीसदी पद विश्वविद्यालय में खाली हैं. विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक अंग्रेजी का कोई भी प्रोफेसर नहीं है, धर्मशास्त्र में संविदा पर काम चल रहा है, बौद्ध दर्शन में एक भी प्रोफेसर नहीं है. यह विभाग एक एसोसिएट प्रोफेसर के भरोसे चल रहा है. वहीं नॉन टीचिंग विभाग में जितने अधिकारी वर्ग हैं सभी पद खाली हो गए हैं. क्लर्क और चतुर्थ श्रेणी में अधिकांश सीटें खाली हैं. एक क्लर्क के ऊपर 10 विभागों की जिम्मेदारी दी गई है.
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