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Teachers Day 2023: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 9 वर्ष तक संभाला बीएचयू में कुलपति का दायित्व, जानिए क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस - Professor Vijay Nath Mishra

भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति और बीएचयू के कलपति रह चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर देश भर में धूमधाम से शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति के पदभार ग्रहण करने की उनकी फोटो को संजोकर रखा गया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 5, 2023, 10:41 AM IST

बीएचयू के प्रोफेसर ने बताया.

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय का योगदान देश की आजादी से लेकर अब तक के विकास कार्यों में महत्वपूर्ण रहा है. विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति बने थे. यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की गरिमा को और भी बढ़ा देती है. बीएचयू की स्थापना और संचालन के दायित्व के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय के स्वास्थ्य कारणों के चलते डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बतौर कुलपति का पद 1939 से लेकर 1948 तक संभाला था. इसके बाद उन्होंने अपनी जयंती पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा था. तब से आज तक पूर्व राष्ट्रपति के जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बीएचयू के कुलपति का कार्यभार 9 वर्ष तक सभाला था.
पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने नहीं लिया वेतनकाशी हिंदू विश्वविद्यालय में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1939 से लेकर 1948 तक लगातार 9 वर्षों तक विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इस दौरान उन्होंने 1942 के दौर में स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने विश्वविद्यालय में एक प्रहरी के रूप में रक्षा किया. इसके साथ ही उन्होंने बतौर कुलपति पद पर वेतन लेने से इनकार कर दिया था. इस वेतन को उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रगति के निर्माण में दे दिया था.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का मुख्यद्वार.
बीएचयू कुलपति और देश के दूसरे राष्ट्रपतिमहामना ने अपने गिरते स्वास्थ्य के साथ ही विश्वविद्यालय को संभालने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को चुना जो बाद में जाकर देश का पहला उपराष्ट्रपति और देश के दूसरे राष्ट्रपति बना. विश्वविद्यालय की स्थापना से अब तक लेकर महामना बतौर कुलपति निःस्वार्थ भाव से इस कार्य को किया. महामना और अस्वस्थ हो रहे थे. ऐसे में सबसे बड़ा उनके लिए यह कार्य था कि उनके बाद कौन विश्वविद्यालय का कुलपति होगा. ऐसे में उन्होंने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को पत्र लिखा था. साथ ही विश्वविद्यालय के कुलपति का पदभार ग्रहण करने के लिए कहा, लेकिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने मना कर दिया था. दूसरी बार जब फिर महामना ने आग्रह किया तो वह खुद को रोक नहीं पाए. इसके बाद उन्होंने बीएचयू में 9 साल तक अपनी सेवा दी.
कुलपति का पदभार ग्रहण करने के दौरान की फोटो.


शिक्षक दिवस पर होते हैं आयोजन
आज 5 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार की आयोजन कराए गए हैं. जिसमें छात्र अपने पूर्व कुलपति को याद कर उनके योगदान के बारे में एक दूसरे को जानकारी देते हैं. इसके साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा छात्र-छात्राओं को उनके योगदान के बारे में बताया जाता है. विश्वविद्यालय के मालवीय भवन, भारत कला भवन में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियां रखी हुई हैं.


कुलपति का पदभार ग्रहण करने के समय की फोटो
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने बताया कि आज भी भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियां को विश्वविद्यालय में संजोकर रखा गया है. विश्वविद्यालय में उनके द्वारा लिखे हुए बहुत से पत्र हैं. कुलपति का दायित्व ग्रहण करते हुए ली गईं उस समय की फोटो भी संभालकर रखी गई है. इससे आने वाली पीढ़ी विश्वविद्यालय की गरिमा को जान सकेगी. यहां के कुलपति देश के राष्ट्रपति हुए हैं. महामना द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 7 सितंबर 1939 को विश्वविद्यालय में अपनी सेवा अर्पित करने को पत्र लिखा गया था. मालवीय भवन एवं भारत कला भवन, ये सब चीजें आज भी विश्वविद्यालय में सुरक्षित हैं. उनके स्मृति में यहां कला संकाय में एक व्याख्यान सभागर है. जिसका नाम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सभागार है. महामना सर्वपल्ली राधाकृष्णन और विश्वविद्यालय इन तीनों का आपस में बहुत ही गहरा संबंध रहा है.

स्वतंत्रता सेनानियों के साथ थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन
प्रोफेसर ने बताया जब वह विश्वविद्यालय के कुलपति थे. उस समय स्वतंत्रता आंदोलन 1942 चल रहा था. ऐसे में उन्हें पता चला कि छात्रों को पकड़ने के लिए ब्रिटिश पुलिस विश्वविद्यालय में प्रवेश करने जा रही है. इस दौरान उन्होंने छात्रों के गार्जियन के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने छात्रों और कर्मचारियों के साथ ही अंग्रेजों को रोकने के लिए सबसे आगे खड़े हो गए. राष्ट्र के नाम उन्होंने संदेश दिया कि वह देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.

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