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बेजुबानों के लिए छोड़ दी नौकरी, अपने आशियाने को बना दिया चिड़िया घर

वाराणसी की रहने वाली स्वाति बलानी जानवरों से इस कदर प्रेम करती हैं कि उनके घर में 20 कुत्ते, 13 बिल्लियां, 2 सांड, एक चील, दो दर्जन से ज्यादा कबूतर और 5 दर्जन से ज्यादा अन्य प्रजाति के पक्षी रहते हैं. स्वाति नौकरी छोड़कर जानवरों की सेवा में लगी रहती है.

नौकरी छोड़कर जानवरों के साथ रहती हैं स्वाति बलानी
नौकरी छोड़कर जानवरों के साथ रहती हैं स्वाति बलानी

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Published : Jun 11, 2021, 8:09 PM IST

वाराणसी: धर्म नगरी वाराणसी में एक ऐसा घर है जहां पर बेजुबानों को न सिर्फ आसरा मिलता है, बल्कि इनके जीवन को सुरक्षित रखने के लिए हर प्रयास किए जाते हैं. इस प्रयास को करने वाली कोई और नहीं बल्कि इस घर की बेटी स्वाति हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि स्वाति की उम्र तेजी से बढ़ रही है लेकिन उन्होंने न अब तक शादी करने की सोची और न ही अपने जीवन के बारे में सोच रही हैं. घर में स्वाति के साथ उनके माता-पिता के अलावा 20 कुत्ते, 13 बिल्लियां, 2 सांड, एक चील, दो दर्जन से ज्यादा कबूतर और 5 दर्जन से ज्यादा अन्य प्रजाति के पक्षी रहते हैं. सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सच है. सबसे बड़ी बात यह है कि स्वाति का यह शौक कब उनके जुनून में बदल गया यह उन्हें भी नहीं पता और इस वक्त उनका पूरा घर किसी चिड़ियाघर से कम नहीं लगता.

नौकरी छोड़कर जानवरों के साथ रहती हैं स्वाति बलानी

बेजुबान जानवरों के साथ जबरदस्त कनेक्शन
वाराणसी के सिकरौल इलाके की रहने वाली स्वाति बलानी जानवरों से बेहद प्रेम करती हैं. बेजुबान जानवरों के साथ इनका एक जबरदस्त कनेक्शन देखने को मिलता है. स्वाति बताती हैं कि बचपन से ही उनको बेजुबान जानवरों से बेहद लगाव था. उनका मानना है कि प्रकृति ने इस धरती को इंसान और जानवरों को एक साथ शेयर करने के लिए दिया है, लेकिन कुछ लोग जानवरों को बड़े ही गलत तरीके से ट्रीट करते हैं, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता.

बचपन से है जानवरों से लगाव
स्वाति बताती हैं कि जब वह छोटी थी तो अक्सर सड़क से कुत्ते या अन्य जानवर उठाकर घर ले आती थी. उनके माता-पिता ने उन्हें कभी कुछ नहीं कहा, देखते देखते ही यह शौक जुनून में बदल गया और अब दर्जनों की संख्या में उनके पास जानवर-पक्षी हैं.

कोई जानवर नहीं यहां किसी का दुश्मन
सबसे बड़ी बात यह है कि यह जानवर भले ही नेचर वाइस एक दूसरे से नफरत करते हो लेकिन स्वाति के घर में सब एक दूसरे के दोस्त हैं. कुत्तों के साथ बिल्लियां रहती हैं और कुत्ते सांड के साथ रहते हैं. जबकि चील अन्य पक्षियों के साथ घुलमिल कर रहता है. कुल मिलाकर इन पक्षियों का घर में आपसी तालमेल देखकर आपको आश्चर्य भी होगा.

बेजुबानों पर खर्च कर रहीं अपनी सेविंग
एमबीए करने के बाद स्वाति बलानी ने कुछ साल नौकरी भी की, लेकिन नौकरी में जाने की वजह से वह बेजुबान जानवरों का ध्यान नहीं रख पाती थी. घर पर और कोई न होने की वजह से स्वाति ने अपनी नौकरी को छोड़ दी. इसके बाद अपनी सेविंग से इन जानवरों को पालने में खर्च करना शुरू कर दिया. स्वाति का कहना है कि उनका परिवार यह जानवर ही है और अगर उनकी पूरी दौलत भी इनके ऊपर खर्च हो जाए तो उन्हें किसी बात की तकलीफ नहीं होगी.

ऐसे जानवरों को मिलता है आसरा
स्वाति ने बताया कि उनके पास इस वक्त गली या सड़कों पर घूमने वाले छोटा जानवरों से लेकर आवारा कुत्ते तक मौजूद हैं. उनके पास कई पालतू कुत्ते ऐसे हैं, जिनको लोगों ने अपने घर में पाला तो लेकिन हल्की बीमारी होने या फिर किसी अन्य परेशानी की वजह से उनको सड़क पर छोड़ दिया. ऐसे जानवरों को भी स्वाति अपने घर में जगह देती हैं और उनका लालन-पालन करती हैं.

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जानवरों से लगाव के चलते नहीं की शादी
स्वाति के पिता राकेश बलानी बैंक के एजीएम पद से रिटायर्ड हैं. पिता राकेश का कहना है कि बेटी का बेजुबान जानवरों से प्रेम उनको बचपन से दिखाई देता था. कभी भी किसी ने रोका-टोका नहीं, जिसके बाद उनकी बेटी का यह शौक अब काफी बड़ा हो चुका है. बेटी के साथ पूरा परिवार मिलकर जानवरों की देखरेख करता है. स्वाति इन बेजुबान जानवरों की सेवा करती है. यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन जब उनसे शादी के लिए कहा जाता है तो वह सीधे कहती हैं ऐसा कौन मिलेगा जो मेरे साथ इन बेजुबानों को स्वीकार करें. इसलिए इन बेजुबानों के खातिर स्वाति ने अब तक शादी भी नहीं की है.

हर रोज खर्च होते हैं हजारों रुपये
इन बेजुबान जानवरों का पेट भरने के लिए स्वाति हर रोज दो से ढाई हजार रुपए खर्च करती हैं, जो अपनी सेविंग से या फिर पिता की मदद से मिलता है. स्वाति का कहना है की जानवरों को खिलाने के लिए अलग-अलग तरह के भोजन मंगवाने पड़ते हैं. दूध प्रतिदिन 5 से 7 लीटर लगता है. पक्षियों के लिए दाने की व्यवस्था करनी होती है. सब कुछ करने के लिए वह अपनी ही सेविंग का इस्तेमाल करती हैं. स्वाति के इस शौक को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित होता है, क्योंकि आज के इस परिवेश में बेजुबानों का इस तरह का मसीहा मुश्किल से ही देखने को मिलता है.

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