वाराणसी: धर्म नगरी वाराणसी में तीन नवंबर से संस्कृति संसद का आयोजन शुरू हुआ है. पांच नवंबर तक चलने वाले इस आयोजन में देश भर के पीठाधीश्वर संत और शंकराचार्य के अलावा कई लोगों शामिल हुए हैं. इस कार्यक्रम में जम्मू कश्मीर के अटल अखाड़ा से जुड़े पीठाधीश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती भी पहुंचे हैं. जम्मू कश्मीर के हालात पर उनसे बातचीत करने पर उन्होंने सनातन धर्म पर हो रहे प्रहार और बयानबाजी पर खुलकर अपनी बातें रखीं.
उनका कहना था कि हमारी संस्कृति को नष्ट करने का जो कुचक्र रचा जा रहा है, वह उचित नहीं है. उन्होंने बनारस ज्ञानवापी परिसर में चल रहे विवाद को लेकर सरकार से यह अपील की है कि हर मंदिर के आधा किलोमीटर के दायरे को एक्वायर करके वह जगह मंदिरों के नाम की जानी चाहिए, ताकि आने वाले भविष्य में ऐसा कोई विवाद फिर से पैदा ना हो सके.
क्या है सनातन धर्मःविश्वात्मानंद सरस्वती अटल अखाड़ा जम्मू कश्मीर पीठाधीश्वर का कहना है कि यह बहुत अच्छी बात हुई है कि अखाड़ा परिषद, गंगा महासभा और संत समिति की तरफ से इस तरह का आयोजन काशी में किया जा रहा है, क्योंकि मैं एक बार श्रीनगर में था तो उस वक्त मुझे लोगों ने पूछा कि सनातन धर्म एक कल्पना है. इस पर मैं बता दूं कि जो इतना बड़ा सनातन धर्म है, वह कल्पना कैसे हो सकती है. क्योंकि, जितने भी धर्म हैं, उनकी एक लाइफ है. उनकी एक डेट है कि वह इस कालखण्ड में रहा है.
हर धर्म का होता है कालखंडःकोई 300 साल से तो कोई 500 साल से कोई 1000 साल से तो कोई 1200 साल पुराना है, लेकिन सनातन को खराब वही लोग कहते हैं जिनका एक काल है. जिसका कोई काल ही नहीं है वह कब से चला है उसे लोग काल्पनिक कह रहे हैं. इन सभी ने यह विचार देकर आज हिंदू सनातन जो लोग हैं उन्हें लोगों ने मिस गाइड किया है. सबसे बड़ी बात यह है कि आज तक लोगों को पता ही नहीं चला कि उन्हें मिस गाइड किया जा रहा है.
स्वामी जी ने कहा कि एक देश को अगर नष्ट करना हो तो उस देश की संस्कृति और भाषा को आप खत्म कर दो. वह देश अपने आप को भूलने लगता है कि हम किस देश के लोग हैं और दूसरे देश की संस्कृति दूसरे देश की भाषा उनके ऊपर थोप दी जाती है. देश अपने आप बदलने लगता है. इतने देश ऐसे हैं जो इस प्रकार की चीजों से प्रभावित हुए और आज के समय में इन देशों के लोगों की जो परंपरा और संस्कृति और नाम था मजहब था वह बदल गया.
कई देशों के नाम और मजहब बदल दिए गएःबहुत से देश हैं जिनका नाम और मजहब सब बदल दिया गया. इसलिए भारत को भी इसी प्रकार से नष्ट करने की एक पॉलिसी एक संप्रदाय एक एनजीओ या किसी कंट्री की नहीं है, अनगिनत लोग ऐसे हैं जिनको भारत को देखकर दुख होता है कि भारत महान कैसे है. भारत इतना विस्तृत कैसे है, इसलिए सभी इकट्ठे होकर बनारस में संस्कृत संसद में शामिल हो रहे हैं. हम सभी देश की संस्कृति को नष्ट करने वालों और जो इस पर प्रहार कर रहे हैं उसे लेकर लोगों को जागृत करने का काम हम सभी कर रहे हैं.