वाराणसी:काशी (Kashi) को धर्म और अध्यात्म की नगरी के साथ इतिहास, विभिन्न सभ्यता और संस्कृतियों वाला जिला कहा जाता है. यहां, तमाम धरोहर और ऐतिहासिक मंदिर (historical temple) स्थापित हैं. मान्यता है कि विश्व में काशी एकमात्र ऐसा नगर है, जिसे स्वयं महादेव (Mahadev) ने अपने त्रिशूल पर बसाया है. इसे बाबा विश्वनाथ का शहर भी कहते हैं. विविध संस्कृतियों के अलावा यहां एक आश्रम स्थापित है जो आज तक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है. जी, हां ये आश्रम आपको आश्चर्यचकित कर देगा. यह आश्रम काशी के छोर पर रमना गांव में स्थित है. इसे क्षेत्र में स्वामी भितरंगानन्द सरस्वती (Swami Bhitrangananda Saraswati) या भितरिया बाबा आश्रम के नाम से जाना जाता है. कुछ लोग इसे नागा बाबा आश्रम भी कहते हैं. इस आश्रम में गोशाला स्थापित है, जिसमें सात सौ से अधिक गोवंश हैं. दावा है कि कभी भी इन गायों का दूध नहीं निकाला गया और न ही बेंचा गया.
गंगा (Ganga) के तट पर बसा ये आश्रम बिल्कुल अपने आप में अनोखा है. लगभग 30 बीघे की परिधि वाले इस आश्रम में असंख्य वृक्ष हैं. इस आश्रम में करीब 700 से अधिक देसी गायें और सांड हैं. इन्हें कभी बांधा नहीं जाता. ये आश्रम खास इसलिए भी है क्योंकि यहां पर गायों का दूध नहीं निकाला जाता. दुधारू गायों के बछड़े ही पूरा दूध पीते हैं. इन गायों के चारे-पानी लिए सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती.
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी गाय के नाम पर वोट मांगती है. वैसे तो प्रदेश में योगी सरकार ने गोवंशों को संरक्षित करने के लिए गोशालाओं का निर्माण कराया है. गोवंशों के भूसे और पानी की समुचित व्यवस्था के लिए धनराशि भी आवंटित करती है, लेकिन इस आश्रम के सेवादार के मुताबिक, इस गोशाला के नाम पर सरकारी मदद नहीं मिलती. कहते हैं लोग अपनी श्रद्धा से भूसा और गोवंशों के खाने योग्य सामान दान करते हैं. इस आश्रम के संरक्षक का कहना उनकी सातवीं पीढ़ी इस आश्रम की देखरेख कर रही है.
आश्रम के सेवादार हौसला यादव का कहना है कि ये नागा बाबा का आश्रम है. बाबा स्वयं भगवान शिव के भक्त थे. बाबा कभी वस्त्र नहीं धारण करते थे, इसीलिए इन्हें नागा बाबा भी कहा जाता था. जो बहुत ही सिद्ध पीठ बाबा थे, जिन्हें भितरिया बाबा भी कहा जाता है. दावा है कि 300 साल बीत जाने के बाद भी इस परंपरा का अनवरत निर्वहन किया जा रहा है.