वाराणसीः काशी के कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं. यही वजह है कि यहां पुराणों और धार्मिक ग्रंथों से जुड़ी कई कहानियों का जिक्र मिलता है. इसमें एक किस्सा यमराज से जुड़ा हुआ है. इसका ताल्लुक मीर घाट के पास स्थित धर्मेश्वर मंदिर से हैं. चलिए, आपको इसका महत्व और इतिहास बताते हैं.
दरअसल, काशी के विशेश्वर खंड में धर्मेश्वर महादेव का मंदिर है. यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है. यहां स्वयं-भू शिवलिंग है. माना जाता है कि धर्मेश्वर शिवलिंग स्वयं यमराज ने स्थापित किया था. मान्यता के अनुसार यहीं पर यमराज ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सैकड़ों वर्ष तक तपस्या की थी. वैसे तो लोग रोज यहां दर्शन करने के लिए आते हैं, लेकिन काशी में सावन के पवित्र महीने में देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु यहांदर्शन के लिए आते हैं. शिव भक्त इस दौरान पूरे श्रद्धा भाव से बाबा का पूजन पाठ और रुद्राभिषेक करते हैं.
पंडित उमा शंकर उपाध्याय ने बताया कि मंगिर में स्थित शिवलिंग धर्मेश्वर महादेव का शिवलिंग है. यहां पर सूर्य के पुत्र यम ने चार युगों तक कड़ी तपस्या की थी. इसके बाद उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर बाबा विश्वनाथ प्रकट हुए और उनका नाम यमराज रखा. भगवान शंकर ने यमराज से पूछा कि आपको क्या वर चाहिए, तो इस पर सूर्य के पुत्र यमराज ने कहा, 'भगवान मैं आपका कार्य करना चाहता हूं. तब भगवान भोलेनाथ ने यमराज को पृथ्वी पर रहने वाले हर प्राणी के पाप और पुण्य के दंड का कार्य दिया.'