वाराणसी:कोरोना महामारी के बाद हुए लॉकडाउन के चलते स्कूलों और कॉलेजों में भी ताला बंद कर दिया गया. बच्चों की शिक्षा का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लास ही बचा है. छात्रों को व्हाट्सएप से जोड़ने की बात कही गई, ताकि सुचारू रूप से बच्चों की शिक्षा दीक्षा चलती रहे, लेकिन देश के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई की डगर मुश्किलों भरी नजर आती है.
अनलॉक की प्रक्रिया अपनाने के बाद भले ही व्यवस्थाएं धीरे-धीरे पटरी पर आ रही हों, लेकिन अभी भी स्कूल और कॉलेज बंद हैं. सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार 30 सितंबर तक स्कूल और कॉलेज बंद रहेंगे. इससे उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले अगले महीने भी स्थितियां जस की तस रहेंगी.
हालांकि सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई और वीडियो कॉलिंग के जरिए बच्चों को शिक्षित करने की योजना तैयार की. बड़े शहरों में शायद ऑनलाइन शिक्षा मुमकिन हो, लेकिन गांवों में अभी तक कनेक्टिविटी की जो हालत है, उसमें सामान्य कॉल करना ही अपने आप में एक मुसीबत है. ऊपर से कई बच्चों के घरों में स्मार्टफोन नहीं हैं, जो ऑनलाइन शिक्षा के सपनों को अधूरा ही रखने के लिए काफी है.
ये हैं खास बातें
- वाराणसी में हैं 13 सौ से ज्यादा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय
- 40 फीसदी से ज्यादा बच्चों के पास नहीं है एंड्रॉयड मोबाइल
- प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ऑनलाइन पढ़ाई में बाधा बन रही आर्थिक तंगी
वाराणसी में 13 सौ से ज्यादा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं. दावा किया जा रहा है कि शिक्षकों को ट्रेंनिंग देकर ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है. दावा ये भी है कि 'सब पढ़ें सब बढ़ें' की तर्ज पर डिजिटल क्लास घर-घर चल रही हैं, लेकिन इस दावे की हकीकत क्या है, इसकी पड़ताल ईटीवी भारत ने की. हालात यह हैं कि 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे एंड्रॉयड मोबाइल न होने की वजह से डिजिटल क्लास से काफी दूर हैं. हालांकि सरकारी व्यवस्था सिर्फ कागजों में सबको शिक्षित कर रही है.
ये हकीकत है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की. यहां पर कोई भी सरकारी योजना सबसे पहले अमलीजामा पहन ले, इसके लिए अधिकारी पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन सरकारी दावों की हकीकत सच से कोसों दूर है. यहां ऑनलाइन शिक्षा सरकारी दावों के हकीकत की पोल खोलती दिखाई देती है.
आर्थिक तंगी बनी ऑनलाइन शिक्षा में रोड़ा
जिला मुख्यालय से महज 100 मीटर की दूरी पर रहने वाले मलिन बस्ती के बच्चे, जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. वो किताबों और कॉपी से स्वयं पढ़ाई कर रहे हैं. पिता पेंटर का काम करते हैं, इसलिए डिजिटल और एंड्रॉयड मोबाइल खरीदना मुश्किल है. कीपैड मोबाइल होने की वजह से बच्चे डिजिटल क्लास में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं. कक्षा पांच, कक्षा सात और कक्षा 10 में पढ़ने वाले इस घर के तीन बच्चे पढ़ने में तो तेज हैं, लेकिन आर्थिक स्थित खराब होने की वजह से डिजिटल क्लास का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं.
अधिकारियों का दावा, बच्चों को दिया जा रहा डिजिटल ज्ञान
बच्चों को डिजिटल ज्ञान देने वाले अध्यापक भी इस बात को मानते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे उस स्थिति में नहीं हैं कि उन्हें डिजिटल क्लास के माध्यम से पढ़ाया जा सके. निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने वाले परिवारों के पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं हैं, जिनके पास मोबाइल हैं भी उन्हें रिचार्ज कराने में समस्याएं आ रही हैं, जो इस डिजिटल क्लास में बड़ी बाधा के तौर पर देखा जा है. हालांकि जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि उनकी तरफ से तैयारियां मुकम्मल की गई हैं. सभी शिक्षको को ट्रेंड किया गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में युवा दल अपने मोबाइल से बच्चों को क्लास दे रहे हैं, जिनके पास मोबाइल नहीं है, उनको 10-10 के समूह में टीचर गांव-गांव घर-घर जाकर पढ़ा रहे हैं. वहीं टीवी पर भी क्लासेस चल रही हैं, जो सरकारी योजना का हिस्सा हैं.