वाराणसी: छात्रसंघ चुनाव को राजनीति की नर्सरी माना जाता है. जहां पर छात्रनेता छात्रों के मुद्दे को लेकर संघर्ष करते हैं. उनकी आवाजों को बुलंद करने का काम करते हैं. यहां से निकलने वाले छात्र राजनीति में भी अपना परचम लहराते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, अनुप्रिया पटेल, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज राजनेता छात्र राजनीति से निकले हुए हैं. आज के दौर की बात की जाए तो यूपी सरकार के मंत्री नीलकंठ तिवारी और नवनिर्वाचित एमएलसी आशुतोष सिन्हा भी छात्र राजनीति से आए हैं.
कोरोना के कारण छात्रसंघ चुनाव में भी संकट गहराने लगा है. जहां एक तरफ सरकार के आदेश के अनुसार 50 प्रतिशत ही कक्षाएं चलाने की बात कही गई है, तो दूसरी तरफ विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में भी एडमिशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है. जनवरी का दूसरा सप्ताह खत्म होने को है. मार्च-अप्रैल में परीक्षाएं भी शुरू होने वाली हैं. इस साल कोरोना वायरस के कारण छात्रसंघ चुनाव पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं.
इन कॉलेजों में नहीं शुरू हुई छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्वांचल के लगभग 19 कॉलेज ऐसे हैं, जहां छात्रसंघ चुनाव होते हैं. उनमें भी अभी छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है.
छात्रसंघ चुनाव पर पड़ा असर
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण जहां जीवन त्रस्त और संस्थाओं में उतार-चढ़ाव देखे गए हैं. वहीं, इसका असर महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में होने वाले छात्रसंघ चुनाव पर भी देखने को मिला है. इनमें अभी तक एडमिशन की प्रक्रिया चल रही है, जबकि सत्र खत्म होने को 2-3 महीने ही बचे हैं. विश्वविद्यालय में अभी भी कई विषयों में एडमिशन लिया जाना बाकी है. छात्र आशीष केसरी ने बताया कि छात्रसंघ चुनाव में छात्र की राजनीति की जाती है, जिसमें छात्र का हित धर्म होता है. छात्र राजनीति नहीं होने से कोई छात्र नेता छात्रों की बात नहीं सुन पाते हैं. महाविद्यालय में कई समस्याएं हैं. जिनको सुनने के लिए छात्र नेता हमेशा तत्पर रहते हैं. छात्र राजनीति करने के बाद बहुत से लोगों ने आगे बढ़कर देश का नेतृत्व किया है.
छात्रों के लिए है अच्छा प्लेटफार्म