वाराणसी:धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने अलग-अलग पर्व और त्योहारों के वजह से जानी जाती है. यही वजह है कि बनारस का मिजाज जानने के लिए पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने से लोग आते हैं. ऐसे ही कुछ बनारस के प्रोफेसर ने मिलकर एक संस्था का गठन किया. जिसका नाम अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वर्क विश्वविद्यालय रखा गया है, जिसे 3 साल पूरे हो गए हैं. इसके उपलक्ष्य में 31 जनवरी को इसका उत्सव मनाया जाएगा. यह कार्यक्रम किसी मंच या थिएटर पर नहीं बल्कि बनारस के घाटों और सीढ़ियों पर मनाया जाएगा.
बनारस के घाटों में समेटा है इतिहास
बनारस के घाट आदि काल से प्रचलित रहे हैं. यही वजह थी कि इन्हें घाटों पर बैठकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित्र मानस के कुछ अंश की रचना की. रविदास जी को उनके गुरु के दर्शन इन्हीं घाटों पर हुए. मां भगवती के कान का कुंडल इन्हीं घाटों पर गिरा जो आज महाशमशान मणिकर्णिका के रूप में जाना जाता है. ब्रह्मा जी ने स्वयं दस अश्वमेध यज्ञ किए तब काशी का दशाश्वमेध घाट बना. काशी के पंचगंगा घाट पर पांच नदियों का संगम है. गंगा, यमुना, विशाखा, धुपापा, किरणा का संगम होता है.
कोविड वेक्सीनेशन के लिए करेंगे जागरूक
डॉ. विजय नाथ मिश्र ने बताया इस उत्सव के माध्यम से हम लोगों को काशी के घाटों से जुड़ेंगे. लोगों को यह बताने का प्रयास करेंगे जब आप काशी के घाटों पर आइए. तो अपने सारे परेशानी काशी के घाटों से जोड़ने में लगाइए. गंगा काशी और घाट यही हमारा जीवन है. कोविड वेक्सीनेशन के दो डोज बहुत ही जरूरी है. यह सबको बताने की जरूरत है. जो लोग काशी का घाट घूमने आते हैं या जो लोग काशी के घाटों पर रहते हैं उनके लिए बहुत बड़ा कटआउट बनाया है. जो पूरे वॉक में साथ-साथ चलेगा. गणतंत्र दिवस पर जिस तरह का वैक्सीनेशन वाला कट आउट बना था. वैसा ही बना है. यह पूरे देश और दुनिया को मैसेज देगा. महामारी हो या किसी भी प्रकार की दिक्कत तो हम एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे. कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे जीवन की नई शुरुआत करेंगे.