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वाराणसी: जानिए क्यों है रविदास मंदिर नेताओं की पहली पसंद

धर्म अध्यात्म और संतों की वाणी हमेशा प्रासंगिक मानी जाती है. चाहे कोई मौका हो ईश्वर और संतों का आशीर्वाद लेकर ही हर कोई अपने कार्य की शुरुआत करना चाहता है, लेकिन आज के बदलते सामाजिक परिवेश और राजनैतिक दृष्टि से अब भगवान और संत भी लगता है पॉलीटिकल वेटेज लेने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं.

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रविदास मंदिर

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Published : Feb 9, 2020, 3:31 AM IST

वाराणसी: वाराणसी का संत रविदास मंदिर वह स्थान है, जहां जाति-धर्म और मजहब के बंधनों को तोड़कर लोग महान संत रविदास के दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं. 9 फरवरी को संत रविदास की 643वीं जयंती है और इस जयंती के मौके पर इस बार वाराणसी में लोग मत्था टेकने पहुंच रहे हैं. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का अचानक से वाराणसी का यह दौरा निश्चित तौर पर कई सवाल भी उठा रहा है, क्योंकि इस रविदास मंदिर में नेता कोई पहली बार नहीं पहुंच रहे हैं, बल्कि इसके पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री योगी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समेत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी यहां पर मत्था टेक कर प्रसाद ग्रहण कर चुके हैं. अब प्रियंका गांधी का आना निश्चित तौर पर इस मंदिर के पॉलिटिकल कनेक्शन की दास्तां बयां करने के लिए काफी है.

जानिए क्यों है रविदास मंदिर नेताओं की पहली पसंद

संत रविदास का जन्मस्थल वाराणसी का सीर गोवर्धन
संत रविदास का जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन में माना जाता है. सीर गोवर्धन संत रविदास धर्म के मानने वाले लोगों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है, क्योंकि 2009 में जब संत रविदास धर्म की स्थापना हुई, तब पंजाब, हरियाणा और देश-विदेश के हिस्से में रहने वाले पंजाबी मूल के दलित और अन्य पिछड़ी जाति के लोगों के लिए इस धर्म में एक अलग स्थान मिला. संत रविदास की जन्म स्थली पर हर साल सिर्फ पंजाब से अकेले 25 लाख से ज्यादा लोगों का आना होता है. हरियाणा और अन्य हिस्सों से मिलाकर लगभग 5 से 7 लाख लोग हर साल पहुंचते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में रहकर पंजाब-हरियाणा को साधने का प्रयास हर नेता करना चाहता है.

मायावती ने अपने शासनकाल में मंदिर का कराया कायाकल्प
दलितों के पूजनीय संत रविदास के मंदिर में माथा टेककर हर नेता अपनी अगड़ी सुधारना चाहता है. यही वजह है कि मायावती ने अपने शासनकाल में संत रविदास मंदिर और इसके आसपास के स्थान के कायाकल्प के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने को खोल दिया था. संत रविदास की सोने की पालकी हो या फिर स्वर्ण शिखर या फिर संत रविदास मंदिर का कायाकल्प करने में योगदान मायावती ने अपने हाथ कहीं भी पीछे नहीं रखे थे. उसके बाद लगातार सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन सभी की दृष्टि बस रविदास मंदिर को विकसित करने में रही.

पीएम मोदी ने की भव्य सत्संग हॉल बनवाने की शुरुआत
2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पहुंचे तो करोड़ों की लागत से यहां पर भव्य सत्संग हॉल बनाने की शुरुआत उन्होंने की. इसके पीछे एक बड़ी वजह है कि यूपी में लगभग 21% आबादी ऐसी है, जो संत रविदास को मानने वाली है और 2022 के चुनाव से पहले निश्चित तौर पर हर पार्टी इस वोट बैंक को भी साधने का पूरा प्रयास करने में अभी से जुट गई है.

सीएम योगी ने की संत रविदास कॉरिडोर बनाए जाने की घोषणा
इसके अलावा योगी आदित्यनाथ ने अपने शासनकाल में यहां आने के बाद संत रविदास कॉरिडोर बनाए जाने की घोषणा की. करोड़ों रुपये की लागत से संत रविदास कॉरिडोर का निर्माण शीघ्र शुरू होने वाला है. इस पॉलिटिकल घोषणा के बाद निश्चित तौर पर यूपी से पंजाब-हरियाणा साधने का प्रयास बीजेपी की तरफ से लगातार जारी है, क्योंकि पर्यटन की दृष्टि से इस जगह को विकसित कर संत रविदास के अनुयायियों को अपनी तरफ करना बीजेपी का बड़ा हथकंडा माना जा सकता है.


प्रियंका गांधी रविवार को पहुंचेंगी मत्था टेकने
लगातार कांग्रेस भी दलितों को संत रविदास के नाम पर साधने की कोशिश करती रही है. राहुल गांधी हो या अब प्रियंका गांधी यहां पर आकर मत्था टेककर कांग्रेस की डूबती नैया को बचाना चाहते हैं. क्योंकि पंजाब में कांग्रेस की वर्तमान सरकार आगे अच्छा करें और कांग्रेस मजबूत रहे, शायद यही दृष्टि प्रियंका गांधी को दिखाई दे रही है. प्रियंका कल वाराणसी पहुंचेंगी और यहां पर मत्था टेकने के बाद लंगर में भोजन भी करेंगे. फिलहाल प्रियंका गांधी के आने से पहले रविदास के इस पॉलिटिकल कनेक्शन से यह तो साफ है कि हर नेता के लिए संत रविदास का महत्व उनके जन्मदिन पर बेहद खास है.

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