वाराणसी: वाराणसी का संत रविदास मंदिर वह स्थान है, जहां जाति-धर्म और मजहब के बंधनों को तोड़कर लोग महान संत रविदास के दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं. 9 फरवरी को संत रविदास की 643वीं जयंती है और इस जयंती के मौके पर इस बार वाराणसी में लोग मत्था टेकने पहुंच रहे हैं. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का अचानक से वाराणसी का यह दौरा निश्चित तौर पर कई सवाल भी उठा रहा है, क्योंकि इस रविदास मंदिर में नेता कोई पहली बार नहीं पहुंच रहे हैं, बल्कि इसके पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री योगी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समेत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी यहां पर मत्था टेक कर प्रसाद ग्रहण कर चुके हैं. अब प्रियंका गांधी का आना निश्चित तौर पर इस मंदिर के पॉलिटिकल कनेक्शन की दास्तां बयां करने के लिए काफी है.
संत रविदास का जन्मस्थल वाराणसी का सीर गोवर्धन
संत रविदास का जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन में माना जाता है. सीर गोवर्धन संत रविदास धर्म के मानने वाले लोगों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है, क्योंकि 2009 में जब संत रविदास धर्म की स्थापना हुई, तब पंजाब, हरियाणा और देश-विदेश के हिस्से में रहने वाले पंजाबी मूल के दलित और अन्य पिछड़ी जाति के लोगों के लिए इस धर्म में एक अलग स्थान मिला. संत रविदास की जन्म स्थली पर हर साल सिर्फ पंजाब से अकेले 25 लाख से ज्यादा लोगों का आना होता है. हरियाणा और अन्य हिस्सों से मिलाकर लगभग 5 से 7 लाख लोग हर साल पहुंचते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में रहकर पंजाब-हरियाणा को साधने का प्रयास हर नेता करना चाहता है.
मायावती ने अपने शासनकाल में मंदिर का कराया कायाकल्प
दलितों के पूजनीय संत रविदास के मंदिर में माथा टेककर हर नेता अपनी अगड़ी सुधारना चाहता है. यही वजह है कि मायावती ने अपने शासनकाल में संत रविदास मंदिर और इसके आसपास के स्थान के कायाकल्प के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने को खोल दिया था. संत रविदास की सोने की पालकी हो या फिर स्वर्ण शिखर या फिर संत रविदास मंदिर का कायाकल्प करने में योगदान मायावती ने अपने हाथ कहीं भी पीछे नहीं रखे थे. उसके बाद लगातार सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन सभी की दृष्टि बस रविदास मंदिर को विकसित करने में रही.