वाराणसी: मंदिरों के शहर कहे जाने वाले काशी में आज हम आपको एक अनोखी मूर्ति के बारे में बताएंगे. यह मूर्ति एक-दो नहीं, बल्कि लगभग 325 वर्ष पुरानी है. धनतेरस के दिन समुद्र मंथन में भगवान विष्णु के अवतार भगवान धनवंतरी का अवतरण हुआ था. धनतेरस के दिन लोग भगवान धनवंतरी की पूजा करते हैं. भगवान धन्वंतरी को देवताओं का वैध कहा जाता है. काशी के सूड़ियां स्थित राजवैद्य परिवार के घर पर स्थापित भगवान धनवंतरी की अति प्राचीन अष्टधातु की मूर्ति के दर्शन मात्र से ही सभी कष्टों का निवारण हो जाता है और धनतेरस के दिन दर्शन का विशेष महत्व व लाभ भी हैं. यहां भगवान धनवंतरी चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं. उनके चारों भुजाओ में अमृत का कलश, चक्र, शंख और जोंक सुशोभित हैं.
325 वर्ष पुरानी मूर्ति
वहीं, धन्वंतरी जयंती के अवसर पर अति प्राचीन अष्टधातु की मूर्ति का पूरे विधि विधान से पूजा किया गया. साथ उनका औषधि और फलों से श्रंगार किया गया. इधर, राजवैद्य आज भी वैद्य परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. वक्त पर जो भी वे आज भी औषधी बनाते हैं. मान्यता यह भी है कि यहां का प्रसाद और भगवान के दर्शन मात्र से ही सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है.
दो वर्ष बाद हुआ दर्शन
बता दें कि वैश्विक महामारी के दौर में पिछले दो वर्षों से आम जनमानस के लिए मंदिर के कपाट बंद हो गए थे. लेकिन इन दो वर्षों में भी भक्त ऑनलाइन भगवान के दर्शन करते रहे. वहीं, वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए धनतेरस के दिन यहां भक्तों के दर्शन के लिए भगवान की खुले में पूजा की गई, ताकि सभी भक्तों को दर्शन का लाभ मिल सके.