वाराणसी: आज भारत मां के एक ऐसे पुत्र का जयंती है, जिसका नाम सुनते ही रोम-रोम देश के लिए मर मिटने को आतुर हो उठता है. उस जाबांज की कहानी सुनकर उसकी वीरता पर हर भारतीय को गर्व है. उस जाबांज का नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद. आज उस वीर सिपाही की 114 वी जयंती मनाई जा रही है. आइए जानते हैं आजाद और बनारस का कनेक्शन.
मंदिरों में रहकर बनाते थे आजादी की रणनीति
धर्म और अध्यात्म के शहर काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. देश की आजादी में मंदिरों का बहुत ही बड़ा योगदान रहा. इन्हीं मंदिरों में चंद्रशेखर आजाद पुजारी के रूप में रहते थे. साथ ही वह देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ यहां के मठ मंदिर और अखाड़े हुआ करते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ मंदिर, अखाड़ों में अपना जीवन यापन करते थे और यहीं रहकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे.
अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में भी माहिर थे. यही वजह थी अंग्रेजी अवसर उनको पहचान नहीं पाते थे. कहते हैं कि बाल्यावस्था से बनारस में रहने के कारण आजाद की दिनचर्या भी बनारसी थी. यहां के अखाड़ों में चंद्रशेखर रियाज करते थे और शहर के वो पुराने अखाड़े आज भी जीवित हैं.
क्रांतिकारियों की कहानियों का उल्लेख करने वाले लोग कहते हैं कि आजाद गोस्वामी तुलसीदास और लाल कुटिया अखाड़ा में रहकर कभी पुजारी तो कभी पहलवान बनकर काशी में समय बिताया करते थे. चंद्रशेखर यहीं पर अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ आजादी के लिए क्रांतिकारी संगठन को मजबूत बनाने की योजनाएं बनाते थे.