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छठ पूजा 2019: बिहार-झारखंड तक छाया है काशी का यह खास 'सूप'

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Published : Oct 30, 2019, 11:25 AM IST

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में डाला छठ पर्व को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. वहीं काशी में तैयार होने वाले पीतल के सूपों की डाला छठ पर खासी डिमांड रहती है. काशी में तैयार होने वाले इन सूपों को खरीदने के लिए लोग बिहार से आते हैं. यही नहीं इन सूपों की सप्लाई पूर्वांचल के अन्य जिलों के अलावा बिहार-झारखंड में होती है.

बनारस के इस खास सूप की डिमांड बिहार तक.

वाराणसी:दीपावली का पर्व खत्म होने के साथ ही पूरे उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को बेसब्री से डाला छठ पर्व का इंतजार रहता है. बिहार में होने वाले इस महापर्व का विस्तारीकरण अब उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश के अलग-अलग राज्यों में तेजी से हो रहा है. खासतौर पर धर्म नगरी काशी में मिनी बिहार का नजारा डाला छठ के मौके पर देखने को मिलता है.

इन सूपों की सप्लाई बिहार-झारखंड में होती है.

अगर यह कहे कि काशी के एक खास प्रोडक्ट के बिना डाला छठ का यह त्योहार बिहार और उत्तर भारत के अन्य जिलों में कुछ फीका सा होता है तो शायद गलत नहीं होगा, क्योंकि काशी में तैयार होने वाले एक पीतल के खास सूप की डिमांड डाला छठ के मौके पर बिहार-झारखंड समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में जबरदस्त होती है. इस सूप की डिमांड इतनी ज्यादा है कि डाला छठ पर बनारस से इसकी खरीदारी दूर-दूर से लोग करने आते हैं.

कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है पर्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाले महापर्व छठ में अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर बच्चों के लंबी उम्र की कामना की जाती है. बिहार का यह महापर्व बनारस में भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस महापर्व में बांस से बने सूप का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसी रूप में व्रती महिलाओं द्वारा जल में खड़े होकर भगवान सूर्य के आगे फल और अन्य भोग सामग्री को अर्पण किया जाता है.

31 अक्टूबर से छठ की होगी शुरुआत
31 अक्टूबर से नहाए-खाए के साथ इस महापर्व की शुरुआत होगी और पहला अर्घ्य 2 नवंबर और दूसरा अर्घ्य 3 नवंबर को दिया जाएगा. जिसे लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. इस दौरान बनारस में तैयार होने वाले खास पीतल के सूप की डिमांड भी जोरों पर है.

खास सूप की होती है डिमांड
पीतल से तैयार होने वाले सूप के कोनों में लोहे के तार भरकर इसे मोल्ड किया जाता है और इसमें सूरज देवता, छठी मैया और केले के खंभों के शानदार डिजाइन उकेरे जाते हैं. देखने में बिल्कुल सोने सा लगने वाला यह सूप पानी में खराब नहीं होता और रेट भी इतना रीजनेबल कि लोग इसे खरीदने बिहार से बनारस आते हैं.

बनारस में कारोबार होता है बड़े पैमाने पर
बनारस के काशीपुरा क्षेत्र में कसेरा समाज के लोग दिवाली के लगभग तीन महीना पहले से ही इस सूप को बनाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं. सूप के साथ पीतल के लोटे का काम भी बनारस में बड़े पैमाने पर होता है. इसे तैयार करने वाले कारोबारी राकेश का कहना है कि पीतल का सूप बनाना अब काशी की पहचान बन चुका है.

इसकी डिमांड काशी से ज्यादा पूर्वांचल और बिहार में
कारोबारी का कहना है कि यह सूप सिर्फ काशी में ही तैयार होता है, लेकिन अब हरियाणा के कुछ जिलों मे भी इसे बनाया जाने लगा है, लेकिन जो फिनिशिंग काशी के सूप में देखने को मिलती है, वह कहीं और नहीं मिलेगी. एक बात और यह सूप तैयार तो काशी में होता है, लेकिन इसकी डिमांड काशी से ज्यादा पूर्वांचल के अन्य जिलों और बिहार के लगभग सभी जिलों में होती है. नेपाल बॉर्डर और झारखंड में भी स्तूप की सप्लाई काशी से ही की जाती है.

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