वाराणसी: मां दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा की आराधना के लिए जाना जाता है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्र के प्रथम दिन यानी प्रतिपदा तिथि को देवी स्थापना का विधान बताया गया है. नवरात्रि के प्रथम दिवस पर देवी स्थापना के साथ कलश पूजन करने के लिए मुहूर्त और सही तरीका जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि माता की कृपा और माता का आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है, जब कलश स्थापना व देवी पूजन सही तरीके से पूर्ण किया जाए. जानिए 7 अक्टूबर को नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना का सही मुहूर्त और तरीका.
7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक नवरात्रि
ज्योतिषाचार्य एवं काशी विद्वत परिषद के महामंत्री पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि तीन तरह की मानी जाती है. चैत्र महीने में पड़ने वाली वासंतिक नवरात्रि देवी गौरी की पूजन के लिए उपयुक्त होती है, जबकि दूसरी नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के रूप में जानी जाती है. यह नवरात्रि तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है. शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है और मां दुर्गा के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है. दुर्गा पूजा के बाद दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर से होने जा रही है और 14 नवंबर को नवमी तिथि के साथ नवरात्र का समापन होगा, जबकि 15 अक्टूबर को दशहरे का पर्व मनाया जाएगा.
कलश स्थापना के लिए सिर्फ 47 मिनट का वक्त
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्रि में सबसे महत्वपूर्ण होता है, कलश स्थापना. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना वैसे तो सुबह सूर्य उदय के साथ ही की जाती है, लेकिन हिंदू धर्म शास्त्र में चित्रा नक्षत्र और वैद्यती योग मिले तो घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त में करनी चाहिए. यानी इस बार घटस्थापना के लिए सुबह 11:37 से लेकर 12:23 तक का ही समय उपयुक्त मिल रहा है. हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक यह स्पष्ट है कि यदि नक्षत्र और योग सही न हो तो अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना उपयुक्त होता है, यानी इस बार कलश स्थापना के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन लगभग 47 मिनट का ही समय मिल रहा है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि इस बार षष्ठी तिथि की हानि है यानी नवरात्रि 8 दिन का होगा.