वाराणसी:आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तिथि तक पूर्वजों की आत्मशांति के लिए श्रद्धा के साथ विधि-विधानपूर्वक श्राद्ध करने की परंपरा है. आश्विन मास की अमावस्या तिथि के दिन सर्व पितृ विसर्जन करने का विधान है. इस दिन किए गए श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होकर जीवन में सुख-सौभाग्य व खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं. सनातन धर्म में हिन्दू मान्यता के अनुसार मुख्य रूप से 5 ऋण माने गए हैं. प्रथम देवऋण, द्वितीय ऋषिऋण, तृतीय-पितृऋण, चतुर्थ मातृऋण, पंचम- मानवऋण इन ऋणों से मुक्ति पाने के लिए समय-समय पर विधि-विधानपूर्वक धार्मिक अनुष्ठान करते रहना चाहिए.
पौराणिक मान्यता के आधार पर मंत्र, स्तोत्र एवं पितृसूक्त का नित्य पाठ करने से पितृबाधा का शमन हो जाता है. यदि नित्य पठन संभव न हो तो प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि के दिन अवश्य करना चाहिए. साथ ही अमावस्या तिथि के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर श्वेत वस्त्र, दूध, चौनी, दक्षिणा किसी योग्य ब्राह्मण या किसी नजदीक मंदिर में दान कर देना चाहिए. पितृपक्ष के अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करने पर पितृदोष की शांति होती है. प्रत्येक शुभ व मांगलिक आयोजन पर भी पितरों को निमंत्रित कर पूजा करने की धार्मिक मान्यता है. इसके अलावा जिनकी कुंडली में पितृदोष हो उनको आज के दिन अपने पितरों से माफी मांगते हुए श्राद्धकर्म, तर्पण, ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए. उससे उनकी कुंडली में व्याप्त पितृ दोष का असर कम होता है.
प्रख्यात ज्योतिषविद ऋषि द्विवेदी ने बताया कि रविवार 25 सितंबर को सर्वपितृत्वसर्जनी अमावस्या है. आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि शनिवार, 24 सितंबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 13 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन रविवार, 25 सितंबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 25 मिनट तक रहेगी. महालया की समाप्ति रविवार, 25 सितंबर को हो जाएगी. आज अमावस्या के दिन अज्ञात तिथि (जिन परिजनों की मृत्यु तिथि मालूम न हो या जिन्होंने किसी कारणवश अपने पितरों का श्राद्ध न कर पाए हों) वालों का श्राद्ध आज रविवार, 25 सितंबर को विधि-विधानपूर्वक किया जाएगा.
पितृपक्ष में किसी कारणवश माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य परिजनों का श्राद्ध न कर पाए हो, उन्हें आज के दिन अमावस्या तिथि पर श्राद्ध करके पितृऋण से मुक्ति पानी चाहिए. आज अमावस्या तिथि के दिन श्राद्ध करने से अपने कुल व परिवार के सभी पितरों का श्राद्ध मान लिया जाता है. आज के दिन त्रिपिण्डी श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व है. त्रिपिण्डी में तीन पूर्वज-पिता, दादा एवं परदादा को तीन देवताओं का स्वरूप माना गया है. पिता को वसु, दादा को रुद्र देवता तथा परदादा को आदित्य देवता के रूप में माना जाता है. श्राद्ध के समय यही तीन स्वरूप अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने गए हैं.