वाराणसी: जिले में इस बार दशहरे की रंगत फीकी नजर आएगी. असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाने वाला दशहरे का त्योहार इस बार वाराणसी में बेहद सादगी के साथ मनाया जाएगा. कोरोना की वजह से डीरेका में इस बार न तो दशहरा मेला होगा और न ही करीब 70 फिट लंबे रावण का दहन होगा. यहां करीब 56 साल से दशहरा मेला होता आ रहा था, लेकिन कोरोना के कारण लगी बंदिशों की वजह से इस बार दशहरे पर न तो भीड़ इकट्ठा होगी और न ही रावण, मेघनाद और कुंभकरण का विशालकाय पुतला जलाया जाएगा. डीरेका रामलीला समिति इस बार होने वाले प्रमुख कार्यक्रम को सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की योजना बना रही है.
रामलीला समिति डीरेका के महामंत्री अनूप सिंह ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से इस बार परंपरा के अनुसार रामलीला नहीं हो पा रही है. लेकिन 15 अक्टूबर से 27 अक्टूबर तक भरत मिलाप के शेड्यूल के कार्यक्रम को सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाएगा. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए. उन्होंने कहा कि इस बार रामलीला और दशहरा मेला नहीं होगा. लोग नहीं जुटेंगे इसलिए बड़े पुतले लगाने का भी कोई फायदा नहीं है. उन्होंने कहा कि दशहरे के दिन सांकेतिक रूप से छोटे पुतलों के दहन की अभी योजना बनाई जा रही है. इस प्रोग्राम को फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया माध्यमों के ज़रिए से लोगों तक पहुंचाने की तैयारी की जा रही है.
नहीं होगा 75 फीट भव्य रावण दहन पुतला बनाने में खर्च होते थे 2 लाख रुपए
वाराणसी की डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप में हर साल विजयादशमी के दिन रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के विशालकाय पुतले जलाने की कई साल पुरानी परंपरा है. डीरेका रावण की ऊंचाई 75 फीट, कुंभकरण की 65 फीट और मेघनाथ के पुतले की ऊंचाई 60 फीट रखता था. इन पुतलों को बनाने में लगभग 2 लाख रुपये खर्च होते थे. इसमें 2 कुंतल कागज, 25 लीटर पेंट, एक कुंतल मैदे की लेई और करीब 100 लंबे बांस का इस्तेमाल किया जाता था. लंबे चौड़े पुतलों को बनाने के लिए लगभग 2 महीने पहले से ही मैदान में कारीगरों की टोली जुट जाती थी, लेकिन इस बार यहां सन्नाटा पसरा हुआ है.
भव्य होता था रामलीला का आयोजन 56 साल से हो रहा था दशहरा मेला
वाराणसी के डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप में 1964 से दशहरा मेले का आयोजन हो रहा है. मेले का अपने आप में काफी महत्व है और काशी की परंपरा से यह जुड़ चुका है. इसकी बड़ी वजह यह है कि मेले में 3 घंटे के अंदर भगवान राम की समस्त लीलाओं का मंचन होता है. 3 घंटे में एक समग्र रामलीला का मंचन पात्र बखूबी करते हैं. रामलीला के संवादों में संगीत की सिर्फ 12 विधाओं का प्रयोग किया जाता है. जिसमें कजरी, सोहर, निर्गुण, चैती, कहरवा, छपरहिया और भोजपुरी भाषा के साथ ही मैथिली एवं होरी भी शामिल है. डीरेका में दशहरे के दिन होने वाले रामचरित मानस पर आधारित राम वन गमन से लेकर रावण वध तक की लीला को ढाई घंटे में रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. यहां के रूपक में पात्र संवाद बोलते नहीं है. संवाद सिर्फ मंच से किया जाता है. इस रूपक में 60 फीसदी दृश्य और 40 प्रतिशत श्रव्य होते हैं. संवाद मंच से बोले जाते हैं और पात्र मूक अभिनय करते हैं. इसमें रामचरित मानस की चौपाइयों के गीत, कजरी और हिंदी की सभी विधाओं का प्रयोग किया जाता है.
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कार्यक्रम अगर बंद हॉल में हो रहा है तो उसकी कुल क्षमता के 50 फीसदी लोग ही अंदर जा सकेंगे. यहां फेस मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेसिंग अनिवार्य होगा. अगर कार्यक्रम खुले स्थान में होता है तो क्षेत्र के हिसाब से ही लोगों को अनुमति दी जाएगी और यहां भी 6 फीट की दूरी सुनिश्चित करना आवश्यक है. कार्यक्रम में 65 साल से ज्यादा के लोग, 10 साल की उम्र से कम के बच्चे और गर्भवती महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं. कार्यक्रम स्थल पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था होना अनिवार्य है. इसके अलावा हैंड सैनिटाइजर का भी ध्यान रखा होगा. कार्यक्रम स्थल पर एंट्री और एग्जिट के अलग-अलग गेट रखने के निर्देश दिए गए हैं. यहां कोरोना से जागरूकता के लिए पोस्टर और बैनर भी लगाए जाएंगे. आयोजक स्पर्श रहित भुगतान की व्यवस्था करें.
कार्यक्रम रद्द होने से लोगों में मायूसी
डीएलडब्लू ग्राउंड में होने वाले दशहरे के मेले से कई लोगों की अच्छी आमदनी हो जाती थी. दशहरे के दिन मेले में भीड़ उमड़ती थी और पास में मौजूद सेंट्रल मार्केट में दुकानों पर अच्छी बिक्री होती थी. स्थानीय दुकानदार हरितेश सिंह ने कहा कि मेले की वजह से बड़ी संख्या में लोग आते थे, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से कार्यक्रम नहीं हो रहा है. जिसकी वजह से काफी नुकसान होगा. आसपास के गांवों से लाखों की संख्या में लोग यहां पहुंचते थे, लेकिन इस बार यहां सन्नाटा रहेगा. स्थानीय व्यापारी सेमन कुमार ने कहा कि मेले की वजह से इस महीने में अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा. विशाल गौतम कहते हैं कि स्थानीय लोगों के लिए यह बहुत बड़ा त्योहार माना जाता है, लेकिन इस बार यह नहीं हो रहा है. इसकी वजह से बहुत नुकसान होगा. वहीं शरद कुमार वर्मा ने कहा कि कोरोना पर काफी हद तक नियंत्रण हो चुका है, अगर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कार्यक्रम हो सकते हैं तो वह होने चाहिए.