वाराणसी: सावन का महीना और बाबा भोलेनाथ की भक्ति अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि सावन के पवित्र महीने में किसी भी शिवालय में जाकर भोलेनाथ पर सिर्फ एक लोटा जल अर्पित करने मात्र से ही औघड़दानी खुश हो जाते हैं और बात अगर काशी जी की जाए तो यहां तो कण-कण में शिव हैं.
किसी पत्थर पर भी शंकर मानकर अगर आपने जल अर्पित कर दिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. लेकिन, अगर आप से हम यह कहें कि काशी में सावन के इस पवित्र महीने में एक ऐसा शिवालय भी है, जहां जल अर्पित करना तो दूर आपको दर्शन करना भी नसीब नहीं होगा तो आश्चर्य मत कीजिएगा. क्योंकि काशी के मणिकर्णिका घाट पर एक ऐसा शिवालय है, जहां पर सावन में बाबा भोलेनाथ न दर्शन देते हैं और न ही जल अर्पित करने का सौभाग्य किसी को मिलता है. क्योंकि यह मंदिर अपने आप में हर वक्त पूरी तरह से जल में डूबा रहता है. क्या है इस मंदिर का रहस्य और क्यों सावन में नहीं होता है यहां शिव का अभिषेक और दर्शन जानिए ईटीवी भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में.
मंदिर के बारे में जानकारी देते शिवभक्त और पुजारी. काशी के मणिकर्णिका घाट पर गंगा किनारे स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर लगभग 450 साल से भी ज्यादा पुराना है. इस मंदिर को उसके अद्भुत डिजाइन के लिए हर तरफ एक अलग पहचान मिलती जा रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि इतने साल पुराने इस शिवालय में गर्भगृह तक पहुंचना बेहद मुश्किल है, क्योंकि 12 महीने में से 10 महीने तक यह शिवलिंग और पूरा गर्भगृह पानी और मिट्टी में डूबा रहता है.
यह अद्भुत इसलिए है, क्योंकि इस मंदिर का जिक्र पुराणों में है. स्थानीय तीर्थ पुरोहित बताते हैं, कि जब काशी प्रवास कर रही रानी अहिल्याबाई मंदिरों का निर्माण करवा रही थी. उसी वक्त उनकी एक दासी रत्नाबाई ने भी काशी के मणिकर्णिका घाट पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. ऐसी मान्यता है और कथा है कि बिना महारानी से पूछे रत्नाबाई ने इस मंदिर को अपना नाम दे दिया है. इससे नाराज होकर अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर को हर वक्त पानी में डूबे रहने का श्राप दिया था. जिसकी वजह से गंगा भले ही अपने असली स्तर पर रहे पानी नीचे रहे लेकिन गर्भगृह में पानी और मिट्टी कहां से आती है और शिवलिंग बाहर क्यों नहीं निकलता यह आज तक कोई भी नहीं पता लगा पाया है.
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सिर्फ भीषण गर्मी यानी मई और जून के महीने में बहुत साफ सफाई के बाद ही कुछ दिन इस शिवलिंग और गर्भगृह में प्रवेश कर दर्शन मिल पाते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस मंदिर के अंदर कोई एक अकेला शिवलिंग नहीं है, बल्कि शिव कचहरी मौजूद है. शिव कचहरी यानी शिव के मुख्य शिवलिंग के आसपास अलग-अलग 12 शिवलिंग और मौजूद हैं. इतना ही नहीं भगवान गणेश और अन्य कई देवताओं के विग्रह भी आपको यहां मिल जाएंगे. लेकिन, सावन के इस पवित्र महीने में भी इस शिवालय में जल और दूध अर्पित करना तो दूर बल्कि दर्शन भी दुर्लभ है. यही वजह है कि सावन के पवित्र महीने में दूर-दूर से आने वाले कांवड़िए हों या शिवभक्त हर शिवालय में पहुंचकर दर्शन और जलाभिषेक जरूर करते हैं. लेकिन, यहां पर आकर उन्हें मायूसी हाथ लगती है, क्योंकि बाबा के दर्शन संभव ही नहीं हो पाते हैं.
इस मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो ऐसी मान्यता है कि वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर की दासी रत्नाबाई ने करवाया था और अहिल्याबाई के श्राप से यह मंदिर टेढ़ा हो गया और इटली की पीसा मीनार जो 4 डिग्री तक झुकी है, उससे कहीं ज्यादा 9 डिग्री पर यह मंदिर आज भी झुका हुआ है और अपने इस अद्भुत स्ट्रक्चर की वजह से एक अलग पहचान पा चुका है.
काशी के गंगा तट पर स्थित यह रत्नेश्वर महादेव का मंदिर आज से नहीं, बल्कि कई सालों से लोगों को चौका रहा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि मंदिर काफी झुका हुआ है. लेकिन, अब तक अपने स्थान पर ही खड़ा हुआ है. जबकि, इस मंदिर में हमेशा मां गंगा का जल और मिट्टी भरी रहती है. आज भी लोगों को यह मंदिर आश्चर्य में डाल रहा है, क्योंकि जब मंदिर खुलता है तब मंदिर के अंदर मां गंगा का जल पूरा भरा रहता है और सारे शिवलिंग गंगाजल में डूबे रहते हैं. यह गंगाजल आता कहां से है यह तो नहीं पता. लेकिन, मंदिर के प्रवेश द्वार के पास मौजूद एक छोटे से क्षेत्र से लगातार पानी रिसता रहता है और यह पानी इतना साफ और निर्मल होता है, जिसे देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस मंदिर की दंत कथाएं प्रचलित क्यों है.
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