वाराणसी: देवों के देव महादेव की नगरी काशी में आज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी की धूम देखने को मिली. सूर्य उदय के साथ ही सभी मंदिरों और घरों में लोगों ने हर्ष और उल्लास के साथ राधा रानी का जन्म उत्सव मनाया. 15 दिन पहले यानी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव यानी जन्माष्टमी मनाई जाती है. श्री राधा रानी भगवान श्री कृष्ण की शक्ति मानी जाती है कहते हैं. राधा रानी संपूर्ण जगत को परम आनंद प्रदान करती है. राधा को मोक्ष देने वाली स्वामी और संपूर्ण जगत जननी माना जाता है.
पूरे विधि विधान से हुआ पूजन
जिले में हरे कृष्ण हरे राम संकीर्तन सोसाइटी के तत्वाधान में हरे कृष्ण महामंत्र और हरि नाम महामंत्र से श्री राधा जन्म उत्सव प्रारंभ हुआ. पूरे विधि विधान से राधा रानी श्री कृष्ण के मूर्ति का पंचामृत स्नान किया गया. वैदिक मंत्रों के साथ पूरे विधि विधान से अनुष्ठान हुआ. विभिन्न प्रकार की फूल मालाओं से आकर्षक सिंगार किया गया. यह आयोजन महेश्वरी भवन में हुआ. जहां पर भक्तों ने हरे कृष्ण हरे राम राधे राधे कृष्ण में मग्न दिखे. क्या बच्चे क्या बूढ़े और क्या महिलाएं सभी राधा रानी के भजन में मग्न दिखे. भूतनाथ की नगरी में हर हर महादेव के साथ राधे राधे के जयकारे लगाए गए.
कौन हैं श्री राधा
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तिथि को राधा जी का जन्म हुआ था. इस दिन को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार राधाजी का जन्म श्री कृष्ण से प्रेम भाव मजबूत करने के लिए हुआ था. ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार श्री कृष्ण के बाएं अंग से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई. कन्या ने प्रकट होते श्री कृष्ण के चरणों में फूल अर्पित किए और बात करते समय उनके सिंहासन पर बैठ गई. ये सुंदर कन्या श्री राधा हैं. एक बार राधा ने श्री कृष्ण को अन्य पत्नि विराजा के साथ देख लिया था जिससे वो दुखी हो गई और कृष्ण को बुरा भला कहने लगीं.
ये सब देख श्री कृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को गुस्सा आ गया और उन्होंने राधा को को पृथ्वी लोक पर जन्म लेना का श्राप दे दिया. पुराण के अनुसार जब देवी राधा और श्रीदामा ने एक- दूसरे को श्राप दे दिया. तब श्री कृष्ण ने कहा तुम्हारा जन्म देवी कीर्ति और वृषभानु की पुत्री के रूप में होगा. वहीं कुछ लोगों के लिए राधा एक भाव है जो श्री कृष्ण के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है.