वाराणसी: पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती 18 मई से अस्सी स्थित दक्षिणामूर्ति आश्रम में अपने काशी प्रवास में आए हुए हैं. निश्चलानंद सरस्वती रोज सुबह 11:00 बजे से भक्तों से मिलते हैं. वहीं शाम 5:00 बजे से धर्म पर चर्चा की जाती है. निश्चलानंद सरस्वती 30 मई तक काशी में प्रवास करेंगे.
शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने वैश्विक महामारी कोरोना की उत्पत्ति और उसके निवारण के उपाय बताएं. इसके साथ ही लोगों के प्रश्नों के उत्तर दिए. जिसमें लोगों ने विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे एक-एक करके शंकराचार्य ने सभी को उत्तर दिया. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मास्क लगाकर भक्तों ने स्वामी जी के दर्शन किए.
शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने दी जानकारी. गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि विकास को किस विधा से परिभाषित किया. विकास को क्रियान्वित करने का प्रकल्प चलाया उसका विस्फोटक परिणाम है कोरोना महामारी. आस्तिक, नास्तिक, वैदिक, अवैदिक, व समस्त ऊर्जा के स्रोत है. ऐसी स्थिति में भौतिक वादियों के द्वारा इस विधा से विकास को परिभाषित किया गया है.
मनुष्य को भोजन करने की मशीन बना देना
शंकराचार्य ने बताया कि ऐसी स्थिति में सृष्टि के संरचना का जो प्रयोजन है, उसको समझ कर एक भौतिकवादी विकास को परिभाषित कर क्रियान्वित करें तो इस प्रकार की महामारी नहीं आ सकती है. संस्कृति, सुरक्षित सुशिक्षित, संपन्न और सेवा प्राण सिद्धांत से स्वस्थ समाज की परिकल्पना हो सकती है. विकास के नाम पर पानी, पवन, ऊर्जा के जो स्रोत है अत्यंत विकृत है. संयुक्त परिवार का विलोप हो जाना, संतान उत्पन्न करने और भोजन करने का मशीन मनुष्य को बना दिया गया है. गांव का विलोप वन का विलोप विभीषका महामारी है.
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महामारी को दूर करने के लिए
पुरी पीठाधीश्वर ने कहा कि सृष्टि की संरचना का जो प्रयोजन है, उसे समझ कर गांव और वन को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है. स्मार्ट सिटी की अधिकता न हो. धर्म धारण करने की विधा है. लोगों द्वारा हिंदू धर्म को विचार करने के रूप में प्रचारित करने की परंपरा को घातक बताया. उन्होंने बताया कि नीति को दोषमुक्त रखकर काम करने की जरूरत पर बल दिया.