वाराणसी: बात अगर दीपावली की हो और मिट्टी के दिए और कुम्हारों के बारे में चर्चा न की जाए तो शायद दीपावली का पर्व कुछ अधूरा सा लगता है. हाईटेक हो रहे दौर में भी मिट्टी के दीयों की पूछ एक बार फिर से होने लगी है और कुम्हारों की भी उम्मीद जग गई है. उनका आने वाला कल एक बार फिर से सुनहरा होगा.
वाराणसी के कुम्हार तो बहुत सी उम्मीदें पाल रखे हैं, इसकी बड़ी वजह यह है कि बनारस के अधिकांश कुम्हारों को प्रधानमंत्री योजना के तहत उनकी जिंदगी बदलने के लिए अब पुरानी पत्थर की चाक के जगह इलेक्ट्रॉनिक चाक दे दी गई है. शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर लोहता गांव में 12 से अधिक कुम्हार परिवार अब परंपरागत चौक की जगह इलेक्ट्रॉनिक चौक का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक तरफ जहां इसने प्रोडक्शन में इजाफा किया है वहीं इन्हें शॉक भी दिया है.
लौटी खोई हुई उम्मीद की किरणें
प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत बनारस में बहुत से कुम्हारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथ से इलेक्ट्रॉनिक चाक प्रदान की थी. इनमें लोहता इलाके के भी कुछ कुम्हार शामिल थे. यह चाक और मिट्टी छानने के लिए है, जिससे लग रहा है कि बहुत कुछ बदल जाएगा. शुरुआती दौर में चीजें अच्छी भी रहीं, लेकिन बिजली से चलने वाले चाक ने प्रतिदिन बनाए जाने वाले दीयों की संख्या में तो अच्छा खासा इजाफा किया, मुनाफा बढ़ा तो जिंदगी बदलने की उम्मीद भी बढ़ गई. वहीं बिजली ने ऐसा झटका दिया कि सबकुछ फिर से उसी जगह आ गया जहां से शुरुआत हुई थी. कुम्हारों का कहना है कि हाल ही में प्रदेश सरकार ने बिजली की कीमतों में इजाफा किया जिसने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़ दी है.